केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की अनुसार अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता तो देश में अब तक कोरोना के 2.8 लाख मामले होते। स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोरोना के बढ़ते मामलों की दर का विश्लेषण करते हुए एक अनुमानित रिपोर्ट तैयार की है। इस अध्ययन में मंत्रालय ने रोकथाम के प्रयास और लॉकडाउन के प्रभावों का आंकलन किया। मंत्रालय के अनुसार अगर लॉक डाउन के इतर देश में और भी कोई कदम नहीं उठाया गया होता तो 15 अप्रैल तक कोरोना के 8 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके होते।
शनिवार को स्वास्थय मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने पत्रकार वार्ता में मंत्रालय के अध्ययन के बारे में बताते हुए कहा कि 25 मार्च से लॉक डाउन की शुरुआत हुई है और साथ में सभी मंत्रालयों ने कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयास किए हैं। लॉक डाउन से पहले और बाद की स्थिति का आकंलन के अनुसार अगर लॉक डाउन नहीं किया जाता तो 15 अप्रैल तक 41 प्रतिशत की ग्रोथ रेट के साथ कोरोना के 8 लाख से ज्यादा मामले सामने आ गए होते। वहीं देश में अगर सिर्फ कोरोना संक्रमण की रोकथाम के प्रयास किए जाते तो भी देश में 28.9 प्रतिशत की रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ते। यानि देश में 15 अप्रैल तक 1.2 लाख मामले सामने आते। दोनों प्रयास साथ किए गए तब देश में आज 7447 मामले सामने आएं हैं।
लॉक डाउन पर जोर देते हुए लव अग्रवाल ने कहा कि देश में लॉक डाउन और संक्रमण रोकने के सम्मलित प्रयास को बनाए रखने की जरूरत है। सोशल डिस्टेंसिंग ही सोशल वैक्सीन है इसलिए लोगों को इसका पालन गंभीरता से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में कोरोना को लेकर जागरुकता की आवश्यकता है। लोगों को इससे घबराना नहीं है बल्कि जागरूक रहना है।
देश में बनाए गए 586 कोविड के अस्पताल
संयुक्त सचिव ने बताया कि राज्यों ने कोविड के मरीजों के लिए अलग अस्पताल की व्यवस्था करना शुरू कर दिया है। देश में अब तक कुल 586 कोविड के अस्पताल बनाए जा चुके हैं। इसके साथ इनमें 1 लाख से ज्यादा आईसोलेशन बेड और 11.5 हजार आईसीयू बेड तैयार कर लिए गए हैं। कोरोना के जांच के लिए देश में 146 सरकारी लैब और 66 निजी लैब में जांच का काम किया जा रहा है। पिछले 24 घंटों में 16564 सैंपल की जांच की गई है। अब तक देश में करीब पौन दो लाख टेस्ट किए जा चुके हैं।