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बाराबंकी: कलम और किताबों के बजाय बालकों के हाथ लगा मशरूम का कारोबार

सिद्धौर/बाराबंकी। एक तरफ जहां पर राज्य सरकार सभी अशिक्षितो को शिक्षित करने का काम करती है तो वहीं पर मजबूरी में मजदूरी बाल श्रमिकों से कराने वालों की भरमार देखी जाती है जिनके हाथों में कलम और किताबें होना चाहिए उन हाथों में बड़े-बड़े फावड़े नजर आते हैं इस पर चंद्र जिम्मेदार इन मासूमों के जीवन से खिलवाड़ करते नजर आते हैं।

दैनिक भास्कर की टीम द्वारा क्षेत्र में भ्रमण करने पर ब्लाक सिद्धौर के थाना क्षेत्र कोठी में ठंड के मौसम में विभिन्न स्थानों पर मशरूम की खेती का कारोबार बड़े पैमाने पर होता है जहां पर मजबूरी में मजदूरी करने वालों में ज्यादा से ज्यादा बाल श्रमिक ही मशरूम तोड़ने से लेकर खाद की डलाई तक मशरूम पैकिंग खाद की खुदाई सहित अन्य काम 10 वर्ष से लगाकर 17 अट्ठारह वर्ष तक श्रमिक के रूप में कार्य करते नजर आते हैं उन्हीं मशरूम के बड़े-बड़े फार्मों में नाबालिको से लेकर बालिको तक कार्य करते हैं।

सोचने का विषय है सरकार समस्त ग्राम पंचायतों में अशिक्षितो को शिक्षित करने के लिए निशुल्क ड्रेस जूता मोजा बैग मध्य भोजन भी मुहैया करवाती है परंतु क्षेत्र में मशरूम की बड़े पैमाने पर खेती होने के चलते 10 वर्ष से 17 वर्ष तक बाल श्रमिकों को कम दाम देकर कार्य करवाते हैं फार्म के मालिकों का कहना है यदि बालिक व्यक्ति को कोई श्रमिक कार्य के लिए बुलाया जाता है तो वह अपनी मजदूरी 200 से 3 00 रूपए प्रतिदिन मांगता है और कार्य करने में भी वह युवक हिचकिचाते है परंतु बाल श्रमिकों की मजदूरी रुपये 100 से 150 रूपए प्रतिदिन की होती है और कार्य करने में बड़े श्रमिकों से अधिक करते हैं।

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