स्वायत्त अनुसंधान ख़तरे में भारत ने तम्बाकू पर अपना दृष्टिकोण बदला

लखनऊ 2 फरवरी 2024 :हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा चिकित्सकों के लिए एक निर्देश जारी किया गया है, जिसका अनुरोध संभवतः स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (डीजीएचएस) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएच) द्वारा किया गया है। इस पत्र में डॉक्टरों को निर्देश दिया गया है कि वो डीजीएचएस और एमओएच से पूर्व अनुमति लिए बिना ई-सिगरेट और हीटेड तंबाकू प्रोडक्ट्स (एचटीपी) से संबंधित ना तो कोई शोध शुरू करें, और ना ही उसमें हिस्सा लें।

यह निर्देश विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश के अनुरूप है, जो देश में इस विषय पर हो रहे चिकित्सा अनुसंधान में बड़ा बाधक है। देश को आत्मनिर्भर बनाने और अपने ज्ञान से दैनिक जीवन में परिवर्तन लाने के प्रधान मंत्री जी के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत में उच्च गुणवत्ता, वैज्ञानिक और इनोवेटिव अनुसंधान की ज़रूरत है। यह तभी संभव हो सकेगा जब प्राथमिक अनुसंधान किया जाएगा।

उदाहरण के लिए सरकार द्वारा तम्बाकू नियंत्रण के प्रयास तभी ज्यादा प्रभावी हो पाएंगे, जब उनके द्वारा इस्तेमाल की गई जानकारी तथ्यों पर आधारित होगी। निकोटीन के नए विकल्पों के प्रभाव को समझने और धूम्रपान करने वालों एवं ई-सिगरेट पीने वालों की तुलना के लिए उनके बीच के आँकड़ों को आधार बनाया जाना चाहिए। अगर डेटा की व्यावहारिक और वास्तविक रूप से तुलना नहीं की गई है, तो इस तरह के मामलों में भविष्य का मार्ग प्रतिबंधों और गार्डरेल्स का होता है।

यूके और स्वीडन ने निकोटीन विकल्पों के उपयोग के लिए एक अनुकूलित नीति अपनाई है। यूके के स्वास्थ्य विभाग का निष्कर्ष है कि निकोटीन के विकल्प पारंपरिक दहनशील तंबाकू के मुक़ाबले कम से कम 90% कम हानिकारक हैं, और 2.5 मिलियन धूम्रपान करने वालों को धूम्रपान का त्याग करने और तंबाकू की लत छोड़ने में मदद कर रहे हैं।

स्वीडन जल्द ही धूम्रपान मुक्त बनने वाला वाला पहला देश होगा। यहाँ पर नए निकोटीन विकल्पों की मदद से केवल 15 साल में धूम्रपान की दर 15% से गिरकर 5.6% हो गई। इसके अलावा, यहाँ कैंसर की 41% कम घटनाएं हुईं, जो पूरे यूरोपीय संघ में सबसे कम है। अमेरिका में हाल ही में आई सीडीसी की रिपोर्ट में सामने आया कि वयस्कों में वेपिंग की दर बढ़ी है, लेकिन वयस्कों या किशोरों में धूम्रपान की दर नहीं बढ़ी, दोनों ही समूहों में इसके उपयोग में गिरावट दर्ज हुई। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 2019 की रिपोर्ट के मुक़ाबले टीन वेपर्स में 61% कमी आई।

डब्ल्यूएचओ द्वारा हाल ही में जारी दस्तावेजों में देशों से सभी तम्बाकू उत्पादों पर रोक लगाने या उन्हें प्रतिबंधित करने और उन पर टैक्स लगाने की सिफ़ारिश की गई है। इस सिफ़ारिश में उन्हें स्वास्थ्य जोखिम के उसी वर्ग में शामिल करने के लिए कहा गया है, जिसमें पारंपरिक तम्बाकू उत्पाद हैं। यह इसके बावजूद है कि वैज्ञानिक प्रमाण प्रदर्शित करते हैं कि तम्बाकू जलाने से इसे गर्म करने की तुलना में काफ़ी ज्यादा नुकसान होता है।

इस दृष्टिकोण के विपरीत, नवंबर 2022 में कोक्रेन लाइब्रेरी ने निष्कर्ष निकाला कि “इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि निकोटीन युक्त ई-सिगरेट निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी की तुलना में धूम्रपान छोड़ने की दर बढ़ाते हैं।” वेपिंग के लिए उदार क़ानून रखने वाले देशों में, धूम्रपान वैश्विक औसत की तुलना में दोगुनी तेजी से कम हुआ है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में किसी भी वैज्ञानिक पहल के लिए अनुसंधान सबसे जरुरी है, खासकर तब, जब यह भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में हो। उचित मानकों, फोकस एवं तेज़ी द्वारा वह विश्लेषण सामने आ सकेगा, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में आगे बढ़ने और प्रगतिशील नीति को आकार देने में मदद करेगा। हर नागरिक को यह सूचना पाने का अधिकार है कि क्या यह दृष्टिकोण तर्क द्वारा समर्थित है। अनुसंधान बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए यदि अनुसंधान के दृष्टिकोण में कोई कमी आती है, तो यह सरकारी मशीनरी एवं नागरिकों के सूचना के अधिकार से समझौता होगा। और संभवतः इससे तम्बाकू के नुकसान से जीवन को बचाने का एक विकल्प बंद हो जाएगा।

भारत के मामले में यदि डीजीएचएस द्वारा जिस डेटा पर भरोसा किया जा रहा है, वह माध्यमिक अनुसंधान से ना होकर विश्वसनीय उत्पाद अनुसंधान से प्राप्त गहन और विस्तृत जानकारी पर आधारित हो, तो डीजीएचएस के निर्देश में सुधार की गुंजाइश है। उदाहरण के लिए, ई-सिगरेट यूज़र्स और धूम्रपान ना करने वालों की तुलना नुकसान में कमी का अध्ययन करने के लिए धूम्रपान करने वालों और ई-सिगरेट यूज़र्स की तुलना के बराबर विश्लेषण प्रदान नहीं करेगी। इस तरह के कई निष्कर्ष अगर कुशलतापूर्वक और उतना ही ध्यान केंद्रित करके निकाले जाएं, जितना ध्यान भारत सरकार अन्य चिकित्सा उत्पादों और औषधीय सॉल्ट्स पर देती है, तो इससे बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिल सकती है। यदि तंबाकू नियंत्रण की नीतियों में ऐसे अनुसंधान केंद्रित दृष्टिकोण का उपयोग किया जाए, तो वो जानकारी पर आधारित होकर तंबाकू से होने वाले नुकसान को कम कर सकती हैं।

डिसीज़न-मेकर्स के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए एक अनुकूलित तंबाकू नियंत्रण नीति का मसौदा तैयार करना बहुत आवश्यक हो गया है। अनुसंधान, जो प्रभावी नीतियां ला सकता है, उसने हमें ऐतिहासिक महत्व की जन स्वास्थ्य क्रांति के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। हम वही कर सकते हैं जो इतने लंबे समय से जन स्वास्थ्य की कई अन्य समस्याओं के लिए बहुत अच्छा काम कर रहा है। इसके लिए हमें केवल विज्ञान, तर्क और मानवतावाद को अपनाने की आवश्यकता है। सरल शब्दों में ‘विकसित भारत @2047’ की ओर पूरी क्षमता से बढ़ने के लिए भारत को अनुसंधान के अपने स्वर्ण मानक को वापस लाने की जरूरत है।

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