वैज्ञानिकों का चमत्कार, अब अस्पताल जाते वक्त नहीं होगी घायल सैनिको की मौत!

 

हर रोज हमारे भारत देश  में वैज्ञानिक नयी नयी खोज करते है.  विज्ञान के इस युग में वैज्ञानिक रोज कामयाबी की नई गाथा लिख रहे हैं। मेडिकल की दुनिया में भी विज्ञान के चमत्कार रोज देखने को मिल रहे हैं लेकिन हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों को जो कामयाबी मिली है, वो सबसे बड़ी बात है बबते चले रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ को बड़ी कामयाबी मिली है। DRDO ने बनाई ऐसी दवाई का आविष्कार किया  है जिससे पुलवामा जैसे आतंकी हमलों और युद्ध में जवानों की जान बचाई जा सकती है।

जानकारी की मुताबिक

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने बनाया ‘कॉम्बैट कैजुअल्टी ड्रग्स’ बनाया है जिससे अस्पताल ले जाते वक्त घायल सैनिकों की मौत नहीं होगी और उन्हें बचाया जा सकेगा। दरअसल  DRDO देश में एक ऐसी दवाई तैयार कर रहा है कि जिसके बाद अब आतंकी हमलों या फिर युद्ध के दौरान घायल जवानों को शहीद होने से बचाया जा सकेगा। इस खास दवाई को  DRDO ने तैयार किया गया है। DRDO की ओर से तैयार इस दवाई के बाद दावा किया जा रहा है कि 90 फीसदी तक घायल जवानों को भी बचाया जा सकेगा।

वैज्ञानिको ने किया दावा 

इस ड्रग को तैयार  करने वाले वैज्ञानिकों का दावा है कि इन दवाओं में रक्तस्राव वाले घाव को भरने वाली दवा, अवशोषक ड्रेसिंग और ग्लिसरेटेड सैलाइन शामिल हैं। ये सभी चीजें जंगल, अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में युद्ध और आतंकवादी हमलों की स्थिति में जीवन बचा सकती हैं। वैज्ञानिकों ने 14 फरवरी को पुलवामा में आतंकवादी हमले का जिक्र किया जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। वैज्ञानिकों ने कहा कि इन दवाओं से मृतक संख्या में कमी लाई जा सकती है। DRDO की प्रयोगशाला इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड अलाइड साइंसेस में दवाओं को तैयार करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार घायल होने के बाद और अस्पताल पहुंचाये जाने से पहले यदि घायल को प्रभावी प्राथमिक उपचार दिया जाए तो उसके जीवित बचने की संभावना अधिक होती है।

बता दे DRDO में लाइफ साइंसेस के महानिदेशक ए के सिंह ने कहा कि DRDO की स्वदेशी निर्मित दवाएं अर्द्धसैनिक बलों और रक्षा कर्मियों के लिए युद्ध के समय में वरदान साबित होगा। उन्होंने कहा कि, ‘ये दवाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि घायल जवानों को युद्धक्षेत्र से बेहतर स्वास्थ्य देखभाल के लिए ले जाए जाने के दौरान हमारे वीर जवानों का खून बेकार में न बहे।’ ज्यादातर मामलों में युद्ध के दौरान सैनिकों की देखभाल के लिए केवल एक चिकित्साकर्मी और सीमित उपकरण होते हैं। युद्धक्षेत्र की स्थितियों से चुनौतियां और जटिल हो जाती हैं, जैसे जंगल एवं पहाड़ी इलाके तथा वाहनों की पहुंच के लिहाज से दुर्गम क्षेत्र।

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