
कानपुर | सीएसए के टिशू कल्चर प्रयोगशाला प्रभारी डॉक्टर आरपी व्यास ने ड्रैगन फ्रूट के पौधे प्रयोगशाला में टिशू कल्चर विधि द्वारा तैयार किए हैं। उन्होंने बताया कि टिशु कल्चर द्वारा तैयार पौधे बीमार रहित होते हैं। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक होते हैं। इसमें पोषकीय तत्व जैसे प्रोटीन, फैट, क्रुड फाइबर,कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोज, विटामिंस जैसे कई तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते। सहायक निदेशक शोध डॉ मनोज मिश्र ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट डायबिटीज, ह्रदय रोग, कैंसर, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण, पेट संबंधी समस्याओं, गठिया, डेंगू, हड्डियों एवं दातों में लाभकारी होता है। ड्रैगन फ्रूट में बीटा लाइंस, पॉलिफिनॉल्स और एस्कोरबिक एसिड जैसे प्रभावी एंटी ऑक्सीडेंट से युक्त होता है। जिसके कारण शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।
डॉ व्यास ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती महाराष्ट्र प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में शुरुआत हो चुकी है। लेकिन ड्रैगन फ्रूट का 80% से ज्यादा फलों का आयात वियतनाम एवं अन्य देशों से हो रहा है। उन्होंने बताया कि ड्रैगन फ्रूट के पौधों का रोपण सीधे खेतों में किया जाता है इसका पौध रोपण का उचित समय फरवरी से अक्टूबर तक होता है। इसकी सिंचाई हेतु टपक विधि द्वारा सिंचाई उत्तम रहती है।क्योंकि यह फसल कम पानी चाहने वाली है। उन्होंने कहा कि खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होना चाहिए।उन्होंने कहा कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के साथ अंतः फसली खेती भी किसान भाई कर सकते हैं जिससे अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। डॉक्टर व्यास ने कहा कि प्रथम वर्ष 5 कुंतल प्रति एकड़, द्वितीय वर्ष 60 से 70 कुंतल, तीसरे वर्ष 150 कुंतल तथा चौथी वर्ष 150 से 200 तक प्रति एकड़ तक उत्पादन होता है।