महाराष्ट्र की सियासत आप सभी तो देख ही चुके हैं जहां बाजी तो हमेशा राजा ही मार ले जाता है कुछ ऐसा ही हुई महाराष्ट्र के चुनाव में भी . जीं हां देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दूसरी पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। इसी के साथ महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर लगाए जा रहे कयासों पर आखिरकार विराम लग गया। बीते 5 सालों में फडणवीस ने संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभाई है और अब जाकर उन्हें इसका इनाम दिया गया है।
आपको बता दें कि इस कहानी की शुरुआत 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से होती है। भाजपा और तत्कालीन शिवसेना ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन के खाते मे 161 सीटें आई थीं, जिसमें से अकेले भाजपा ने 105 सीटें जीती थीं।
देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के मन में कुछ और ही फितूर चल रहा था। काफी गहमागहमी और बैठकों के बाद ठाकरे ने शिवसेना को गठबंधन से अलग करने का फैसला किया। इस तरह महाविकासअघाड़ी अस्तित्व में आया, जिसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस शामिल थे।
देवेंद्र फडणवीस के एक बयान का अक्सर जिक्र होता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मैं समंदर हूं, फिर लौटकर आऊंगा।’ शिवसेना से मिले झटके के बाद फडणवीस ने इसकी तैयारी शुरू कर दी। महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस की कोशिश शुरू हुई।
एक रोज एनसीपी की तरफ से अजित पवार ने भाजपा के समर्थन का एलान कर दिया। सुबह-सुबह फडणवीस और अजित पवार का शपथ ग्रहण कार्यक्रम पूरा कर दिया गया। लेकिन ये कोशिश फेल हो गई। शरद पवार ने अजित के कदम से किनारा कर लिया और एनसीपी ने अपना समर्थन खींच लिया।
उद्धव बन गए थे मुख्यमंत्री
उधर महाविकासअघाड़ी ने उद्धव ठाकरे को अपना नेता चुन लिया और वह मु्ख्यमंत्री बन गए। लेकिन फडणवीस ने हार नहीं मानी। भाजपा ने विपक्ष में होने के बावजूद कड़ी तलाशना जारी रखा।इसी क्रम में भाजपा को एकनाथ शिंदे का साथ मिला। शिवसेना में दो फाड़ हो गए। शिंदे गुट वाली शिवसेना ने भाजपा को समर्थन दे दिया और बदले में भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मु्ख्यमंत्री बना दिया। अब बारी एनसीपी की थी।अजित पवार अपमान का घूंट पीकर बैठे थे। मौका मिलते ही उन्होंने बगावत कर दी और अपने विधायकों को लेकर भाजपा के साथ हो लिए। एक बार फिर से सत्ता भाजपा की चाभी भाजपा के पास आ गई थी।
बाजी पल्टी और भाजपा ने शिंदे को बनाया सीएम
देवेंद्र फिर से मु्ख्यमंत्री पद के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उन्हें संयम रखने को कहा। भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किया। फडणवीस चुप रहे। उन्हें और अजित पवार को डिप्टी का पद ऑफर किया गया।फडणवीस ने अपने स्तर पर संगठन का काम जारी रखा। 2024 में जब लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए, तो 48 सीटों में से भाजपा को महज 9 पर जीत मिली। ये नतीजे फडणवीस के लिए भी चौंकाने वाले थे।