‘हल्ला बोल’ सफ़दर हाशमी… पति की मौत के बाद पत्नी ने पूरा किया हाशमी का अधूरा नाटक

अंकुर त्यागी

वह भी क्या मंजर रहा होगा जब पति की मौत का मातम मनाने की जगह माला हाशमी ने पति के अधूरे नाटक को पूरा किया। आंख में आंसू, मन की पीड़ा साथ लेकर वह नुक्कड़ नाटक करती रहीं…

1989 में आज के दिन दुनिया जब नए साल का जश्न मना रही थी तब सफ़दर हाशमी श्रमिकों की मांग को लेकर अपने थिएटर ‘जनम’ के साथ हल्ला बोल नामक नुक्कड़ नाटक करने के लिए गाज़ियाबाद जिले के झंडापुर गांव जा रहे थे। झंडापुर गांव का चयन करने की वजह यह थी की ‘जनम’ अपना नुक्कड़ नाटक मजदूर बस्तियों और फैक्ट्रियो के आस पास करता था और झंडापुर गांव वैसा ही था।

पत्नी ने पूरा किया था हाशमी का अधूरा नाटक

कहा जाता है की नाटक के दौरान कोंग्रस नेता मुकेश शर्मा और सफ़दर हाशमी में निकलने के लिए रास्ता देने को लेकर बहस हो गयी, जिसके बाद शर्मा के समर्थकों ने हाशमी पर हमला बोल दिया जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे। अगले ही दिन, दो जनवरी को 34 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। जिस स्थान पर सफ़दर हाशमी पर हमला हुआ था, उसी स्थान पर मौत के दो दिन बाद उनकी पत्नी माला हाशमी और समर्थकों ने मिलकर सफ़दर हाशमी के अधूरे नाटक को पूरा किया था।

कौन थे सफ़दर हाशमी

सफ़दर हाशमी का जन्म 12 अप्रैल सन 1954 को एक पढ़े लिखे और सुपरिचित कम्युनिस्ट परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ के एक स्कूल से हुई ,1970 में नई दिल्ली स्थित कन्नड़ स्कूल से हायर सेकेंडरी और 1975 में दिल्ली में विश्विवद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम ए किया। गढ़वाल कश्मीर और दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन के बाद वह बंगाल सरकार के सूचना अधिकारी के रूप में कार्यरत रहें। तदुपरांत 1984 में राजनितिक सांस्कृतिक कार्यकर्त्ता के रूप में कार्य करने के लिए नौकरी छोड़ दी।

सफ़दर हाशमी जन नाट्य मंच के संस्थापक के साथ-साथ एक सिद्धांतकार, राजनितिक रंगमंच और नुक्कड़ नाटक के अभ्यासी थे। अपनी मजबूत अकादमिक पृस्ठभूमि के कारण सफ़दर हाशमी ने प्रतिरोधक साहित्य को सशक्त किया। उनके लिखे नाटकों पर आज भी किसी विश्वविद्यालय के छात्र परफॉर्म करते हुए नज़र आ जायेंगे। सफ़दर हाशमी ने 24 नुक्कड़ नाटकों में 4000 से भी ज्यादा बार मंचन किया। इतनी कम उम्र में निधन होने से पहले सफ़दर हाशमी ने इतना बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था जो जीवंत अमर हो गया।

नुक्कड़ चौराहों पर देश के लिए संघर्ष करने वाले और मुखर सफ़दर हाशमी के द्वारा रचित कविता

किताबें करती हैं बातें
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दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की
ख़ुशियों की, ग़मों की फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
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क्या तुम नहीं सुनोगे
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किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
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नहीं जाना चाहोगे?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥

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