डॉ. अक्षय बत्रा ने केपटाउन में हुई 73वीं लीगा मेडिकोरम होम्योपैथिका इंटरनेशनलिस में अपने नए शोध से दूसरे रोगों के साथ अपनी जिंदगी गुजार रहे सोरायसिस के मरीजों की जीवन गुणवत्‍ता पर प्रकाश डाला

भास्कर समाचार सेवा

नई दिल्ली। डॉ. अक्षय बत्रा ने ‘सोरायसिस और व्यक्ति के जीवन पर इसके प्रतिकूल प्रभाव’ विषय पर 73वीं लीगा मेडिकोरम होम्योपैथिका इंटरनेशनलिस (एलएमएचआई) में शोध पत्र पेश किया।डॉ. अक्षय बत्रा ने बताया की
कभी-कभी देखा जाता है कि त्वचा की स्थिति हमारी शरीर की कार्यप्रणाली को काफी हद तक बाधित करती है। यह स्थित भावनात्मक परेशानी का भी सबब बनती है। कई बार स्किन की परेशानी को लोग जान-बूझकर इसलिए नजरअंदाज कर देते हैं कि यह केवल कुछ ही समय की बात है और यह अपने आप ठीक हो जाएगी, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता। हालत बिगड़ती जाती है। इससे व्यक्ति की शारीरिक बनावट पर ही असर नहीं पड़ता, बल्कि और भी कई नुकसान होते हैं।

सोरायसिस त्वचा का ऐसा ही एक पुराना रोग है, जिसमें त्वचा पर लाल रंग के मोटे-मोटे धब्बे/चकत्‍ते पड़ जाते हैं। इसमें त्वचा पर पपड़ियां बनने लगती हैं। इस रोग में तेज खुजली होती है और कुछ मामलों में प्रभावित क्षेत्र यानी पपड़ियों से पस भी आता है। ग्लोबल सोरायसिस एटलस (जीपीए) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 3.59 मिलियन लोग सोरायसिस से प्रभावित हैं। सोरायसिस को ऑटो-इम्यून स्थिति भी कहा जाता है, जिसमें त्वचा की रक्षा करने वाली कोशिकाएं गलती से शरीर की त्वचा पर हमला कर देती है। इसका रेस्पॉन्स काफी असाधारण होता है। कोशिकाओं के विकास में तेजी से बढ़ोतरी होती है, त्‍वचा मोटी हो जाती है और इस पर पपड़ियां बनकर त्‍वचा निकलने लगती है।

ब्रिटेन के लंदन में द ट्राइकोलॉजिकल सोसाइटी के पूर्व अध्‍यक्ष डॉ. अक्षय बत्रा ने सोरायसिस से पीड़ित व्यक्तियों की पीड़ा और रोग के कारण किसी व्यक्ति की जिंदगी पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों पर केपटाउन में हुई 73वीं लीगा मेडिकोरम होम्योपैथिका इंचरनेशनलिस (एलएमएचआई) में 12 देशों के शोधकर्ताओं के बीच अपना शोधपत्र पेश किया।

मौजूदा अध्ययन से यह पता चलता है कि सोरायसिस का रोग किस तरह कैंसर और डायबिटीज की तरह ही काफी खतरनाक है और इससे व्यक्ति की जिंदगी पर विपरीत प्रभाव डालता है।

अब तक सोरायसिस के मरीजों के जीवनस्तर (क्यूओएल) पर होम्योपैथी के असर को लेकर कोई शोध नहीं किया गया था। डॉ. अक्षय बत्रा और उनकी टीम ने पांच भारतीय शहरों में रहने वाले 10 से 60 साल की उम्र के सोरायसिस के मरीजों पर अध्ययन किया। इस सर्वे में भागीदारों को जीवन स्तर संबंधी प्रश्नावली दी गई। यह प्रश्नावली डर्मोटॉलॉजी लाइफ क्वॉलिटी इंडेक्स (डीएलक्यूआई) के अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित थी। यह सर्वे इलाज शुरू करने से पहले और इलाज खत्म होने के बाद सोरायसिस के जीवनस्तर पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए किया गया।

डॉ. अक्षय बत्रा की स्टडी में जर्मन साइंस ऑफ होम्योपैथी के उदाहरण से व्‍यक्ति की सेहत से संबंधित जीवनस्तर (एचआरक्‍यूएल) के बारे में समझाया गया। सर्वे के नतीजों ने यह दिखाया कि होम्योपैथी के माध्यम से सोरायसिस के मरीजों का प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है। होम्योपैथी इलाज मरीज के जीवन स्तर पर मजबूत और सकारात्मक प्रभाव डालता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि मरीज की बीमारी या त्वचा में होने वाली गड़बड़ी किस तरह की है। इससे तनाव में कमी आती है। व्यक्ति का जीवन स्तर सुधरने के साथ उसके संपूर्ण रहन-सहन एवं तंदुरुस्‍ती में भी सुधार आता है।

डॉ. अक्षय का शोध सोरायसिस, अच्छे जीवनस्तर और होम्योपैथी के बीच संबंध जोड़ता है। यह सोरायिसस के इलाज के क्षेत्र में एक मजबूत आधार है और जीवन स्तर को सुधारने के लिए अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए मार्ग प्रशस्त करता है।

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