सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स केे कारनामों की शिकायत अब जल्द पहुंचेगी केंद्र सरकार तक

सोशल मीडिया यूजर्स अब जल्द ही ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स की केंद्र सरकार से शिकायत कर सकेंगे। सरकार आने वाले 3 महीनों में एक ग्रीवांस कमेटी का गठन करने जा रही है। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को गजट नोटिफिकेशन जारी कर इसकी जानकारी दी।

इन कमेटियों को बनाने को लेकर पिछले साल से ही कवायद चल रही थी। IT मंत्रालय सोशल मीडिया कंपनियों से इस विषय पर कई बैठकें भी कर चुका है। बता दें कि कोरोना के दौरान ट्विटर ने सरकार की शिकायतों पर ये कहते हुए ध्यान देने से मना कर दिया कि उस पर भारत के कानून लागू नहीं होते।

कैसी होगी ये समिति?

सरकार की तरफ से बनाई जा रही इस समिति में एक अध्यक्ष और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे। इन सदस्यों में से एक पदेन सदस्य होगा और दो स्वतंत्र सदस्य होंगे। ग्रीवांस अधिकारी के डिसिजन से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति शिकायत अधिकारी से बातचीत होने के 30 दिनों के भीतर इस समिति के सामने अपील कर सकेगा।

सेंसिटव मामले की शिकायत पर 24 घंटे के अंदर होगा एक्शन

शुक्रवार को जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, ग्रीवांस अपीलेट पैनल (GAP) का 90 दिनों के भीतर का गठन होगा। इसके बाद से यूजर्स अपनी शिकायतें दर्ज करवा पाएंगे। अगर पैनल के पास किसी सेंसटिव मामले पर शिकायत आती है तो टेक कंपनी को 24 घंटे के अंदर एक्शन लेना होगा।

अगर कंपनी को आपत्तिजनक कंटेंट को हटाने के संबंध में शिकायत मिलती है तो प्राथमिक कार्रवाई 72 घंटे के भीतर करनी होगी। किसी अन्य तरह की शिकायत पर 15 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी, ताकि कंटेंट वायरल न हो सके।

टेक कंपनियों को किन बातों का ध्यान रखना होगा?

टेक कंपनियों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके प्लेटफॉर्म में अश्लील, अपमानजनक, बाल यौन शोषण, किसी की प्राइवेसी का उल्लंघन करने वाला कंटेंट, जाति-जन्म के आधार पर उत्पीड़न करने वाले कंटेट बिल्कुल भी पब्लिश न हों।
धार्मिक उन्माद फैलाने वाले या फिर भड़काऊ भाषण, किसी भी कानून का उल्लंघन करने वाले कंटेट का प्रचार नहीं किया जाए।
भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा, संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने वाला कंटेट नहीं होना चाहिए।
वायरस/स्पैम फैलाने वाली सामग्री, किसी भी व्यक्ति या संस्था को ठगने वाले कंटेंट का प्रचार नहीं किया जाएगा।
कमेटी की बात कंपनियों को मानना ही होगा

सरकार की तरफ से बनाए जाने वाली कमेटी डिजिटल मॉडल पर काम करेगी यानी ऑनलाइन सुनवाई होगी। देश का प्रत्येक नागरिक इस पैनल में शिकायत कर सकता है। पैनल जिस प्लेटफार्म के खिलाफ फैसला जारी करेगा, उसे अपनी वेबसाइट पर पब्लिश करना होगा। अगर पैनल किसी पीड़ित यूजर्स को मुआवजा देने का फैसला सुनाता है तो टेक कंपनी को दिए गए समय पर मुआवजा देना होगा।

कैसे आया कमेटी बनाने का विचार?

कमेटी को बनाने का विचार तब आया, जब ट्विटर और IT मिनिस्ट्री के बीच तीखी बयान-बाजी हुई थी। कोरोना काल के दौरान ट्विटर ने सरकार की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया था। ट्विटर ने मिनिस्ट्री से कह दिया था कि उस पर भारत सरकार के कानून लागू नहीं होते।

IT मिनिस्टर बोले थे- कानून का पालन सभी की जिम्मेदारी

केंद्र सरकार के कुछ आदेशों को लेकर ट्विटर ने कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में IT मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने कहा था- देश में चाहे कोई भी कंपनी हो, किसी भी सेक्टर से हो, उन्हें भारत के कानून का पालन करना चाहिए। कानून का पालन सभी की जिम्मेदारी है। सोशल मीडिया को कैसे जवाबदेह बनाया जाए, इस पर तेजी से काम चल रहा है। इसके लिए तीन स्तरों पर काम होना चाहिए। पहला- सेल्फ रेगुलेशन, दूसरा- इंडस्ट्री रेगुलेशन और तीसरा- गवर्नमेंट रेगुलेशन।

फेक न्यूज फैलाने वालों से सरकार परेशान

केंद्र का मानना है कि सोशल मीडिया के जरिए से कुछ लोग अपना एजेंडा सेट कर रहे हैं और अफवाहें फैला रहे हैं। सरकार ने ट्विटर से कहा था कि वो ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन ले।

ट्विटर से खालिस्तान समर्थक के अकाउंट के खिलाफ एक्शन के आदेश दिए थे।
किसान आंदोलन से जुड़ी झूठी सूचनाएं फैलाने वालों के अकाउंट बंद करने के आदेश दिए थे।
कोरोना महामारी से निपटने को लेकर सरकार की आलोचना करने वाले ट्वीट्स पर भी कार्रवाई के आदेश दिए थे।
ट्विटर ने आदेश का नहीं किया था पालन
ट्विटर सहित कई सोशल मीडिया कंपनियों ने सरकार के कंटेंट हटाने के अनुरोध पर कार्रवाई नहीं की थी। IT मिनिस्ट्री ने ट्विटर को चेतावनी देते हुए आदेशों का पालन न करने के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने की बात भी कही थी।

ट्विटर ने इस मामले में अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला दिया था। कंपनी का कहना था कि अगर हम किसी भी यूजर के खिलाफ बिना नोटिस के कंटेंट हटाते हैं तो ये यूजर के अधिकार का उल्लंघन होगा।

खबरें और भी हैं...

अपना शहर चुनें