गोरखपुर : नही किया फिक्र तो मिट जाएंगी यादें फिराक़ की…

  • फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर विशेष
    -योगी सरकार धरोहरों एवं महान शख्सियतों की यादों को सहेजनें की कर चुकी है घोषणा
  • स्मृतियों को सहेजने के प्रति सरकार बेफिक्र

गोपाल त्रिपाठी, गोरखपुर।

रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि पर उनके शहर में अब उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण के सिवाय न के बराबर आयोजन होते हैं। वर्तमान सरकार ने पुरानी धरोहरों और शहीदों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं सम्मानित लोगों को सम्मान देने के लिए उनके पैतृक गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की तैयारी कर रही है। कई बार पर्यटन विभाग के अधिकारियों द्वारा फिराक गोरखपुरी के पैतृक गांव बनवारपार का सर्वे किया गया और शासन को रिपोर्ट भेजने की बात कही गई लेकिन अभी तक पैतृक गांव को पर्यटन स्थल बनाना तो दूर की बात है एक ईंट तक नही रखी गई।

गोला क्षेत्र के बनवारपार गांव में कायस्थ परिवार में 28 अगस्त 1896 को पैदा हुए रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी ने स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही अपने नज्म़ व गजलों से उर्दु अदब शायरी को नया आयाम दिया था। उनके मुरीद देश भर ही नहीं पूरी दुनिया में है।

और गोरखपुर की पहचान को विश्व पटल पर पहचान दिलाई। लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा व साहित्यिक संस्थाओं की बेरूखी के चलते स्थिति बेहद दुखद है। हालांकि शासन ने गोला ब्लाक के बनवारपार स्थित उनके पैतृक आवास को पर्यटक स्थल बनवाने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन वह भी कोरा साबित हुआ। यही नहीं तीन दशक पूर्व शासन द्वारा गोरखपुर विश्वविद्यालय में फिराक साहब के नाम पर संकाय बनवाने की भी घोषणा की गई थी। मगर वह अब तक नहीं पूरा हुआ। यहां के लोग जिम्मेदारों की उपेक्षा से दुखी तो हैं लेकिन फिराक की उपलब्धियों से वे गौरवान्वित भी है। लोगों का कहना है कि जब तक साहित्य का सम्मान करने वाले रहेंगे फिराक उनके दिलों में जिंदा रहेंगे। फिराक किसी की फिक्र के मोहताज नहीं हैं।

पुस्तैनी मकान भी गिन रही अंतिम सांसे

फिराक गोरखपुरी की यादों को किस तरह से नजरअंदाज किया जा रहा है। उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पैतृक गांव बनवारपार में उनकी आखिरी निशानी बस उनका खपरैल का मकान बचा है। यह मकान भी अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।सिर्फ फिराक की एक प्रतिमा के सहारे जयंती व पुण्य तिथि मनाने की औपचारिकता पूरी की जाती है। शासन प्रशासन ने उनके गांव की स्थिति को सुधारने का आश्वासन तो कई बार दिया लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ।

वर्षों बाद भी नही बन पाया कम्युनिटी सेंटर

कुछ साल पहले शासन ने फिराक के नाम पर उनके पैतृक गांव में एक कम्युनिटी सेंटर का निर्माण कराने की घोषणा की थी। 61 लाख रुपये से बनने वाला कम्युनिटी सेंटर प्रशासन की बेरुखी के चलते आजतक अधर में हैं। इस योजना की फाइल आज भी धूल फांक रही है।

फिराक सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. छोटेलाल प्रचंड कहते हैं कि अपने शायरी से विश्व ख्याति फिराक गोरखपुरी को वह सम्मान नही मिला जिसके वह हकदार थे। जिसके लिए लोग प्रयासरत हैं। और शासन-प्रशासन का ध्यान कई बार आकृष्ट करने का प्रयास किया गया। भविष्य में पर्यटन विभाग प्रख्यात साहित्यकार की जन्म स्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर आने वाली पीढिय़ों को साहित्य के क्षेत्र में विकसित करें।

जिसने दिलाई दुनिया में पहचान,उसके शहर में ही यह रूसवाई समझ से परे : दिनेश बावरा

गोला क्षेत्र के सिसई गांव मूल के मुम्बई में रहने वाले अन्तर्राष्ट्रीय हास्य-व्यंग कवि दिनेश मिश्र बावरा ने कहा कि फिराक साहब ने अपने नज्मों एवं गजलों से उर्दु अदब को एक नई पहचान दी।उनकी रचनाएं भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है और पढ़ी जाती हैं।रूमानियत, समाज एवं संस्कृति में रची बसी फिराक साहब की शायरी हर उम्र के लोगों को पसंद आती है।

मन के हारे हार है मन के जीते जीत, जैसी पंक्तियां लिखने वाले शायर फिराक गोरखपुरी ने गोरखपुर की पहचान विश्व पटल तक पहुंचाई। लेकिन दुख तब होता है जब साहित्य की दुनिया के इस महान शायर के प्रति सरकारों की बेरूखी दिखती है। जिसने गोरखपुर की पहचान पूरे विश्व में कराई, उनके ही शहर में उनके प्रति रूसवाई समझ से परे है। वो भी तब जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जनपद के धरोहरों एवं महान शख्शियतों की यादों को सहजनें के लिए घोषणाएं कर चुके है।

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