कब्रिस्तान के नाम पर कब्जा- आस्था या साजिश? सरकारी जमीन को बनाया वक्फ की संपत्ति, मुकदमा दर्ज

  • कब्रिस्तान की आड़ में फर्जी ट्रस्ट, कूटरचित दस्तावेज, और पुलिस की सख्ती,
  • सरकारी जमीन को बना दिया वक्फ की संपत्ति!
  • खुद को बना डाला अध्यक्ष, परिवार को बना दिया प्रबंधक!
  • एसएसपी अनुराग आर्य की सख्ती- अब कोई नहीं बचेगा!

भास्कर ब्यूरो

बरेली। थाना सीबीगंज क्षेत्र में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जो न केवल राजस्व विभाग प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलता है, बल्कि सरकारी जमीन को हड़पने की उस गंदी साजिश को उजागर करता है।

इस मामले में धार्मिक ट्रस्ट और वक्फ बोर्ड की आड़ में एक संगठित गिरोह ने नाटक रच डाला। यह प्रकरण उन सभी के लिए आईना है जो धर्म और ट्रस्ट के नाम पर जनता और सरकारी संपत्तियों पर कब्जा जमाने की फिराक में रहते हैं। यह घिनौनी साजिश रची गई सबरेज अली पुत्र महमूद अली के नेतृत्व में। जिस सरकारी भूमि पर कई वर्षों से कब्रिस्तान के नाम पर कब्जा चला आ रहा था, उस जमीन को बाकायदा फर्जी कागजात तैयार कर वक्फ संपत्ति में दर्ज करा लिया गया।

इस मामले में सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि जिस जमीन की मालियत और स्थिति पूरी तरह से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज थी, उसे कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर “वक्फ नंबर 2214” के नाम से सेंट्रल वक्फ बोर्ड लखनऊ में दर्ज करा दिया गया। जिन्हें ट्रस्ट की आस्था की रक्षा करनी थी, उन्होंने ट्रस्ट को ही परिवार का जागीर समझ लिया। सबरेज अली ने अपने पूरे परिवार को इस ट्रस्ट की प्रबंधन समिति में शामिल कर लिया और खुद को उसका अध्यक्ष घोषित कर दिया।

इस तरह, ट्रस्ट और वक्फ बोर्ड की संरचना को निजी दुकान में तब्दील कर दिया गया, जहां सब कुछ परिवार की मर्जी से चलता था। सवाल ये उठता है कि आखिर इस पूरे खेल को अंजाम तक पहुंचाने में किन अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं? माननीय न्यायालय ने एक सिविल वाद की सुनवाई में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि इस सम्पत्ति से जुड़े कागजात पूरी तरह से फर्जी और कूटरचित हैं। इसका सीधा मतलब है कि यह ट्रस्ट और उसका अस्तित्व ही अवैध रूप से खड़ा किया गया।

बता दें कि न्यायालय की इस टिप्पणी के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि सीबीगंज क्षेत्र में एक सुनियोजित साजिश के तहत सरकारी जमीन को लूटा गया है।वादी पुत्तन शाह पुत्र जुल्फिकार शाह की तहरीर पर थाना सीबीगंज में अभियुक्त सबरेज अली सहित 10 अन्य लोगों के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। यह मुकदमा अपराध संख्या 177/25 के अंतर्गत पंजीकृत है, और इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 504, 506, 420, 467, 468, 471, 447, 120बी शामिल हैं। ये सभी धाराएं गंभीर आपराधिक प्रवृत्ति की हैं — जिसमें जालसाजी, धोखाधड़ी, कूट रचना, सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा, धमकी देना और षड्यंत्र शामिल हैं।

इस प्रकरण पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनुराग आर्य ने स्पष्ट कहा है कि ऐसे फर्जीवाड़े में शामिल किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच गहराई से की जा रही है और इसका एसपी सिटी मानुष पारीक के निर्देश परीक्षण व निरीक्षण भी सुनिश्चित किया जाएगा। यह बयान सिर्फ एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं बल्कि यह साफ चेतावनी है कि अब कोई भी माफिया, चाहे वह धार्मिक चोले में हो या राजनीतिक समर्थन के दम पर, कानून से बच नहीं सकेगा।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर इतने वर्षों तक यह फर्जी ट्रस्ट कैसे चलता रहा? किसकी आंखों के सामने ये सब होता रहा और क्यों किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाया? क्या स्थानीय राजस्व अधिकारी, वक्फ बोर्ड से जुड़े अफसर, और थाना स्तर के पुलिसकर्मी इस पूरे खेल से अनजान थे? अगर नहीं, तो क्या यह मूक समर्थन था या फिर खुली मिलीभगत?कब्रिस्तान जैसी भावनात्मक जगह को ढाल बनाकर सरकारी जमीन हड़पना सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि समाज और धर्म दोनों के साथ विश्वासघात है। ट्रस्ट का गठन समाजसेवा के लिए किया जाता है, न कि जमीनों की कालाबाजारी और फर्जीवाड़े के लिए। अगर ऐसे तत्वों पर अब भी सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में बरेली ही नहीं, पूरे प्रदेश में इसी तरह की घटनाएं रोज सामने आएंगी।

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