हाईटेक हुई खाकी परन्तु हाथ में नहीं आयें अब तक लैपटॉप, थानो के कम्प्यूटर से चला रहें है काम 

उरई। हाईटेक हुई खाकी परंतु सुविधायें कुछ भी नहीं है और लैपटॉप जो कि विवेचक के हाथ में होना चाहिए था वो अब तक उनको नहीं दिए गए है जबकि सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट के सख्त निर्देश है कि मौके पर ही पूंछताछ करके तत्काल कम्प्यूटर से ब्यान दर्ज किए जायें ताकि बाद में किसी को भी उसमें ऐसा मौका न मिलें जो विवाद का कारण बनें लेकिन विवेचक को थानो के कम्प्यूटरों पर आश्रित होना पड रहा है जिसकी वजह से जो पारदर्शिता होना चाहिए थी नहीं हो पा रही है और इसका फायदा उठाकर कुख्यात अपराधी भी कभी कभी कानूनो दांवपेचों में पुलिस को फंसा कर बाइज्जत बरी हो जातें है।

मिलीं जानकारी के अनुसार शासन की हंटर नीति वास्तविक रूप से पुलिसकर्मियों पर हंटर जैसा ही काम कर रहीं है। वर्दी से लेकर अन्य चीजों में लगातार शोषण किया जा रहा है। वहीं एक दरोगा को तीन साल में एक बार वर्दी एलाउंस 6 हजार और क्षेत्राधिकारी को 6 साल में वर्दी के लिए मिलता है। जबकि आईपीएस श्रेणी के अधिकारियों को 25 हजार रूपए प्रतिवर्ष मेंटीनेंस के लिए भत्ता दिया जाता है। दरोगा को प्रतिमाह 750 रूपए पेट्रोल भत्ता दिया जाता है। वहीं अन्य अधिकारियों के लिए ईधन की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। जबकि विवेचक जो कि दिन रात घूमता रहता है और जो उसके एलाउंस तय किए गए है दो-चार दिन में ही खत्म हो जातें है।

 

वहीं थानो में जो सरकारी वाहन है उनका प्रयोग थानाध्यक्ष की मेहरबानी पर निर्भर करता है ऐसे में क्या आशा लगाई जा सकतीं है कि विवेचक अपने पद का दुरूप्रयोग नहीं करेंगा और कम खर्चा मिलने के कारण वों अपने कर्तव्य से हटकर काम करने का प्रयास नही करेंगा। ऐसे में जहां विवेचनायें प्रभावित होने के पूरे आसार है, वहीं लैपटॉप का भी वितरण अब तक न होने के कारण जो मौंके पर ब्यान दर्ज हो सकतें है, समय मिलते हीं ब्यानो में हेरफेर भी हो जाता है। विवेचक की मजबूरी है कि उसके पास कोई संसाधन तकनीकी ऐसे नहीं है जो 10 मिनट में कम्प्यूटर पर अपनी पूरी बात लिख दें। वहीं अभी भी कई विवेचक ऐसे है जो अंट्रेड है और वों अपनी कोई भी बात कंप्यूटर पर लिखवाने के लिए थानो में ट्रेंड लोगो के भरोसे रहतें है।

अगर इसमें जल्द हीं सुधार नहीं हुआ तो पुलिस के ऊपर जो आरोप अभी तक लग रहे है वो लगते रहेंगे। वहीं राजस्व के लेखपाल जो लैपटॉप से लैंश हो चुकें है इतना हीं नहीं उनके पास एंड्रायड फोन भी उपलब्ध कराए जा चुकें है परंतु पुलिस की व्यवस्था में कोई भी सुधार नहीं हो रहा है जबकि छोटे से लेकर बडे तक इस खाकी की अहम भागीदारी होती है। जनहित में उत्तर प्रदेश सरकार एवं पुलिस के उच्चाधिकारियों से मांग की जाती है कि जो स्थिति मौजूदा समय में पुलिस महकमें की हो रहीं है उसमें सुधार की जरूरत है अन्यथा की स्थिति में सिर्फ बातें होती रहेंगी और पुलिस पर भ्रष्टाचार के जो आरोप लोग आराम से लगाते है वों लगते रहेंगें।

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