नई दिल्ली । जर्मनी ने भारत को चेन्नई, बेंगलुरु और मैसूर के बीच एक हाई स्पीड रेल कॉरीडोर बनाने का प्रस्ताव दिया है। जर्मनी का दावा है कि यदि भारत सरकार इस परियोजना को मंजूरी दे देती है तो 2030 तक चेन्नई से मैसूर का सफर सात घंटे के बजाय महज ढाई घंटे में तय किया जा सकेगा। इतना ही नहीं इसके निर्माण कार्य के दौरान एक लाख लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
भारत में जर्मनी के राजदूत डॉ. मार्टिन नेय ने इस प्रस्ताव की व्यावहारिकता को लेकर अध्ययन रिपोर्ट गुरुवार को यहां भारतीय रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी को सौंपी। नेय ने इस मौके पर कहा कि यह अध्ययन पूरी तरह से उनकी सरकार द्वारा किया गया है और इसको 18 माह में तैयार किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई, बेंगलुरु और मैसूर कॉरीडोर पर हाई स्पीड रेल चलाना न केवल व्यावहारिक है बल्कि प्रबंधनीय भी है।
रिपोर्ट के अनुसार 435 किलोमीटर की इस परियोजना की अनुमानित ढांचागत लागत लगभग एक लाख करोड़ रुपए होगी जबकि रोलिंग स्टॉक के लिए 150 करोड़ रुपए की अतिरिक्त लागत आएगी। हाई स्पीड कॉरीडोर को मौजूदा ट्रैक के ऊपर ही अर्थात एलिवेटिड बनाने का सुझाव दिया गया है। इसमें 85 प्रतिशत तक रेल ट्रे को एलिवेटिड बनाए जाने का प्रस्ताव है। हाईस्पीड रेल नेटवर्क के तैयार होने पर चेन्नई से मैसूर तक का 435 किलोमीटर का सफर 320 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से सात घंटे की बजाय महज दो घंटा 20 मिनट में तय किया जा सकेगा।
रिपोर्ट में कहा है कि अगले 25 सालों में इस रूट पर जापान, जर्मनी और चीन की तर्ज पर हाई स्पीड ट्रेनें चल सकती हैं। रिपोर्ट में मौजूदा रेल ट्रैक के अधिकतम उपयोग की सलाह भी दी है। जर्मनी ने ब्रॉडगेज पर ही हाई स्पीड कॉरीडोर को बनाने की वकालत की है। रिपोर्ट के अनुसार इस रेल कॉरीडोर की लागत लगभग एक लाख करोड़ रुपए होगी। इस लागत को वसूलने में 25 साल लगेंगे। इसके लिए तिरुपति जैसे स्थानों को इससे जोड़ा जा सकता है।
प्रस्ताव की सराहना करते हुए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने कहा कि जर्मनी का प्रस्ताव मिलना सचमुच बड़ी घटना है। हाई स्पीड रेल कॉरीडोर जापान ,जर्मनी और चीन जैसे देशों में काफी प्रचलित है। यह हवाई यात्रा से बेहतर साबित होगा। उन्होंने कहा कि वह जर्मनी के प्रस्ताव की समीक्षा कर रहे हैं।
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