
- राजा जंग बहादुर ने तामीर करवाई थी इमारत
- हाजी वारिस पाक देवा बाराबंकी ने रखी थी गौसिया हाल की नीव
- चित्र परिचय : जर्जर हालत में ऐतिहासिक धरोहर गौसिया हाल
नानपारा तहसील/बहराइच। नानपारा स्थित प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर गौसिया हाल आज जिम्मेदारों के देखरेख व मरम्मत के अभाव में अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। सुन्नी वक्फ बोर्ड वक्फ़ नंबर 50 गौसिया हाल ग्यारवी कोठी राजा जंग बहादुर खान ने अपने रियासी वक्त 1885 से 1892 के बीच में बनवाई थी, तभी से माह रबीउस्सानी की तारीख 9,10 और11 को तीन रोजा 11वीं का कार्यक्रम होता था जिसे शबेरोज मिलाद शरीफ शमा, कुरान ख्वानी, कुल शरीफ तकरीर मुशायरा और बड़े पीर साहब की निशानियां रियासत की तरफ से खाना पहुंचता था। बाहर से तमाम उलमा ईकरार फुकरा शायरा और कव्वाल रियासत को संभालने के बाद राजा जंग बहादुर खान इराक के बगदाद शहर गए।
कई साल तक बगदाद शरीफ गौस पाक की दरगाह पर रहे। राजा जंग बहादुर खान का रहन-सहन फकीरी मिजाज का था और वहां गौसे आजम की दरगाह से वापस आने वाले हुए तो उन्होंने वहां के जिम्मेदारों से गौस पाक की निशानी चाही। जिस पर उस वक्त के सज्जादा नशीन ने राजा जंग बहादुर खान को सरकार गौस पाक की दाढ़ी के बाल मुबारक नक्श दस्त ए रसूल अकरम सल0 गौस पाक की सदरी, शरीफ कासा और शिजरा गौस पाक का दिया, साथ ही बड़े पीर साहब की मजार शरीफ की मिट्टी भी दिया।
राजा जंग बहादुर ने नानपारा आकर बैरूनी मुल्कों से राजगीर बुलाकर नानपारा के लाल महल के निकट गौसिया हाल का निर्माण कराया था। उसके बगल में राजा मंजिल बनवाई। हाल के अंदर ही एक कक्ष बनवा कर उसमें बड़े पीर साहब की मसनवी मजार बनवाई और उसके अंदर इराक से लाई गई बड़े पीर साहब की सभी निशानी रखी गई और तभी से बड़े ही धूमधाम से यहाँ ग्यारहवीं शरीफ मनाई जाने लगी। गौसिया हाल की नीव बाराबंकी के हाजी वारिस पाक और राजा जंग बहादुर ने संयुक्त रूप से रखी थी। गौसिया हाल में राजा जंग बहादुर ने दूसरे देशों से बेशकीमती फानूस हसीन नक्काशी वाले कलाम और बहुत बड़े-बड़े आईने मंगवा कर हाल की सुंदरता बढ़ाई थी। हाल के बाहर बरामदा औरतों के बैठने के लिए बनवाया गया था।
यह सिलसिला चलते चलते राजा शहादत अली खां के समय में भी बड़े ही शानो शौकत के साथ चलता रहा, मगर राजा सहादत अली खां ने पुराने कार्यक्रम में यह किया कि आखिरी दिन गौसिया हाल से जुलूस चादर के साथ जामा मस्जिद जाकर जंग बहादुर की मजार पर चादर चढ़ाई और बाद कुरान ख्वानी व सामूहिक दुआ हुई।
वर्तमान में गौसिया हाल देखरेख व मरम्मत के अभाव में अपनी बदहाली को लेकर रो रहा है। हाल की एक दीवार गिर चुकी है। कई सालों से रंगाई पुताई नहीं हुई है। सैकड़ों साल पुराना भवन होने के कारण यदि समय से देखरेख नहीं हुई तो सिर्फ उसकी कहानी रह जाएगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड भी ध्यान न देकर सिर्फ औपचारिकता पूरी कर रहा है। आवाम व प्रशासन का ध्यान भी इस ऐतहासिक धरोहर की ओर नहीं जा रहा है। इस बार कोविड19 को देखते हुए नियमो का पालन करते हुए सिर्फ़ एक दिन ही फ़ातिहा और मिलाद हो पाया। कभी हमेशा जायरीनों व अकीदतमंदों से गुलजार रहने वाली यह ऐतहासिक धरोहर अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है।