रमजान का तीसरा अशरा बंदों को जहन्नूम की आग से निजात दिलाता है खुदा

गढ़मुक्तेश्वर। मुकद्दस रमजान का महीना बेशुमार बरकतों वाला है। इस महीने में रोजेदारों पर अल्लाह तआला की बेशुमार रहमतें बरसती हैं। सारे गुनाह माफ हो जाते हैं। इस महीने का तीसरा अशरा 20वें रोजे की मगरिब से शुरू होता है, जो ईद का चांद दिखाई देने तक जारी रहता है। इसमें इबादत करने से जहन्नुम से आजादी मिलती है।
मौलाना अय्युब ने बयान करते हुए कहा कि रमजान-पाक को तीन अशरों में बांटा गया है। दूसरा अशरा मुकम्मल हो रहा है। तीसरे अशरे की शुरूआत के साथ ही मस्जिदों और घरों में एतकाफ का सिलसिला शुरू हो जाएगा। रमजान में 20वें रोजे के मगरिब से शुरू होकर चांद रात तक मस्जिद में रहकर अल्लाह की इबादत करने को एतकाफ कहा जाता है। तीसरे अशरे की ताक रातों में शब-ए-कद्र भी आएगी। इसी अशरे की 21, 23, 25, 27 और 29 वीं रात शब कद्र की पाक रात है। उन्होंने कहा शबे कद्र की रात को हजार महीने की रातों के बराबर बताया गया है। लेकिन वह कौन सी रात है, किस रात को कुरान शरीफ नाजिल हुआ, यह किसी को मालूम नहीं है। इसलिए रोजेदार इन पांच रात को जागकर अल्लाह रब्बुल इज्जत की इबादत करते हैं। रमजान के तीसरे अशरे में ही फितरा और जकात भी अदा की जाती है, जिससे ईद की नमाज गरीब लोग भी खुशी से अदा कर सकें। फितरा लेकिन रमजान में ही निकालना बेहतर होता है।

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