Gopaldas Neeraj Jayanti : रंगीला रे… के बोल लिखने वाले नीरज ने डांकू को सुनाई थी कविता

Seema Pal

Gopaldas Neeraj Jayanti : रंगीला रे…., शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब…, ओ मेरी शर्मीली… जैसेै मधुर गानों को लिखने वाले 80 के दशक के गोपालदास नीरज की आज 100वीं जयंती है। उन्होंने बॉलीवुड को कई हिट नगमें दिए, जो आज भी दिल छू लेने वाले बोल के कारण गुनगुनाए जाते हैं। बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री हमेशा उनकी कर्जदार रहेगी। नीरज को 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा यूपी सरकार ने उन्हें यश भारती सम्मान से भी नवाजा था। सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए नीरज को तीन बार फिल्म फेयर अवॉर्ड मिल चुका था। साल 2018 में गोपालदास नीरज इस दुनिया को छोड़ दिया था।

नीरज ने सुनाया था चंबल का किस्सा

गीतकार गोपालदास नीरज ने अपनी किताब में चंबल का किस्सा साझा किया था। जिसमें उन्होंने बताया था कि एक बार वह डाकू मान सिंह के चंगुल में फंस गए थे। वह किस्सा कुछ इस तरह था कि रात एक बजे वह भिंड में कवि सम्मेलन से मित्र के साथ जीप से इटावा रेलवे स्टेशन लौट रहे थे। रास्ते में उनकी गाड़ी का डीजल खत्म हो गया। उस मार्ग पर चारों तरफ घने जंगल थे। तभी मुंह को कपड़े से ढके हुए दो डाकू वहां पहुंचे जिनके हाथ में दो राइफल थे।

डाकुओं ने पूछा- कौन?

नीरज ने जवाब दिया – हम कवि हैं।

कड़क आवाज में डाकू बोला – चुपचाप हमारे साथ चलो होशियारी मत करना।

फिर नीरज उन डाकुओं के साथ चल दिए। वहां पर डाकू मान सिंह ने उन्हें कुछ सुनाने को कहा। इस पर नीरज ने आंखे बंद कर सूरदास का भजन ‘प्रभु मोरे अवगुन चित न धरो, समदरसी प्रभु नाम तिहारो’ सुना दिया। भजन सुनकर डाकू मान सिंह की आंखों में आंसू आ गए। मान सिंह ने नीरज के हाथ में सौ रुपये रखे और डीजल दिया और सम्मान सहित कहा कि जाओ।

गोपालादस नीरज के लिखे गानें

नीरज ने 1971 में फिल्म पहचान का गीत ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, 1972 में फिल्म मेरा नाम जोकर का ‘ए भाई! जरा देख के चलो’,  फिल्म ‘गैंबलर’ का ‘दिल आज शायर है गम आज नगमा है’ के बोल लिखे थे। इसके अलावा उनका 1969 में आई हिंदी फिल्म ‘चंदा और बिजली’ का गाना ‘काल का पहिया घूमे भैया’ भी काफी लोकप्रिय हुआ था।

100वीं जयंती पर नीरज के बेटे ने किया याद

गोपालदास नीरज की सौवीं जयंती पर उनके बेटे शशांक प्रभाकर ने नीरज जी के जीवनकाल का वो किस्सा बताया है, जो दर्शाता है कि वो कितने दूरदर्शी और संवेदनशील व्यक्तित्व के स्वामी थे। शशांक नीरज को याद करते हुए कहते हैं कि स्मृतियां जब आपको निरंतर घेरे रहती हैं तब वो आदत बन जाया करती हैं। ऐसी ही एक आदत का नाम है ‘नीरज’ यानी मेरे बाऊजी। मुझे लगता है कि वो मेरे जीवन से कभी गए ही नहीं। उनके साथ बिताये हुए पल मुझे जाग्रत रहने की प्रेरणा और संबल देते रहते हैं।

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