त्वचा रोग से पाना है छुटकारा तो महाकुंभ में लगाए डुबकी

महाकुंभ : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा में कई प्रकार के औषधि गुण पाए जाते हैं। कुम्भ के समय इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। इस समय नहाने से पुण्य फल के साथ-साथ शरीर के त्वचा रोगों का नाश भी होता है।

सोमवार को एसकेआर योग एवं रेकी शोध प्रशिक्षण और प्राकृतिक संस्थान में रेकी सेंटर पर जाने-माने स्पर्श चिकित्सक सतीश राय ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कुंभ में स्नान करने से त्वचा रोग दूर हो जाते हैं।

कुंभ के गंगाजल से ठीक होता है त्वचा रोग

सतीश राय ने कहा गंगा के किनारे कुम्भ का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। एक रिसर्च के अनुसार गंगाजल में बीमारियों के कीटाणुओं को नष्ट करने की ताकत है। गंगाजल में इंफेक्शन से लड़ने वाले बैक्टीरिया होते हैं, इन बैक्टीरिया की वजह से ही गंगा के पानी की शुद्धता बनी रहती है। गंगा जल के कभी न खराब होने का कारण यही बैक्टीरिया है। गंगाजल पीने और स्नान करने से शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले वायरस एवं बैक्टीरिया नष्ट होते हैं। शरीर में अच्छे बैक्टीरिया की बढ़ोत्तरी होती है। जिन लोगों को स्क्रीन की प्रॉब्लम है, उन्हें रोज गंगाजल में स्नान करने और गंगा जल पीने से लाभ होगा। ऐसा लगातार करते रहने से त्वचा के रोग व कुष्ठ रोग ठीक होते हैं। सतीश राय ने कहा भारत देश अध्यात्म का देश है। यह आध्यात्मिक गुणों के कारण ही आधुनिक लाइफ स्टाइल, दूषित हवा और 50 परसेंट से ज्यादा मिलावटी खाद्य पदार्थ खाने के बाद भी विश्व के अन्य देशों की तुलना में यहां के लोग हृष्ट-पुष्ट हैं।

एंटीबायोटिक दवाओं से ज्यादा शक्तिशाली है बैक्टीरियोफ़ेज

वेद पुराण ऋग्वेद रामायण महाभारत सहित सभी प्रकार के धार्मिक ग्रंथों में गंगा के महिमा का उल्लेख है। गंगा जल व सभी बड़ी नदियों के जल में बैक्टीरियोफ़ेज मिलता है। यह सभी जीव जंतुओं के लिए बहुत लाभकारी है। एक शोध में आया है कि यमुना में 130, नर्मदा के जल में 120 और गंगाजल में 1300 प्रकार के बैक्टीरियोफ़ेज पाए जाते हैं। शरीर में गम्भीर संक्रमण के इलाज में यह बैक्टीरियोफ़ेज कुछ एंटीबायटिक दवाओं से ज्यादा शक्तिशाली है। गंगाजल पर एम्स की रिसर्च और विज्ञान ने भी इसकी पुष्टि कर दी है।

कुम्भ को फिल्मों ने बना दिया था डरावना

उन्होंने कहा कि आजाद भारत का पहला कुम्भ वर्ष 1954 में लगा था। भारतीय फिल्मों ने कुम्भ को बहुत डरावना व भयावह बना दिया था। जिसमें अक्सर घर वालों को बिछड़ते दिखाया जाता था। कुम्भ का मतलब बहुत भीड़-भाड़, बहुत बड़ा मेला जहां भाई-भाई, भाई-बहन, बाप बेटा या परिवार के बिछड़ने का एक मात्र स्थान कुम्भ है। उन्होंने बताया कि कुम्भ अर्थात कलश जिसके मुख को भगवान विष्णु ऊपरी आकार कंठ में भगवान रुद्र, आधार को ब्रह्मा और अंदर के जल को सम्पूर्ण सागर का प्रतीक माना जाता है।

पुनर्जन्म के चक्र से मिलती है मुक्ति

सतीश राय ने कहा कुम्भ का आयोजन भारतीय संस्कृति परम्परा और इतिहास को समृद्ध करता है। कुम्भ मेले का आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है। यह पर्यटन बुनियादी ढांचे और बेहतर सृजन को बढ़ावा देता है। कुम्भ के समय गंगा में नहाने, दान और दर्शन से मनुष्य को अनंत पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है।

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