वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग होता है जिसे आनंद या उल्लास कहते हैं, लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों से भी होली का त्यौहार मनाते हैं. मान्यता है कि इस दिन स्वयं को ही भगवान मान बैठे हरिण्यकशिपु ने भगवान की भक्ति में लीन अपने ही पुत्र प्रह्लाद को अपनी बहन होलिका के द्वारा जीवित जला देना चाहा था, लेकिन भगवान ने भक्त पर अपनी कृपा की और प्रह्लाद के लिए बनाई चिता में स्वयं होलिका जल मरी. इसलिए इस दिन होलिका दहन की परंपरा भी है.
बताते चले काफी समय बाद दोनों ही दिन मातंग योग बन रहा है। भद्रा के अधिक समय रहने के कारण इस बार होलिका दहन बुधवार की रात्रि नौ बजे के बाद हो सकेगा। सात साल बाद बृहस्पति के उच्च प्रभाव में दुल्हैंडी यानी रंगोत्सव होगा। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, होलिका दहन का मुहूर्त किसी भी त्योहार के मुहूर्त से अधिक महत्वपूर्ण है।
किसी अन्य पर्व की पूजा अगर उपयुक्त समय पर न की जाए तो केवल पूजा के लाभ से वंचित होना पड़ेगा। वैदिक काल में इस पर्व को नवान्नेष्टि कहा गया। इसमें अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है।
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं. होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं. कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है.
शुभ मुहूर्त
20 मार्च 2019 को होलिका दहन है इस दिन सुबह 9 बजकर 44 मिनिट दिन से भद्रकाल लग रहा है जो रात्रि 8 बजकर 36 मिनिट तक रहेगा इस भद्राकाल में होलिका दहन शुभकारी नही होता है. इसके बाद ही होलिका दहन करना मंगलकारी रहेगा. होली की तैयारी हर घर में शुरू हो गई है. घरों के साथ-साथ बाजार भी सजने लगे हैं. होली के दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर गले मिलते हैं और पुराने गिले-शिकवों को दूर करते हैं.
होलिका की पवित्र अग्नि में लोग जौ की बाल और शरीर पर लगाए गए सरसों के उबटन को डालते हैं. ऐसी मान्यता है कि ये करने से घर में खुशी आती है. होलिका दहन भद्रा में कभी नहीं होता. होली के अगले दिन दुल्हंडी का पर्व मातंग योग में मनाया जाएगा. दोनों दिन क्रमश: पूर्वा फागुनी और उत्तरा फागुनी नक्षत्र पड़ रहे हैं. स्थिर योग में आने के कारण होली का शुभ पर्व माना गया है.
होलिका पूजन विधि
होली में अग्नि प्रज्योलित करने से पूर्व होलीका का पूजन करने का विधान है. जातक को होलिका का पूजा करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजन करने के लिए माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज में गेंहू की बालियां और साथ में एक लोटा जल रखना चाहिए और उसके बाद होलिका के चारों ओर परिक्रमा करनी चाहिए. अगले दिन होली की भस्म लाकर चांदी की डिबिया में रखना चाहिए.
होलिका की पवित्र आग में लोग जौ की बाल, सरसों की उबटन, गुझिया, फल, मीठा, गुलाल से होली का पूजन करते हैं। राग और रंग होली के दो प्रमुख अंग हैं।
सातों रंगों के अलावा, सात सुरों की झंकार इसका उल्लास बढ़ाती है। गीत, फाग, होरी, धमार, रसिया, कबीर, जोगिरा, ध्रुपद, छोटे’बड़े ख्यालवाली ठुमरी होली की पहचान है।
Holika dahan shubh muhurat
रात्रि: 8:58 बजे से 12:13 बजे तक।
भद्रा पूंछ:
शाम 5:24 से 6:25 बजे तक।
भद्रा मुख:
शाम 6:25से रात 8:07बजे तक।
इसलिए भद्रा में नहीं जलती होली
ज्योतिषाचार्य के अनुसार भद्रा में होलिका दहन नहीं होता है। भद्रा को विघ्नकारक माना जाता है। इस दौरान होलिका दहन से हानि एवं अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसीलिए भद्रा काल छोड़कर होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थितियों में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जाता है। मगर इस वर्ष अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे पहर में ही समाप्त हो जाएगी।
पश्चिम भारत में मात्र 10 मिनट
इस बार होलिका दहन में समय बदला है। सामान्यत: यह शाम 4 बजे के बाद होता है लेकिन इस बार भद्र मुख के कारण होलिका दहन का कार्यक्रम थोड़ी देर से शुरू होगा। मुंबई और पश्चिम भारत में होलिका दहन के लिए काफी कम समय मिलेगा। मात्र 10 मिनट। यह 8.57 से शुरू होकर 9.09 तक चलेगा।