क्षेत्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूं : राम मिश्र, डमरू के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर

राम मिश्रा- मैं बिहार की पृष्ठभूमि से आता हूं और मैंने अपनी उच्च शिक्षा कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पूरी की है। मैंने भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री के बदलते स्वरूप को पिछले 25 सालों में बहुत नज़दीकी से देखा है। मेरी शुरुआत एक एग्जीक्यूटिव के तौर पर हुई, और दो दशकों से ज़्यादा समय के दौरान मैंने विभिन्न म्यूजिक और फिल्म कंपनीज में अलग-अलग कार्यभार संभाले, जैसे सारेगामा इंडिया लिमिटेड में बिज़नेस हेड, ज़ी लाइव में हेड ऑफ़ टैलेंट और फैथम पिक्चर्स में सीअईओ आदि। मुझे अपने करियर में कई बड़े आर्टिस्ट्स और लाइव शोज के मैनेजमेंट को संभालने का भी मौका मिला।

अपने शुरुआती दौर और करियर के बारे में कुछ बताएं, डमरू की शुरुआत कैसे हुई?

इस अनुभव ने मुझे भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री के विभिन्न आयामों, अलग अलग सेग्मेंट्स, और साथ ही साथ उसकी कमियों से भी भली भांति अवगत कराया। जब मैं अपने करियर कि शुरुआत कर रहा था, तब इंडिपेंडेंट म्यूजिक भारत में काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा था। कुछ आर्टिस्ट्स जैसे कि दलेर मेहंदी, मीका सिंह, लकी अली, लोपामुद्रा मित्रा, हरिहरन आदि ने कुछ बड़े

म्यूजिक कंपनियों के साथ देश ही नहीं विदेश में भी लोकप्रियता हासिल की, लेकिन फिर बॉलीवुड म्यूजिक और लोगों को लुभाने वाले दृष्टिकोण ने इंडिपेंडेंट और क्षेत्रीय कलाकारों की राह मुश्किलों से भर दी। ताज्जुब की बात यह है कि ना तो क्षेत्रीय और स्वतंत्र कलाकारों में कभी कोई कमी रही, ना ही सुनने वालों के पास साधनों की। इस सच्चाई ने मुझे डमरू की संकल्पना करने के लिए प्रेरित किया, जो क्षेत्रीय और इंडिपेंडेंट म्यूजिक के लिए सिर्फ एक स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म नहीं, बल्कि एक संपूर्ण इकोसिस्टम है।

डमरू को शुरू करने में किस तरह की मुश्किलें आईं? आपने अपनी राह कैसे बनाई?

राम मिश्रा:- भारत के लगभग हर क्षेत्र और भू भाग में मैंने एक सशक्त नेटवर्क कायम किया, शायद इसीलिए, डमरू को बनाने और आगे बढ़ाने में ज्यादा मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा। डमरू के माध्यम से हमने भारत के सैकड़ों कलाकारों की मुश्किलों को हल करने कि कोशिश की है। हम हर स्तर पर उनकी मुश्किलें आसान कर रहे हैं – प्रोफेशनल आर्टिस्ट्स से मेंटरशिप हो, ऑडियो और वीडियो प्रोडक्शन हो, डिस्ट्रीब्यूशन हो, मार्केटिंग हो, चाहे दुनिया भर से रॉयल्टी कलेक्शन कि बात हो। इसके अलावा 20 से भी अधिक भाषाओँ और बोलियों में उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, श्रोताओं की पसंद को ध्यान में रखते हुए हृदय को छू लेने वाले गानो की कई अलग-अलग प्लेलिस्ट हैं जो हिंदी सहित 20 से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, डमरू स्थानीय कंपनियों को अपने ब्रांड मार्केटिंग और प्रचार के लिए अपने स्थानीय कलाकारों के गीतों को स्वतंत्र रूप से चुनने और उपयोग करने का अवसर बहुत ही उचित कीमत पर देता है।

आप डमरू को बाकी म्यूजिक प्लेटफॉर्म्स से कैसे अलग मानते हैं?

राम मिश्रा- हम चार स्पेशलाइज्ड सेग्मेंट्स – डमरू स्ट्रीमिंग सर्विस, डमरू डिस्ट्रीब्यूशन सर्विस, डमरू फॉर ब्रांड्स और डमरू लाइव- के माध्यम से क्षेत्रीय और इंडिपेंडेंट म्यूजिक को भारत में सशक्त बना रहे हैं। डमरू क्षेत्रीय और स्वतंत्र म्यूजिक को समर्पित एक अकेला नाम है। डमरू की शुरुआत को अब तक लगभग 2 साल हुए हैं, और हमारे पास 2.5 लाख से अधिक लाइसेंस्ड ट्रैक्स हैं जो वर्तमान में स्ट्रीम हो रहे हैं। डमरू ऐसा अकेला म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म है जो भारत के मूल कलाकारों और श्रोताओं के ना ही सिर्फ जोड़ता है, बल्कि बेहद सशक्त बनाता है। हमारा लक्ष्य संगीत कलाकारों और श्रोताओं को एक साथ जोड़कर, क्षेत्रीय भाषा के संगीत को बेहद सशक्त बनाना है।

क्षेत्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए डमरू ने क्या क्या कदम उठाए हैं?

राम मिश्रा- डमरू श्रोताओं को विभिन्न शैलियों, भाषाओं, बोलियों, त्योहारों और भारत की विभिन्न संस्कृतियों के आधार पर क्यूरेटेड प्लेलिस्ट देता है, साथ ही एक प्रोग्रामिंग प्रोसेस से यह सुनिश्चित किया जाता है कि हर कलाकार को बराबर मौका और विजिबिलिटी मिले। जो आर्टिस्ट डमरू से जुड़ता है, हम उसे हर वो अवसर प्रदान करने कि पूरी कोशिश करते हैं, ताकि वह सफलता की बुलंदियों की छुएं। क्षेत्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय मंच भी मुहैया करा रहा है डमरू।

माना जा रहा है कि आने वाले समय म्यूजिक स्ट्रीमिंग इंडस्ट्री का होने वाला है, भारतीय परिवेश में कैसी संभावनाएं हैं?

राम मिश्रा- आंकड़े बताते हैं कि भारत में वैध तरीके से म्यूजिक स्ट्रीमिंग में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है। एक रिसर्च के हिसाब से भारत में फ़िलहाल म्यूजिक सब्सक्राइबर्स की संख्या लगभग 4 मिलियन के आंकड़े को पार कर गया है, और म्यूजिक सेगमेंट समाहित रूप से लगभग 15 प्रतिशत की गति से बढ़ने वाला है। निश्चित तौर पर इसमें स्मार्टफोन और इंटरनेट के विस्तार की बहुत अहम भूमिका है, ख़ास कर छोटे शहरों और गांवों में। लोगों के बीच बढ़ती डिजिटल परिपक्वता भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण है।

आने वाले 5 सालों में आप डमरू को कहां देखते हैं?

राम मिश्रा- डमरू अभी शुरुआती दौर में है, और इसे अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। हमें ख़ुशी है कि हमें कुमार विश्वास, जगद्गुरु निम्बार्काचार्य श्रीजी महाराज, मारवाड़ी कैटलिस्ट आदि इन्वेस्टर्स का विश्वास मिला, और 2021 से अब तक अच्छी पहचान मिली है। हाल ही में इंग्लैंड की कंपनी होरस म्यूजिक से हमने हाथ मिलाया, जिससे हमारे श्रोताओं को लाखों नए ट्रैक्स का लाभ मिला। डमरू की शुरुआत हमने क्षेत्रीय और इंडिपेंडेंट म्यूजिक को बढ़ावा देने के लिए एक मिशन के रूप में की है, और हम हर दिन इस प्रयास में आगे बढ़ रहे हैं। डमरू उस साधन से लैस भारत के लिए है, जिसकी इच्छाओं और पसंद पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।

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