हाेली विशेष : पीठ पर पड़ते ही दर्द नहीं, खुशियां देते हैं जयपुर के गुलाल गोटे

जयपुर। राजा-रजवाड़ों के जमाने में करीब तीन सौ साल पहले राजपरिवार की एक परम्परा अब देश के साथ ही विदेशों में भी राजधानी जयपुर का नाम रोशन कर रही है। जयपुर शहर के छोटी चौपड़ स्थित मनिहारों के रास्ते पर होली के आगमन से कुछ दिन पहले ही मुस्लिम परिवार इस परंपरा को निभाने के काम आने वाली सामग्री तैयार करने में जुट जाती है। यह परंपरा अरब देशों से जयपुर में आई थी और इसे आज भी निभाया जाता है। यह परंपरा है गुलाल गोटे की। यहां होली खेलने के लिए लड्डू के आकार के गुलाल गोटे बनाए जाते हैं। ये गुलाल से बनते हैं, जो होली के दौरान एक-दूसरे पर फेंके जाते हैं। ये तन पर लगते ही फूट जाते हैं और फिजाओं में गुलाल के सात रंग व खुशबू बिखेर देते हैं। होली खेलते समय जब ये पीठ पर गोल-गोल गोटे पड़ते हैं, तो बिखरने वाले सात रंग जयपुर आने वाले लोगों की यादों में राजस्थान की यादें ताजा रखते हैं। खासियत यह भी है कि होली हिन्दुओं का त्योहार है, लेकिन इसमें खुशनुमा रंग जयपुर के मुस्लिम कारीगर परिवार भरते हैं।
जयपुर में खास तौर पर लड्डू के आकार के गुलाल गोटे तैयार किए जाते हैं और कई परिवार सालों से इस काम में लगे हुए हैं। गुलाल गोटा की महिला कारीगर मुसर्रत जहां कहती हैं कि उनका परिवार कई सालों से गुलाल गोटा बनाने की परम्परा निभा रहा है। उनके पूर्वजों को कच्छावा राजा ने 300 साल पहले अरब से लाकर यहां बसाया था। राजपरिवार उनके पूर्वजों के बनाए गुलाल गोटों से होली खेलता था, लेकिन अब ये खेल राज परिवार से निकलकर आम जनता तक पहुंच चुका है।
सिर्फ राजस्थान ही नहीं, मथुरा के उदासीन कासीन आश्रम में जयपुर के मणिहार मुस्लिम परिवार द्वारा गुलाल गोटा तैयार किया जाता है, जिसे सम्पूर्ण श्रद्धा से सराबोर होकर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पित किया जाता है। इसके बाद वहां होली शुरू होती है। साथ ही, गुजरात के स्वामी नारायण मंदिर में भी गुलाल गोटे यहीं से जाते हैं।
गुलाल गोटे की होली का इतिहास काफी पुराना है। इनका प्रचलन जयपुर के आमेर से शुरू हुआ था। आमेर तब जयपुर रियासत की राजधानी हुआ करता था। 1727 में महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी, उस समय इन कारीगरों को आमेर से लाकर जयपुर स्थित मनिहारों के रास्ते में बसाया गया था। तब से लेकर आज तक ये कारीगर पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाल गोटा बनाने का काम करते आ रहे हैं। शाही होली का प्रतीक रहे लाख से बने ये गुलाल गोटे अब जयपुर की खास पहचान बन चुके है। आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक पहुंच गई है। अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड, सिंगापुर आदि देशों के पर्यटक इसे खरीद कर ले जाने लगे है, जिसके चलते विदेशो में इसकी मांग बनी है।
गुलाल गोटे का वजन महज दस से पन्द्रह ग्राम होता है। इसमें लाख को गर्म कर फूंकनी की मदद से फुलाकर उसमें गुलाल भरी जाती है। लाख की परत इतनी नरम और हल्की होती है कि किसी पर फेंकने से वह टूट जाती है और सामने वाला अलग-अलग खुशबूदार अरारोट की गुलाल से सराबोर हो जाता है। देश के अलावा कारीगरों को अब मुंबई के रास्ते विदेशों में आस्ट्रेलिया, फ्रांस, इटली के लिए आर्डर मिलने लगे हैं, फिर भी समय के साथ गुलाल गोटों का क्रेज कम हो रहा है।
बताया जाता है कि पहले जयपुर के राजा अपनी प्रजा के साथ होली खेलने के लिए हाथी पर बैठकर निकला करते थे और इन्हीं गुलाल गोटे से होली खेला करते थे। जिस बाशिंदे पर राजा का गुलाल गोटा लगता था, वो खुद को खुशनसीब समझता था। आज भी गुलाल गोटा मनिहारों के रास्ते से बनकर सिटी पैलेस जाता है। अब ये गुलाल गोटा महज पूर्व राजपरिवार के लिए नहीं बल्कि आमजन के लिए भी तैयार होता है। जयपुर वासी दूसरे शहरों में रहने वाले अपने संबंधियों को गुलाल गोटे के पैकेट उपहारस्वरूप भी भेजते है। गुलाबी नगरी बसने के समय से गुलाल गोटे केवल पूर्व राजपरिवार और ठिकानेदार ही इस्तेमाल किया करते थे, लेकिन आज गुलाल गोटे की प्रसिद्धि विदेशों तक जा पहुंची है, जिसके चलते इसकी मांग भी बढ़ी है।

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