जी सी सी और भारत का आर्थिक बदलाव : टियर-2 शहर क्यों हैं अगली बड़ी उम्मीद


लेखक : विकास राठौड़, मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ, एन्सेम्बल इंफ्रा इंडिया लिमिटेड

भारत के ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) अब केवल लागत-केंद्रित बैक-ऑफिस कार्यों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि व्यवसायिक परिवर्तन के रणनीतिक केंद्र बन चुके हैं। बजट 2025-26 में घोषित राष्ट्रीय GCC फ्रेमवर्क के साथ, देश एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। अब उद्देश टियर-2 शहरों की संभावनाओं को उजागर करने, कॉर्पोरेट इकोसिस्टम को विकेंद्रीकृत करने और शहरी विकास को नए सिरे से आकार देने पर है। यह बदलाव केवल आर्थिक रणनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि ऐसा बुनियादी ढांचा पुनः कल्पित करने का अवसर है जो समृद्ध व्यवसायिक वातावरण और समुदायों को समृद्ध बनाने के लिए बढ़ावा देता है।

टियर-2 शहर: विकास का नया अध्याय

कई वर्षों तक ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का केंद्र बड़े महानगर ही रहे। कारण स्पष्ट था, प्रतिभाशाली लोगों की उपलब्धता, बेहतर कनेक्टिविटी और मज़बूत कॉर्पोरेट ढांचा। लेकिन अब टियर-2 शहर तेजी से एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में उभर रहे हैं।

यहां प्रतिभाशाली लोगों की अच्छी उपलब्धता है, और काम करने का खर्च कम आता है। और जीवन स्तर भी बेहतर है। इन खूबियों की वजह से, ये शहर उन आस्थापना के लिए आकर्षक जगह बन रहे हैं जो अपना विस्तार करना चाहती हैं।
कोयंबटूर, इंदौर, पुणे और अहमदाबाद (गिफ्ट सिटी) जैसे शहर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा संस्थानों की उपलब्धता, विकसित होते इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजी से जुड़ी इंडस्ट्री के लिए मिलने वाली सरकारी सुविधाओ से नए और सक्षम हब के रूप में सामने आ रहे हैं। यह बदलाव अभी से दिखना शुरू हो गया है, लेकिन इन शहरों की पूरी क्षमता तभी सामने आएगी जब इनका इंफ्रास्ट्रक्चर वैश्विक बिजनेस मानकों के बराबर हो पाएगा।
इंफ्रास्ट्रक्चर : नई संभावनाओं की शुरुआत
राष्ट्रीय फ्रेमवर्क इस परिवर्तन की नींव रखता है, जो परिवहन, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और नियामक सुधारों में निवेश को प्राथमिकता देता है। ये कदम आवश्यक तो हैं, लेकिन इनका वास्तविक प्रभाव कार्यान्वयन की गति पर निर्भर करेगा।
इस मॉडल के तहत तेज़ परियोजना, स्पष्ट ज़ोनिंग नियम और संरचित पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) सुनिश्चित करके ज़रूरी हैं कि टियर-2 शहर लार्ज स्केल पर व्यवसायिक गतिविधियों को समर्थन दे सकें।
कनेक्टिविटी के साथ अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर सहित गुणवत्तापूर्ण ऑफिसेस उपलब्ध करना भी उतना ही जरूरी है। आज की कंपनियाँ ऐसे कार्यस्थल चाहती हैं जो फ्लेक्सिबल, टिकाऊ और तकनीकी रूप से उन्नत हों, ताकि सहयोग और उत्पादकता को बढ़ावा मिल सके।
अगर टियर-2 शहर मेट्रो हब्स से प्रतिस्पर्धा करना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसी व्यावसायिक रियल एस्टेट सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी जो इन बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप हों।

जीसीसी के लिए बदलता वर्कस्पेस
आधुनिक कार्यस्थल अब महज़ एक ‘वर्क स्टेशन’ नहीं, बल्कि इनोवेशन, वेलबीइंग और फ्लेक्सिलिबिलिटी का मिश्रण हैं। हाइब्रिड और रिमोट वर्किंग ने जिस प्रकार वर्कफोर्स की ज़रूरतों को बदला है, उसी प्रकार अब ऑफिस डिज़ाइन को भी व्यक्तिगत अनुभव, डिजिटल इंटीग्रेशन और हरित समाधानों की दिशा में बदलने की आवश्यकता है। सरकारों, शहरी योजनाकारों और डेवलपर्स को मिलकर एक ऐसा बिज़नेस इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा, जो न केवल नए निवेशकों को आकर्षित करे, बल्कि पहले से मौजूद कारोबारों के परिवर्तनशील ऑपरेशन मॉडल को भी सपोर्ट करे।

चुनौतियों का समाधान और अवसरों का लाभ उठाना
विकेन्द्रीकरण के मजबूत पक्ष के बावजूद, कुछ चुनौतियां अब भी हैं। टियर-2 शहरों को बड़े ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर संचालन के लिए उपयुक्त बनाने के लिए, परिवहन, बिजली आपूर्ति और डिजिटल कनेक्टिविटी में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को दूर करना होगा।

शैक्षिक संस्थानों, व्यवसायों और नीति निर्माताओं को मिलकर ऐसा वर्कफोर्स तैयार करना होगा, जो वैश्विक उद्यमों की बदलती मांगों के अनुरूप हो। इस बदलाव की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि उद्योग और सरकार मिलकर ऐसा इकोसिस्टम कैसे बनाते हैं, जो इनोवेशन, निवेश और लंबी अवधि के विकास को बढ़ावा दे।

मेट्रो शहरों से बाहर जीसीसी का विस्तार : एक नया अवसर
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स का मेट्रो शहरों से बाहर विस्तार सिर्फ आर्थिक बदलाव नहीं है, यह भारत के व्यावसायिक परिदृश्य को नए सिरे से परिभाषित करने का अवसर है। नए उत्कृष्टता केंद्रों को प्रोत्साहित करके, देश एक अधिक संतुलित आर्थिक मॉडल की ओर बढ़ सकता है, जो मेट्रो शहरों पर दबाव कम करेगा और आत्मनिर्भर क्षेत्रीय हब बनाएगा।

अगर इसे दूरदर्शिता और सही इरादे के साथ लागू किया जाए, तो यह बदलाव न सिर्फ भारत की वैश्विक व्यावसायिक पहचान को मजबूत करेगा, बल्कि काम के भविष्य के लिए एक मजबूत आधार भी तैयार करेगा।

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