इंदिरा हो या माया जनता ने सबकों छकाया 

योगेश श्रीवास्तव
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लखनऊ। देश की राजनीति की दशादिशा तय करने वाले विभिन्न दलों के कई दिग्गजों को जहां प्रदेश की जनता ने सर आंखों पर बिठाया वहीं कई मौकों पर उन्हे धूल चटाई। सभी दलों के दिग्गजों को अलग-अलग चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। रामनोहर लोहिया हो या दीनदयाल उपाध्याय या फिर अटल सरीखे नेता इन सभी दिग्गजों को यहां के वोटरों ने अपनी बारी में उन्हे नकार दिया।
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अब तक यूपी से हुए नौ प्रधानमंत्रियों में पांच लोगों को यहां की जनता ने हार का स्वाद चखाया। प्रधानमंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री बनने से पहले या उसके बाद में कई दिग्गतजों को भी हार का सामना करना पड़ा। राममनोहर लोहिया को १९५७ चंदौली से और 1962 में फूलपुर से निर्वाचन क्षेत्र से पराजित हुए। लोहिया को पहले कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण ने फिर फू लपुर में जवाहर लाल नेहरू हराया था। जनसंघ के संस्थापक दीनदयाल उपाध्याय को 1963 के जौनपुर के उपचुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था।
भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरूष अटल बिहारी बाजपेयी भले ही लखनऊ से भले पांच बार निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री बने हो लेकिन इसी लखनऊ में उन्हे १९५७ में कांग्रेस के उम्मीदवार पुलिन बिहारी बनर्जी ने पराजित किया था। १९६२ में एक बार फिर अटल बिहारी बाजपेई को शिकस्त का सामना करना पड़ा। तब कांग्रेस के वी के धवन से पराजित हुए थे। लखनऊ के अलावा अटल बिहारी बाजपेयी को बलरामपुर में भी हार का सामना करना पड़ा था यहां उन्हे सुभद्रा जोशी ने पराजित किया था। आचार्य जेबी कृपलानी को भी १९५१ में फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र से हार का स्वाद चखना पड़ा। उन्हे कांग्रेस के लल्लन जी ने हराया था। इसी निर्वाचन क्षेत्र से उनकी पत्नी और प्रदेश की सीएम रही सुचेता कृपलानी चुनाव हार गई। १९७१ के लोकसभा चुनाव में रामकृष्ण सिंह ने सुचेता कृपलानी को हराया था।
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सन १९७७ के चुनाव में रायबरेली से राजनारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को हरा दिया। १९७७ की जनतापार्टी सरकार में राजनारायण केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने। जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व कर चुके चौ.चरण सिंह को भी 1971 में मुजफ्फरनगर से हार का सामना करना पड़ा था। १९७७ में ही पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह को इलाहाबाद जनता पार्टी के प्रत्याशी जनेश्वर मिश्र ने हराया था। इसी साल हुए चुनाव में संजय गांधी को अमेठी से शिकस्त का सामना करना पड़ा में बाद में इसी सीट से 1984 में उनकी पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपने जेठ राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में थी वहां की जनता ने उन्हे नकार दिया था।
इसके बाद 1991 के आम चुनाव में भी मेनका गांधी को पीलीभीत से शिकस्त का सामना करना पड़ा था। १९८४ के लोकसभा चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को हार का सामना करना पड़ा था उन्हे कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने बलिया संसदीय क्षेत्र में हराया। चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रही तथा संसद और विधानमंडल दल के दोनों सदनों की सदस्य रही मायावती को एक बार कई बार हार का मुंह देखना पड़ा था।
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1984 में कैराना और 1985 में बिजनौर और 1987 के हरिद्वार उपचुनाव में उन्हे शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 1989 में बिजनौर से निर्वाचित हुयी और 1991 में इसी सीट से उन्हे शिकस्त का सामना करना पड़ा। इसके अलावा मायावती 1992 में बुलन्दशहर के हुए उपचुनाव में भी पराजित हुयी और 1998-99-2004 के अकबरपुर से निर्वाचित हुयी। बसपा के संस्थापक और राष्टï्रीय अध्यक्ष रहे कांशीराम को भी 1996 फूलपुर,1998मे सहारनपुर में शिकस्त का का सामना करना पड़ा। चार बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के सीएम रहे नारायण दत्त तिवारी 1991-98 में नैनीताल से चुनाव हारे।
इसी तरह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा को भी 1984 में कांग्रेस की सहानुभूति लहर में  फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने पराजित किया था। 1977 में जनता पार्टी सरकार का नेतृत्व कर चुके रामनरेश यादव को 1989 के लोकसभा चुनाव में बदायंू की जनता ने नकार दिया था।
1977 में हालांकि वे आजमगढ़ से सांसद निर्वाचित हुए उसके बावजूद उन्हे मुख्यमंत्री बनाया गया बाद में 1984 और 1998 में उन्होंने फिर आजमगगढ़ से अपना भाग्य आजमाया लेकिन उन्हे निराशा हांथ लगी। पूर्व केन्द्रीय में मंत्री और इस समय लोकतांत्रिक जनता दल के राष्टï्रीय अध्यक्ष शरद यादव को भी 1984 और 1991 में बदायंू में हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा के शीर्षस्थ नेता और इस समय मार्गदर्शक मंडल में शामिल मुरली मनोहर जोशी जो इस समय कानपुर से सांसद है को 1980-1984 में अल्मोड़ा,और 2004 में इलाहाबाद से हार का सामना करना पड़ा था।