लेखक : के. नरसिम्हन,
अधिवक्ता, मद्रास उच्च न्यायालय
नई दिल्ली। एक चिंताजनक घटनाक्रम में, हाल ही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने एक संवेदनशील डेटा के लीक होने के विषय में शाओमी की शिकायतों के बाद वाल्मार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट के विरुद्ध अपनी जाँच रिपोर्ट वापस ले ली है। यह कोई अलग घटना नहीं है, बल्कि सिलसिलेवार घटनाओं में सबसे ताजा घटना है, जिससे भारत के एंटीट्रस्ट वॉचडॉग की विश्वसनीयता पर चिंतायें खड़ी हो गईं हैं। चूँकि, भारत लगातार एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है, एक भरोसेमंद बाजार नियामक का होना महत्वपूर्ण है। लेकिन हाल की घटनाओं ने इस भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाने में सीसीआई की क्षमता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रिपोर्ट को वापस लेने से एक अन्तर्निहित समस्या, यानी गोपनीयता बहाल रखने और निर्धारित प्रक्रिया का निरंतर पालन करने में सीसीआई की मुश्किलों का पता चलता है। गूगल और एप्पल जैसे टेक दिग्गजों के मामले में भी ऐसी ही समस्या पैदा हो चुकी हैं, जहाँ गोपनीय जानकारियाँ सार्वजनिक हो गई थीं। ये लीक (खुलासे) न केवल चल रही जाँचों को कमजोर करते हैं, बल्कि सीसीआई में व्यवसायियों और आम जनता के भरोसे को भी कम करते हैं। एक ऐसे नियामक के लिए, जिस पर बाजारों में निष्पक्ष एवं न्यायोचित गतिविधियाँ सुनिश्चित करने का दायित्व है, गोपनीयता का इस तरह भंग होना विशेष रूप से नुकसानदेह है। इनसे न केवल कानूनी झगड़े और जाँच रिपोर्ट वापस लेने की स्थिति पैदा होती है, बल्कि समग्र रूप से सीसीआई की विश्वसनीयता पर भी आँच आती है।
यह तथ्य कि गोपनीय रिपोर्ट्स के निष्कर्ष बार-बार सार्वजनिक जानकारी में आ गए हैं, चिंता का एक गंभीर कारण है और उचित प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन है। जानकारी लीक होने की इन घटनाओं के नतीजे केवल प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। ये पक्षपात की संभावना के कारण आगे की कार्यवाही को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं। इतना ही नहीं, निर्धारित प्रक्रिया के प्रति अवमानना से, जैसा कि तृतीय पक्षों को सूचना के बगैर बचाव पक्षों के रूप में फँसाए जाने के मामलों में परिलक्षित हुआ है, सीसीआई की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता पर कालिख बरकरार है।
लेकिन समस्या गोपनीयता भंग होने तक ही सीमित नहीं है। सीसीआई भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में तेजी से विकसित हो रहे व्यावसायिक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रहा है। हाल के दिनों में, लंबे समय तक रिक्तियों के कारण विलय और अधिग्रहण की गतिविधि में ठहराव आया है, जबकि संसाधनों की भारी कमी के कारण जाँच के लंबित रहने की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ये मुद्दे, उचित प्रक्रिया में बार-बार होने वाली चूक के साथ मिलकर एक ऐसे नियामक की तस्वीर पेश करते हैं जिसकी महत्वाकांक्षाएं इसकी मौजूदा क्षमताओं से कहीं अधिक हैं। जबकि सीसीआई प्रवर्तन के लिए एक साहसिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, लेकिन इसकी वर्तमान क्षमता की तुलना में इसकी इच्छा बहुत बड़ी लगती है। महत्वाकांक्षा और क्षमता के बीच यह बेमेल विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धी बाजार को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
तो, करना क्या चाहिए? सीसीआई के अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने के बजाय, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए कि नियामक अपने मुख्य कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सके। इसका मतलब है अतिरिक्त बजट और
संसाधन प्रदान करना, नियामकीय प्रशासन और जाँच के लिए उचित नियम स्थापित करना और उचित प्रक्रिया पर कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना। इसके अलावा, सीसीआई को अपने गोपनीयता संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। संवेदनशील जानकारी को सँभालने के लिए सख्त प्रोटोकॉल लागू करने, गहन आंतरिक ऑडिट करने और उल्लंघनों के लिए कठोर दंड लगाने से गोपनीय डेटा की सुरक्षा करने की नियामक की क्षमता में विश्वास बहाल करने में मदद मिल सकती है।
भारत के आर्थिक भविष्य के लिए प्रतिस्पर्धी बाज़ार प्रक्रिया पर नजर रखने का दायित्व शायद सबसे महत्वपूर्ण है। निवेश को आकर्षित करने, नवाचार को बढ़ावा देने, और न्यायोचित प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए एक सुदृढ़, निष्पक्ष और भरोसेमंद सीसीआई की जरूरत है। सिलसिलेवार रूप से गलत कदमों की हालिया घटनाएँ सीसीआई और सरकार दोनों के लिए चेतावनी है। अब समय आ गया है कि सीसीआई के काम-काज में व्यापक बदलाव करने के साथ-साथ इसकी मुख्य क्षमताओं को मजबूत करने, संसाधनों की कमी को दूर करने और इसकी विश्वसनीयता को फिर से बनाने पर ध्यान दिया जाए। केवल तभी सीसीआई अपने सर्वश्रेष्ठ वैश्विक समकक्षों की बराबरी में काम करने और भारत के विकासशील बाजार में न्यायोचित प्रतिस्पर्धा के रक्षक का उद्देश्य पूरा करने की उम्मीद कर सकता है। समस्या गंभीर है और अब कार्रवाई का समय आ गया है। भारत का आर्थिक भविष्य प्रतिस्पर्धा आयोग पर निर्भर करता है जो न केवल कागज पर शक्तिशाली हो, बल्कि व्यवहार में भी सक्षम, भरोसेमंद और प्रभावी हो।