हिन्दी मात्र एक भाषा ही नहीं बल्कि एक विचार है: प्रवीन अग्रहरि

‘हिन्दी साहित्य के नये शिल्पकार’ साहित्यिक संस्था तीखर की यह टैगलाइन तीखर के कार्यों को बयां करती है। क्लासिक हिन्दी से लेकर नये युवाओं के कविताएं और रचनाएं आदि को सजा सँवारकर इंटरनेट में पोस्टर और वीडियो के माध्यम से धूम मचाने वाली संस्था तीखर (Teekhar) 2018 में बनी थी। इसके फाउन्डर प्रवीन अग्रहरि (Praveen Agrahari) बताते हैं कि आज से 5 साल पहले हिन्दी साहित्य इंटरनेट में ज्यादातर टेक्स्ट फॉर्म में होता था। लेकिन आज व्हाट्सअप स्टेटस, फ़ेसबुक पोस्ट में हिन्दी की रचनाएं, लाइंस कोटेशन देखकर उनको खुशी होती है। मैथलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, निराला, कबीर, मीरा आदि जैसे हर दौर के लेखक एवं कवि की रचनाएं तीखर पोस्टर के रूप में नये ढंग से प्रकाशित करती है। इसके अलावा तीखर ‘विदेश में हिन्दी’ शृंखला के तहत तमाम हिन्दी भाषी विदेशियों एवं विदेश में रहने वाले हिन्दी साहित्यकारों का साक्षात्कार भी करता है। अभी तक लगभग 22 देश के हिन्दी साहित्यकारों को तीखर के ऑनलाइन मंच पर लाया जा चुका है।

अपने सोशल मीडिया हैंडेल्स के माध्यम से तीखर समय-समय पर हिन्दी की प्रतियोगिताएं भी आयोजित करवाता है जिससे कि आम-जनमानस भी हिन्दी से जुड़ाव महसूस कर सके। संस्थापक प्रवीन अग्रहरि ने बताया कि तीखर की तरफ से काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया जाता है। यह एक प्रकार का ओपन माइक होता है जिसमें लोग अपनी रचनाएं साझा करते हैं।

भविष्य में तीखर हिन्दी कोटेशन के पोस्टर भी लोगों को उपलब्ध कराएगा जिससे कि हिन्दी के सूक्तियों, विचारों से सुसज्जित पोस्टर घरों की शोभा बढ़ा सके। प्रवीन अग्रहरि का मानना है कि 2-3 लाइन पढ़कर ही लोग उस रचनाकार की रचनाएं पढ्न को उत्सुक होते हैं। पोस्टर उनके लिए पाठकों को रचनाकारों तक पहुँचाने का माध्यम है। वह एक सेतु का काम कर रहे हैं जिससे कि पाठक अपने प्रिय रचनाकार की रचनाओं तक पहुँचता है। पोस्टर के साथ-साथ वीडियो, रील्स और शॉर्ट्स भी तीखर की कलात्मकता के साथ जुड़े हैं। पेश हैं प्रवीण अग्रहरि से बातचीत के कुछ खास अंश –

तीखर क्या है ? और इसका उद्देश्य क्या है?

तीखर, हिन्दी साहित्य का नया शिल्पकार है। यह संस्था पीढ़ियों की हमारी साहित्यिक विरासत को विभिन्न माध्यमों के द्वारा युवाओं तक बड़े ही आकर्षक तरीके से, सजा संवार कर नये कलेवर के साथ पहुँचाने का काम करती है।

तीखर का मानना है कि आज के दौर में विषयवस्तु कितनी भी श्रेष्ठ क्यों ना हो, उसके प्रसार के लिए उसका प्रस्तुतिकरण भी बेमिसाल होना चाहिए। साहित्य में तमाम ऐसी चीजें निहित हैं जो समाज को नई दिशा दे सकने में, उसको बेहतर बनाने में सक्षम है लेकिन जब तक वह साहित्य आसानी से लोगों तक पहुंचता ही नहीं तो तो यह उद्देश्य विफल हो जाता है। ऐसे में तीखर अपने आधुनिक माध्यमों से लोगों को साहित्य से जोड़ने के लिए प्रयासरत है। एक शब्द में कहा जाए तो तीखर एक ऐसा सेतु है जो लोगों को हिन्दी साहित्य तक पहुँचाने का काम करता है।

इसके साथ ही विश्व की दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिन्दी को एलीट क्लास तक, घरों-दफ्तरों में, कॉर्पोरेट्स में कैसे ले जाया जाए, तीखर इसी के लिए अपने नये-नये अनूठे प्रयासों के लिए जाना जाता है। यही इसका ध्येय है और यही इसका उद्यम।

आप मुख्यतः एक इंजीनियर हैं , फ़िर आपका रुझान हिन्दी की ओर कैसे हुआ?

रुझान की प्रक्रिया एक दिन में ही घटित नहीं होती यह लम्बे समय की प्रक्रिया होती है। बचपना बाबा के भजन गाते हुए, माँ के द्वारा मानस का पाठ सुनते हुए बीतता रहा। बड़े भैया से पढ़ने और लिखने की प्रेरणा मिली। एक और चीज थी जिसने हिन्दी के प्रति मेरे रुझान को प्रबल किया। ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका। यह आध्यात्मिक पत्रिका गायत्री परिवार, हरिद्वार से प्रकाशित होती है। बचपन में यह मेरे घर में हर महीने आती थी। इस पत्रिका में लिखे हुए आध्यात्मिक विचार कम कनेक्ट होते थे इसलिए सिर्फ कविता-कहानी ही पढ़ लिया करता। 

हिन्दी महज एक भाषा ही नहीं बल्कि एक विचार है, एक प्रकार का जीवन है। मेरी परवरिश से लेकर शिक्षा और कार्य सब इसी के इर्द गिर्द रहा है। इसलिए पेशे से इंजीनियर होने के बावजूद भी मुझमें हिन्दी का समावेश है।

आपकी संस्था तीखर का प्रेरणा स्रोत क्या है?

पढ़ाई पूरी करने के बाद 9 से 5 वाली जॉब लाइफ में पूरी तरह मशगूल होना पड़ा। समय के अभाव के चलते किताबें पढ़ना लगभग बंद सा हो गया। ऐसे में कभी-कभार दोस्तों के द्वारा व्हाट्सअप एवं फ़ेसबुक के जरिए कुछ पंक्तियाँ पढ़ने को मिल जातीं तो मन चहक उठता। लेकिन कोई ऐसा सोर्स नहीं मिल पा रहा था जो रेगुलर तरीके से साहित्य को मुझ तक पहुंचाता रहे। कहते हैं आपकी बेहतरी तब सिद्ध होती है जब आप वृहद परिप्रेक्ष्य में सोचते हैं। यह समस्या मेरे साथ- साथ तमाम उन लोगों के साथ भी थी जो अपने डेली रूटीन में बंधे हुए हैं। तीखर का ख्याल यहीं से उपज और एक निश्चित समय देकर तीखर की परिकल्पना की गई। 

एक नये लेखक और एक पुराने लेखक को सामने लाने में तीखर का क्या योगदान होता है?

सबसे पहले तो मैं इस प्रश्न को थोड़ा ठीक करना चाहता हूँ लेखक को सामने लाना तीखर का कोई योगदान नहीं अपितु उसका कर्तव्य है। लेखन वह रोशनी है जिसे देर सबेर लोगों के पास पहुंचना ही है। तीखर बस उस रोशनी की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करता है।

इन दिनों जब सबके पास समयाभाव है, हर कोई दिनभर सिर्फ वही कर पाते हैं, जो उनकी प्राथमिकताएं है। ऐसे में हमारी यह पीढ़ी ना चाहते हुए भी साहित्य और समाज से विमुख होती जा रही है। हम कम समय में उत्कृष्ट कन्टेंट उपलब्ध करा के उनको इस विमुखता से बचा रहे हैं। पढ़ना बहुत ही धैर्य का काम है, हम उनके धैर्य को चैलेंज नहीं करते हम उनको वही उपलब्ध कराने की कोशिश करते हैं, जो उनको हर दृष्टिकोण से पसंद आए। हमारा यह कार्य एक सम्भावना उत्पन्न करता है कि साहित्य, युवाओं के मध्य हमेशा प्रासंगिक बना रहे और आने वाली पीढ़ी इसे एक बीते जमाने का कल्चर ना माने।


आपके कार्यों में जिन रूकावटों, बाधाओं या परेशानियों से आप या आपके संगठन रूबरू हुए, उनमें से कुछ बताइये ?


आँख मूँदकर नदी का चित्र सोचिये…. आपको वही नदी ज्यादा आकर्षक लगेगी जो पहाड़ों के बीच से होकर टेढ़ी मेढ़ी आई है। रुकावटें, बाधाएं वस्तुत: हमारा सौन्दर्य बढ़ाती हैं। स्वामी विवेकानंद कहते हैं- “जब आपके सामने समस्याएं ना आएं तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।” रुकावटें आईं…. बेशक आईं, लेकिन मेरा ये सौभाग्य रहा है कि ऐसे समय में मुझे मेरे शुभचिंतकों का सहयोग जरूर मिलता है। मेरे परिवार ने हर तरह से आश्वस्त कर के मेरा मनोबल बढ़ाया। एक समय पर जब ‘तीखर’ के लिए मैंने अपनी जॉब छोड़ी तो आर्थिक असुरक्षा से चिंतित हुआ और तब मेरे परिवार ने मुझसे सवाल-जवाब करने की बजाय मुझे ‘जो मैं चाहता हूँ’ करने को प्रेरित किया। सहज प्रवृत्ति आपको हमेशा समस्याओं से निजात दिलाती है। नदी अगर अनम्य हो जाए, “नहीं मैं पहाड़ लाँघकर ही जाऊंगी” तो विद्रोह की अवस्था उत्पन्न होगी, जो कि घातक है। वह चुपचाप अपनी सहज धारा में बहती चली जाती है। बहुत सी छोटी-बड़ी समस्याएं आईं, लेकिन इस प्रवृत्ति के साथ मैंने बहुत ही आसानी से सबको फेस किया और आज दूर से देखने में सब समस्याएं छोटी ही नज़र आती हैं।

आपके कार्य से भारतीय संस्कृति कितनी प्रभावित होती हैं ? इससे अपनी संस्कृति कितनी अक्षुण्ण रह सकती हैं ?

संस्कृति के संचार का माध्यम है- साहित्य। संस्कृति का व्यापक, विस्तृत स्वरूप साहित्य से ही निर्मित हो सका है। वस्तुत: जब हम संस्कृति की बात करते हैं तो साहित्य उसमें निहित होता है। तमाम धर्मग्रन्थ, पुराण, हदीस यह सब साहित्य ही थे जो हमारे लिए इतने पूज्य हो गये। सदियों पहले कबीर, तुलसी, मीरा इन्होंने हमें संस्कृति का जो स्वरूप निर्मित कर के दिया है वह साहित्य से सम्बद्ध है। आज के दौर में हम अपनी संस्कृति को सहजता से स्वीकारने में इसीलिए सक्षम हैं, क्योंकि हम उनसे अवगत है। सोचिये, यदि संस्कृति का बोध ही ना रहे तो… साहित्य वह हथेली है, जिनसे हम अपनी पीढ़ियों को संस्कृति सौंपते हैं।

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