
काजल सोनी
लखनऊ। भारत और पाक के बीच युद्ध विराम के बावजूद ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जारी है। हां, पहले के मुकाबले अनिश्चितता वाली स्थिति थोड़ी सुधरी है, लेकिन पाक की कही बात पर भरोसा करना अपने आप को खतरे में डालना होगा। देश के लिए जरूरी सवाल यह है कि पाकिस्तान के साथ हमें स्थायी शांति मिशन की ओर बढ़ना है या अस्थायी शांति से काम चलाना है…? और क्या इसके लिए मौजूदा हालात और राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल हैं….?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकियों ने 26 लोगों को गोली मारकर हत्या कर दी थी। पर्यटकों को गोली मारने से पहले आतंकियों ने उनका धर्म पूछा और कई लोगों के तो कपड़े तक उतरवाए। पहलगाम घटना के बाद भारत के लोगों में जबरदस्त नाराजगी थी। लोग मांग कर रहे थे कि इस बार पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी और निर्णायक कार्रवाई की जाए। उसी कड़ी में ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ और पाक के आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए। 6 मई को उरी सेक्टर से शुरू हुई भारी गोलाबारी ने पुंछ, राजौरी और करगिल तक हालात बिगाड़ दिए। 7 मई को भारत की जवाबी कार्रवाई और 8 मई को पाकिस्तानी ड्रोन मूवमेंट के बाद तनाव चरम पर पहुंचा। भारत ने पाकिस्तान और पीओके समेत 9 स्थानों पर आतंकी गढ़ों को नष्ट किया। भारत ने लाहौर में उनके एयर डिफेंस को खत्म किया। ब्रह्मोस का इस्तेमाल ने तो पाक को दहशत में डाल दिया। पाक के चालीस सेना के अधिकारी, जवान और आतंकी समेत डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
पाकिस्तान की हालत खराब हुई तो उसने एटॉमिक खतरे की बात कर अमेरिका को हस्तक्षेप करने का दबाव डाला। हालात बेकाबू होते देख दोनों देशों के डीजीएमओ ने बातचीत कर 9 मई को युद्धविराम लागू करने का फैसला किया। चार घंटे के बाद ही पाकिस्तान युद्ध विराम की मूल भावना से भटक गया। उसने भारतीय सीमा पर हमले किए। तब भारत ने कड़ा जवाब दिया और स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है। भारत सरकार ने भी स्पष्ट किया कि भारत किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा और भविष्य में बात होगी भी तो केवल पीओके पर होगी।
सवाल है – क्या युद्ध विराम के पीछे अंतरराष्ट्रीय दबाव था? अमेरिका कश्मीर को लेकर मध्यस्थता की भी बात कर रहा है और युद्ध विराम का श्रेय ले रहा है। जैसा कि ट्रंप के ट्वीट से यह स्पष्ट भी हो गया। इस तनाव के पीछे अमेरिका, तुर्की और यूएई जैसे देशों ने हस्तक्षेप किया। भारत ने साफ किया कि वो ‘नो फर्स्ट यूज’ यानी पहले हमला नहीं करेगा, लेकिन जवाब जरूर देगा। उधर, पाकिस्तान पर घरेलू दबाव बढ़ रहा था, क्योंकि उसकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि एक और युद्ध झेल सके।
यह जानना जरूरी है कि इस हमले की शुरुआती जांच में ही सामने आ गया था कि घटना का सीधा संबंध पाकिस्तान से था। वो इसलिए भी कि इस आतंकी हमले के कुछ दिनों पहले जनरल मुनीर ने ‘टू नेशन थ्योरी’ की बात कही थी। कश्मीर को पाकिस्तान के गले की नस कहा था और साथ ही हिंदू और मुसलमानों के बीच फर्क को रेखांकित किया था। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के समाप्त होने के बाद शांतिपूर्ण तरीके से हुए चुनाव और विकास कार्यों से कश्मीर की हालत में तेजी से सुधार हो रहा था। पर्यटन निरंतर बढ़ रहा था और कश्मीर में पहले के मुकाबले अच्छे दिन आ रहे थे, लेकिन पाकिस्तानी सेना, आईएसआई और वहां के आतंकी संगठनों को यह रास नहीं आ रहा था। इसी कारण पहलगाम में आम पर्यटकों पर हमले कर अशांति पैदा की गई।