गाजीपुर। ‘ना, ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे’। गाजीपुर व बलिया के महागठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में पूर्व सीएम अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार में जाने के बाद सपा समर्थकों और मतदाताओं के बीच कुछ ऐसी ही चर्चा चल रही है।
इसका कारण है, अभी अधिसूचना के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि गाजीपुर में वे जनसभा नहीं करने जाएंगे। विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अंसारी बंधुओं को हराने की अपील की थी। इसका असर भी क्षेत्र में देखने को मिला था और अफजाल के भाई सिबतुल्ला को भाजपा उम्मीदवार अल्का राय से मात खानी पड़ी थी। सपा समर्थक अखिलेश के सभा में पहुंचने को गठबंधन की मजबूरी मान रहे हैं।
सपा समर्थकों का मानना है कि यदि बुआ वाले अंसारी बंधु ठीक थे, तो चाचा शिवपाल यादव द्वारा अंसारी बंधुओं का समर्थन करने में क्या बुराई थी, जबकि उसी को लेकर घरेलु विवाद की शुरूआत मानी जाती है।
गौरतलब है कि सोमवार को जनपद मुख्यालय स्थित आईटीआई मैदान में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गठबंधन के तहत बसपा के कोटे में गई सीट गाजीपुर से उम्मीदवार अफजाल अंसारी के पक्ष में जनसभा को संबोधित किया, जबकि वे अफजाल अंसारी परिवार के विरोध में कई बार स्वर निकाल चुके हैं। इस विवाद के बीच उनके बहुतेरे समर्थक भी महागठबंधन उम्मीदवार और बाहुबली नेता का साथ छोड़ चुके हैं। इसको लेकर जनसभा में भी दोनों दलों के समर्थकों के बीच झड़प हो गयी और लाठी डंडे चले।
लगातार उनके गाजीपुर में आने ना आने की चर्चाएं होती रही, लेकिन अंततः उन्होंने गठबंधन के पक्ष में जनसभा कर अपने गठबंधन धर्म का तो पालन किया। लेकिन वहीं उनके आने के साथ ही एक नया सवाल खड़ा हो गया। उनके ही परंपरागत मतदाताओं के वर्ग से लोगों ने पूछना शुरू कर दिया “यदि बुआ का अंसारी ठीक तो चाचा का खराब कैसे?” यदि अंसारी बंधुओं को गले ही लगाना था तो घर के लोगों को नकारा क्यों? ऐसे तमाम सवालों को लेकर गांव की चट्टी चौराहों से लेकर कस्बा शहरों के बाजार चौराहे तक चर्चाओं का दौर तेज हो गया है।
सपा के वोटरों का एक बड़ा समूह परिवार में विभाजन और शिवपाल समेत दूसरे अहम नेताओं को बाहर जाने का जिम्मेदार अंसारी परिवार को मानता है। सपा बसपा गठबंधन होने के बाद गाजीपुर संसदीय सीट को लेकर सबसे अधिक सवाल उठने शुरू हुए जब यह सीट बसपा के कोटे में दे दी गई। तब सपा के नेताओं कार्यकर्ताओं से लेकर कट्टर समर्थकों तक ने सवाल उठाया कि अब तक गाजीपुर से खाता नहीं खोल सकते तो बहुजन समाज पार्टी के कोटे में सीट क्यों दी गई, जबकि समाजवादी पार्टी यहां से कई बार सांसद रह चुकी है। जो गत चुनाव में मनोज सिन्हा के सामने उपविजेता के रूप में भी सपा ही रही है। उसके बाद बसपा द्वारा पूर्व सांसद अफजाल अंसारी को लोकसभा का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया।
सपा मुखिया के परिवार में दो फाड़ करने के जिम्मेदार अंसारी बंधु : रामधारी यादव
जनपद के सदर क्षेत्र के रामधारी यादव ने कहा कि अंसारी बंधुओं को लेकर समाजवादी पार्टी में विवादों का दौर इतना आगे बढ़ा कि मुखिया के परिवार में ही नहीं बल्कि पार्टी में भी दो फाड़ हो गए और चाचा शिवपाल यादव को नई पार्टी भी गठित करनी पड़ी। आखिर अंसारी बंधुओं को साथ में रखना ही था तो परिवार में इतना बवाल क्यों किया गया। इसके साथ ही जमानिया से प्रवेश यादव दिलदारनगर से मोहन, सुकदेव यादव, सैदपुर हरिकेश, नन्दलाल व मनोज यादव, जखनियां दुल्लहपुर से मनोज, पारस यादव, लालजी यादव व नंदगंज से जिम्मेदार यादव, पंकज यादव, जितेंद्र यादव सहित जनपद के सभी क्षेत्रों सपा के कद्दावर नेता से लेकर सामान्य कार्यकर्ता वह परंपरागत वोटर भी इस सवाल को खड़ा करता नजर आ रहा है।
सपा की सीट बसपा कोटे में चला जाना भी नहीं पचा पा रहा समर्थक
सपा मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा जनपद में किए गए मतदान के अपील का कितना असर पड़ता है व यादव मतदाता किस तरह से वोट देते हैं यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन गाजीपुर में सपा बसपा गठबंधन के बाद से लगातार प्रश्नों का दौर खड़ा हो गया। जिसमें सबसे पहला सवाल “सपा की सीट बसपा के कोटे में चला जाना”, दूसरा सवाल “2009 के लोकसभा चुनाव में जिसे आतंकवादी व अपराधी घोषित कर भाजपा तक से सहयोग मांगा गया उसका बसपा से प्रत्याशी हो जाना”, तीसरा सवाल “जिस व्यक्ति को लेकर पार्टी नहीं बल्कि परिवार तक में दो फाड़ हो गये हो गए उसके समर्थन में मतदान की अपील करना” अखिलेश यादव के सामने यक्ष प्रश्न की तरह खड़े हो गए हैं। इतना ही नहीं सोमवार को गठबंधन की रैली में बड़े नेताओं की मौजूदगी में सपा बसपा कार्यकर्ताओं का आपस में भिड़ जाना और देर तक मारपीट होने की घटना भी गठबंधन के नेताओं के सामने सवाल खड़ा करता है।