विश्वगुरु की कतार में


मन में प्रायः जो कई विचार आते हैं उनमें सबसे पहला यह है कि विश्व इतना आगे बढ़ गया, लेकिन हमारा भारत शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी इतना पिछड़ा हुआ क्यों है! मैं विश्व के कई विकसित देशों में गया। कभी सामान्य रिपोर्टिंग के लिए तो कभी चुनाव कवरेज के लिए। उन्होंने जो प्रगति की है, उसे निकट से देखा और उसके बारे में जानने के प्रयास भी किए। उससे व्यक्तिगत रूप से स्वयं खूब प्रेरित होता रहा, लेकिन दुख तब और होता था जब पलटकर सोने की चिड़िया कहे जाने वाले अपने भारत की ओर देखता। यह सही है कि हमारा देश सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा और बुरी तरह से विदेशी आक्रांताओं ने इसे निचोड़-निचोड़कर चूसा, अकूत धन संपदा लूटकर ले गए। यहाँ तक कि जानबूझकर हमारी परंपरागत शिक्षा व्यवस्था का दमन करके हम पर जबरिया अपनी संस्कृति थोपते रहे। इस उद्देश्य से कि यहाँ के लोग मानसिक रूप से उस तरह विकसित न होने पाएँ जिस तरह विश्व के अन्य देशों के लोग हो रहे हैं। हम उसे मानते रहे क्योंकि उनके मनमुताबिक चलना हम भारतीयों की मजबूरी थी और उनकी साजिश। मेरे मन में यह बात हर पल रहती है कि हम कितने पिछड़े थे और इसलिए हमें सताया गया, हमारा फायदा उठाया गया। वैसे लुटेरों का उद्देश्य ही यही होता है कि लूट के धन से अपना मान-सम्मान बढ़ाएँ और दूसरों को अपमानित करते रहें। लूटे भी वही जाते हैं जो असंगठित और सीधे होते हैं। आखिर 15 अगस्त 1947 को भारत दो टुकड़ों में बँटकर आजाद हुआ।

मोहम्मद अली जिन्ना जो ब्रिटेन से ही बैरिस्टर होकर आए थे और बंबई हाईकोर्ट के अच्छे वकील थे, राजनीति में उनका प्रवेश हुआ। शुरू में वह हिंदू मुस्लिम एकता के अग्रदूत माने जाते थे, लेकिन 1940 में मुस्लिम लीग के अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो भिन्न धार्मिक दर्शनों, सामाजिक रीति-रिवाजों और साहित्य से ताल्लुक रखते हैं। उनमें रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं है और हकीकत में वे दो अलग-अलग सभ्यताओं से ताल्लुक रखते हैं, जो मुख्यतः परस्पर विरोधी विचारों और मान्यताओं पर आधारित है। जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग-अलग है। यह महज एक ख्वाब है कि हिंदू और मुसलमान एक साझी राष्ट्रीयता विकसित कर सकते हैं। और इस एकीकृत हिंदुस्तानी राष्ट्र का गलत विचार अपनी सीमाओं को पार कर गया है। यह हमारी समस्या का बहुत बड़ा कारण है और हम वक्त रहते अपनी कार्यवाहियों को संशोधित करने में नाकामयाब रहे तो यह देश को विखंडन की ओर ले जाएगा। 7 अप्रैल 1946 को डॉन में एक समाचार छपा जिसमें बताया गया कि मुस्लिम लीग के टिकट पर चुनाव जीतकर आए 400 विधायकों ने भाग लिया। यह बैठक जिन्ना ने बुलाई थी और इसमें एक आजाद पाकिस्तान की माँग फिर से दोहराई गई। गांधी जी ने देश की अखंडता को बरकरार रखने के लिए एक आखिरी कोशिश के तहत जिन्ना से आजाद भारत की सरकार का नेतृत्व संभालने का आग्रह किया। लेकिन, इस प्रस्ताव को कांग्रेस का समर्थन हासिल नहीं था और जिन्ना इसे किसी सूरत में स्वीकार नहीं कर सकते थे।

गांधी जी ने पहले ही कांग्रेस के नेताओं को सतर्क किया था कि आजादी हिंदुस्तान को मिल रही है कांग्रेस को नहीं। इसलिए उन्होंने कहा था कि मंत्रिमंडल के गठन में सभी काबिल लोगों को जगह मिलनी चाहिए, चाहे वह किसी भी पार्टी के क्यों न हों। जब संविधान सभा की बैठक रात्रि सत्र के बाद खत्म हुई और जवाहरलाल नेहरू गवर्नर जनरल को अपने मंत्रियों की सूची सौंपने गए तो उन्होंने एक खाली लिफाफा गवर्नर जनरल को पकड़ा दिया। देखा गया तो उससे सूची गायब थी, लेकिन संयोगवश समारोह शुरू होते समय वह खोया हुआ कागज का टुकड़ा मिल गया। इस सूची में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अतिरिक्त 13 अन्य मंत्रियों के नामों की सूची शामिल थी। जिसमें कद्दावर वरिष्ठतम नेता सरदार बल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और चार अन्य युवा कांग्रेसी नेता शामिल थे। इसके अलावा इसमें तीन ऐसे लोग शामिल थे जो जन्मजात कांग्रेस विरोधी रहे थे। इनमे एक थे मद्रास के आर के षणमुखम शेट्टी। शेट्टी के बारे में कहा जाता था कि वह वित्त संबंधी मामलों के बेजोड़ जानकार हैं। दूसरे इस तरह के मंत्री थे बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर, जो कानून के मशहूर ज्ञाता थे और तीसरे थे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल के अग्रणी नेता थे और और उस समय हिंदू महासभा से ताल्लुक रखते थे।

आजादी काल के एक इतिहासकार के अनुसार देशी रजवाड़ों की संख्या 521 थी जबकि दूसरे अभिलेख 565 बताते हैं। एक तरफ कश्मीर और हैदराबाद जैसे विशाल रजवाड़े थे, जो यूरोप के किसी देश के बराबर थे तो दूसरी तरफ छोटी-छोटी जमींदारियाँ और जागीरें भी थीं जिनके तहत एक से दो दर्जन गाँव ही आते थे। 3 जून 1947 को अंग्रेजों ने आखिरी तौर पर अपनी वापसी की घोषणा की। ऐसी स्थिति में कुछ रजवाड़े अब अपने लिए आजाद राज्य पाने के लिए मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लगे। वे सोचने लगे कि कई टुकड़ों में बटे हिंदुस्तान में अब उनका भी एक स्वतंत्र राज्य होगा। सौभाग्य से कांग्रेस ने इन रजवाड़ों की समस्या के समाधान का जिम्मा प्रशासनिक कार्यों में सख्त और अनुशासित माने जाने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंप रखा था। 1947 में सरदार ने कई पार्टियों का आयोजन किया जहाँ उन्होंने अपने इन अतिथियों राजा महाराजाओं से कहा कि वे हिंदुस्तान का नया संविधान बनाने में कांग्रेस की मदद करें। साथ ही उन्होंने इन रजवाड़ों को पत्र लिखा कि वे कांग्रेस के साथ समझौता करना स्वीकार कर लें जो अब हिंदुस्तान पर हुकूमत करने वाली है। बीकानेर के महाराजा उन राजाओं में से एक थे जो सबसे पहले पटेल के पक्ष में आ गए । उन्होंने दूसरो से बहुत पहले भाँप लिया था कि एशिया के इतिहास का वास्कोडिगामा युग बहुत ही जल्द खत्म होने वाला है। फिर सभी राजा-रजवाड़े सरदार की शरण में आते गए जो खंड-खंड में भारत को विभाजित होकर अखंड भारत के डूबने का सपना देख रहे थे। इतनी सारी बातें एक दिन में नहीं हुईं, इसमें समय लगा। पर अब भारत विश्वगुरु बनने की कतार में है। वह इसलिए क्योंकि हमारे पूर्वजों ने हमारी सारी कठिनाइयों को वर्षों पहले खत्म करके हमें प्रजातांत्रिक तरीके से सरकार चलाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया। हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं। अब पीछे देखने की कहाँ जरूरत है।

निशिकांत ठाकुर (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

(इस लेख में रामचंद्र गुहा की किताब भारत गांधी के बाद, जिन्ना भारत विभाजन के आईने में लेखक जसवंत सिंह, और मिस्टर और मिसेज जिन्ना, लेखिका शीला रेड्डी की पुस्तकों से कुछ अंश साभार लिए हैं)।

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