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Dadasaheb Phalke International Film Festival (DPIFF) अवॉर्ड घोटाले का पर्दाफाश होते ही फिल्म इंडस्ट्री में हड़कंप मच गया है। हाल ही में इस घोटाले को लेकर DPIFF और उसके संस्थापकों के खिलाफ FIR दर्ज की गई है। अब इस मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है—अभिनेत्री रूपाली गांगुली उर्फ़ अनुपमा को भी इस अवॉर्ड शो के झूठे सरकारी समर्थन के दावे के आधार पर गुमराह किया गया था।
रूपाली गांगुली का खुलासा: झूठे सरकारी समर्थन की वजह से हुईं शिकार
BJP चित्रपट आघाड़ी महाराष्ट्र सचिव निकिता घाग के साथ एक एक्सक्लूसिव टेलीफोनिक बातचीत में, रूपाली गांगुली ने स्पष्ट किया कि उन्हें यह विश्वास दिलाया गया था कि DPIFF एक सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त आयोजन है।
“मुझे एक आधिकारिक निमंत्रण पत्र मिला था और बताया गया कि इस इवेंट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का समर्थन प्राप्त है। मोदी जी हमारे भगवान हैं, उनके इवेंट में कैसे नहीं जाते? हमें यह भी बताया गया कि असली दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा दिया जाता है और यह फिल्म फेस्टिवल उसका एक सरकारी संस्करण है,” रूपाली गांगुली ने कहा।
DPIFF घोटाले में नया खुलासा! असली मास्टरमाइंड श्वेता मिश्रा?
अब यह सामने आया है कि DPIFF की लीगल एडवाइज़र श्वेता मिश्रा ने इस आयोजन की पूरी योजना और संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाई है। उन्होंने वर्षों से इस अवॉर्ड शो की अवैध गतिविधियों को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया है।
जहां अब तक अनिल मिश्रा और अभिषेक मिश्रा इस घोटाले के मुख्य चेहरे माने जाते थे, अब यह स्पष्ट हो गया है कि असली मास्टरमाइंड श्वेता मिश्रा रही हैं। उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से DPIFF की गलत ब्रांडिंग और फर्जी सरकारी संबद्धता को गढ़ा।
DPIFF: एक पारिवारिक घोटाला?
जांच में यह भी सामने आया है कि DPIFF एक पारिवारिक ऑपरेशन के रूप में HUF (हिंदू अविभाजित परिवार) संरचना के तहत कार्य कर रहा था, जिसमें:
अनिल मिश्रा – कर्ता (मुखिया)
अभिषेक मिश्रा – सीईओ
पार्वती मिश्रा – वाइस प्रेसिडेंट
श्वेता मिश्रा – लीगल हेड
अन्य परिवार के सदस्य भी आयोजन की पूरी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल रहे
सेलिब्रिटीज और स्पॉन्सर्स हुए गुमराह
इस घोटाले के उजागर होने से यह स्पष्ट हो गया है कि दादासाहेब फाल्के के नाम का खुलेआम दुरुपयोग किया गया। स्पॉन्सर्स, फिल्म इंडस्ट्री के पेशेवरों और टॉप सेलिब्रिटीज को जानबूझकर गुमराह किया गया और उन्हें यह विश्वास दिलाया गया कि वे एक सरकार समर्थित सांस्कृतिक पहल का हिस्सा हैं।
अब क्या होगा? घोटालेबाजों पर होगी कानूनी कार्रवाई!
अब जब यह फर्जीवाड़ा सामने आ गया है, तो फिल्म इंडस्ट्री, प्रायोजकों और आम जनता के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है कि वे किसी भी आयोजन से पहले पूरी जांच-पड़ताल करें।
यह घटना इस बात को उजागर करती है कि फिल्म अवॉर्ड्स और उन आयोजनों के लिए सख्त नियम और पारदर्शिता अनिवार्य होनी चाहिए जो सरकारी मान्यता का दावा करते हैं।
अब समय आ गया है कि इस घोटाले के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए, कानूनी कार्रवाई की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि दादासाहेब फाल्के के नाम को उसकी सही प्रतिष्ठा लौटाई जाए, न कि निजी और वित्तीय लाभ के लिए शोषण किया जाए।