
कलाकारों ने नाट्य मंचन कर बताया फाइलेरिया से मुक्ति का तरीका
मौके पर मौजूद ग्रामीणों ने खायी फाइलेरिया रोधी दवा
बहराइच l फाइलेरिया शरीर को दुर्बल और कुरूप बनाने वाली बीमारी है। इसका संक्रमण मच्छरों के काटने से होता है। हाथीपांव, हाइड्रोसिल या काईल्यूरिया यानि पेशाब में सफेद रंग का द्रव आना आदि इसके लक्षण है, जो संक्रमण होने के पाँच से 15 वर्षों बाद प्रकट होते हैं। इसीलिए मेडिकल साइंस में इस बीमारी का कोई इलाज संभव नहीं है, लेकिन यह बीमारी न हो इसके लिए वर्ष में एक बार टेबलेट आइवर्मेक्टीन व उम्र के अनुसार टेबलेट डीईसी व एल्बेंडाजोल दवायें पात्र व्यक्तियों को खिलाई जाती हैं । इन दवाओं के सेवन के बाद व्यक्ति को फाइलेरिया संक्रमण का खतरा नहीं रहता है।
इन संदेशों को सीफार संस्था के सहयोग से आयोजित लखनऊ से आयी नुक्कड़ नाटक की टीम ने अपनी नाट्य कला के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत की। जरवल ब्लॉक के रिठौरा व हुजूरपुर के लौकाही गाँव में अपने प्रस्तुतीकरण के दौरान नाट्य कलाकारों ने फाइलेरिया रोधी दवा सेवन के बाद उल्टी होना , बुखार आना आदि सामान्य कुप्रभावों के बारे में भी लोगों को बताया । बताया कि ऐसे लक्षण होने पर घबराने की जरूरत नहीं है यह स्वतः अपने आप ठीक हो जाता है । अधिक समस्या होने पर सरकारी अस्पताल या आशा के माध्यम से उल्टी या बुखार की दवा ली जा सकती है। कार्यक्रम के आयोजन में आशा बंदना , रेशमा वर्मा , आशा शकुंतला सिंह व आशा संगिनी शशी सिंह ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और लोगों को बुलाने में सहयोग किया इस दौरान बच्चे महिलाएं व गाँव के कई लोग मौजूद रहे ।
लोगों ने खाई दवा और पुंछे सवाल
नुक्कड़ नाटक का आयोजन रिठौरा गाँव में दो अलग अलाग स्थानो पर किया गया । इस दौरान उपस्थिति लोगों ने फाइलेरिया रोधी दवा के महत्व को समझा। मौके पर मौजूद आशा बंदना व रेशमा वर्मा ने करीब 15 लोगों को दवा खिलाई और छूटे हुए लोगों को घर आकर दवा खिलाने की बात कही। इस दौरान एक महिला जिन्हे गंभीर बीमारी है और इलाज लखनऊ मेडिकल कालेज से चल रहा है , पूंछा कि क्या वह भी दवा खा सकती हैं । इसके जवाब में संगिनी शशी सिंह ने बताया कि 2 वर्ष से छोटे बच्चे , गर्भवती व गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को दवा नहीं खानी है।
एसीएमओ व कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ जयंत ने बताया कि जनपद के हुजूरपुर ब्लॉक का लौकाही गाँव व जरवल ब्लॉक के रिठौरा गाँव में धनात्मक केस मिलने पर इन ग्रामों को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चयन किया गया है । इन गाँवों में फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए घर-घर जाकर लोगों को फाइलेरिया रोधी दवाएं खिलाई जा रही हैं। उन्होने बताया कार्यक्रम को गति प्रदान करने के लिए सहयोगी संस्थाएं पाथ, सीफार व पीसीआई भी सहयोग कर रही है। उन्होने बताया 8 मार्च से चल रहे इस अभियान में 14 मार्च की रिपोर्ट के अनुसार 7334 लोगों के सापेक्ष 3758 लोगों को फाइलेरिया रोधी दवा खिलाई जा चुकी है ।