
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में नाबालिग के साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटना को दुष्कर्म के प्रयास के बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न माना है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दुष्कर्म का आरोप सही नहीं है और आरोपितों के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की एकल पीठ ने कासगंज के स्पेशल जज (पोक्सो कोर्ट) के समन आदेश को संशोधित करते हुए नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि दुष्कर्म के आरोप में जारी समन विधिसम्मत नहीं है। इस मामले में याची आकाश, पवन और अशोक पर आरोप है कि उन्होंने 11 वर्षीय पीड़िता के साथ यौन उत्पीड़न किया था।
यह मामला पटियाली थाने में दर्ज है, जिसमें आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (दुष्कर्म) और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 (बालकों के प्रति यौन उत्पीड़न से बचाव) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। हालांकि, हाई कोर्ट ने इन आरोपों को खारिज करते हुए आरोपितों के खिलाफ पोक्सो अधिनियम की धारा 9/10 और धारा 354-बी (निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपियों ने पीड़िता के वक्ष को छुआ, उसका नाड़ा तोड़ा और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, लेकिन राहगीरों के हस्तक्षेप के कारण आरोपित मौके से भाग गए। कोर्ट ने इस घटना को गंभीर यौन उत्पीड़न के रूप में देखा, लेकिन दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं माना। कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही का आदेश दिया और समन को फिर से जारी करने का निर्देश दिया।
वहीं, मथुरा जिला अदालत में विचाराधीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े सात अन्य सिविल वादों की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने की अर्जी दाखिल की गई है। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की तरफ से यह अर्जी दायर की गई थी। न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की पीठ ने इस अर्जी की सुनवाई करते हुए याची को इन वादों की प्रति तीन सप्ताह में दाखिल करने का निर्देश दिया।
मंदिर पक्ष की अधिवक्ता रीना एन सिंह ने कोर्ट को बताया कि 12 दिसंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित स्थगन आदेश इस मामले पर लागू नहीं होता, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने केवल अंतरिम आदेशों और सर्वेक्षण से जुड़े निर्देशों पर रोक लगाई है, लेकिन किसी व्यक्ति या पक्ष के संवैधानिक या विधिक अधिकारों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।
इस मामले से जुड़े कुल 18 सिविल वादों की सुनवाई इलाहाबाद हाई कोर्ट पहले ही कर रहा है। यह मामला न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की पीठ में सुनवाई के लिए रखा गया है।