आशीष मित्तल, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, नॉलेज एंड अवेर्नेस मैपिंग प्लैट्फ़ॉर्म (केएएमपी)
भास्कर समाचार सेवा ।
नई दिल्ली। कल्पना करें, अगर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाला हर बच्चा बिना किसी बाधा के अपने सपनों को साकार कर सके, तो भारत का भविष्य कैसा होगा? यह बदलाव न केवल बच्चों के जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को भी मजबूत करेगा। क्या सरकारी स्कूलों को “गरीबों के स्कूल” के बजाय “सपनों का मंदिर” और “राष्ट्रीय गौरव” का केंद्र बनाया जा सकता है?
भारत का हर बच्चा डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, कलाकार, या खिलाड़ी बनने के सपने देखता है। लेकिन क्या सभी बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने का समान अवसर मिलता है? सरकारी स्कूल, जो लाखों बच्चों के भविष्य की नींव रखते हैं, आज भी मजबूरी में चुने जाने वाले स्कूल माने जाते हैं। यह धारणा बच्चों के आत्मसम्मान को ही चोट नहीं पहुंचाती, बल्कि उनके पूरे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। निजी स्कूल जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अवसरों का प्रतीक बन चुके हैं, वहीं सरकारी स्कूलों को वंचित तबके के लिए आरक्षित समझा जाता है। यह असमानता हमारे समाज के भविष्य और राष्ट्र दोनों के लिए चुनौती है।
सरकारी और निजी स्कूलों के बीच खाई: अवसरों की असमानता
सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों की उपलब्धता में गहरी खाई है। 2021 के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) के आंकड़ों के अनुसार, कक्षा 5 के 50% सरकारी स्कूलों के छात्र बुनियादी गणित और पढ़ाई में कमजोर हैं, जबकि निजी स्कूलों के छात्रों में यह प्रतिशत काफी कम है। शिक्षकों की कमी, सुविधाओं का अभाव, और शिक्षा के प्रति उदासीनता ने सरकारी स्कूलों की छवि को धूमिल कर दिया है। इसके विपरीत, निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षण पद्धतियां, आधुनिक तकनीक और व्यक्तिगत ध्यान बच्चों को उनके सपनों की दिशा में अग्रसर करता है।
सरकारी पहलों का बदलता असर
सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। ‘पीएम-श्री स्कूल पहल’ इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। यह योजना सरकारी स्कूलों को अत्याधुनिक “21वीं सदी के मॉडल स्कूल” में बदलने का प्रयास है। इस योजना के तहत शिक्षा के नए मानक स्थापित करने के लिए 14,500 से अधिक स्कूलों को विकसित किया जार हा है। इन स्कूलों में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, आधुनिक शिक्षण पद्धतियां, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता, और समग्र विकास पर जोर दिया जाएगा।
दिल्ली सरकार का मिशन बुनियाद प्राथमिक शिक्षा में सुधार का एक और बड़ा उदाहरण है, जिसने छात्रों की सीखने की क्षमता में 80% सुधार दिखाया। केरल के हाईटेक क्लासरूम प्रोजेक्ट ने सरकारी स्कूलों को स्मार्ट क्लास रूम में बदल दिया है। मध्याह्न भोजन योजना ने न केवल बच्चों को स्कूलों में बनाए रखा है, बल्कि उनके पोषण स्तर को भी बढ़ाया है। ये पहल सराहनीय हैं, लेकिन सरकारी और निजी स्कूलों के बीच का अंतर आज भी बच्चों के भविष्य के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
क्या हम आईआईटी और आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित स्कूल बना सकते हैं?
भारत ने उच्च शिक्षा में आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान बनाए हैं, जो वैश्विक स्तर पर देश को गौरवान्वित करते हैं। क्या ऐसा संभव नहीं कि हम स्कूल स्तर पर भी इस तरह के संस्थान बनाएं? पीएम-श्री स्कूल पहल इसी दिशा में एक कदम है। ये स्कूल बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के साथ-साथ उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेंगे।
कल्पना करें, अगर सरकारी स्कूलों को “राष्ट्रीय प्रतिष्ठित स्कूल” (नेशनल स्कूल ऑफ एक्सीलेंस) का दर्जा दिया जाए, जहां शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रहे, बल्कि बच्चों को उनकी पूरी क्षमता विकसित करने का अवसर मिले, तो कैसा होगा? इन स्कूलों को समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणादायक बनाना होगा, ताकि सरकारी स्कूलों को “गरीबों के स्कूल” के बजाय “हर वर्ग के स्कूल” के रूप में देखा जा सके।
समग्र मूल्यांकन: सुधार का पहला कदम
सरकारी स्कूलों में सुधार केवल परीक्षा परिणामों से मापा नहीं जा सकता। समग्र मूल्यांकन, जिसमें स्कूल के शैक्षिक वातावरण, शिक्षण विधियों, छात्रों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, और सामुदायिक सहभागिता को शामिल किया जाए, एक ठोस कदम हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्कूल में छात्र गणित या विज्ञान में कमजोर हैं, तो यह केवल शिक्षण विधियों की समस्या नहीं हो सकती। यह स्कूल की बुनियादी सुविधाओं, शिक्षकों के प्रशिक्षण, या छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हो सकता है। समग्र मूल्यांकन के जरिए हम इन समस्याओं की जड़ तक पहुंच सकते हैं और सुधार के लिए लक्षित प्रयास कर सकते हैं। इसके अलावा:
- हर सरकारी स्कूल में स्वच्छ पानी, साफ शौचालय, पुस्तकालय, डिजिटल उपकरण, और खेल के मैदान की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। बच्चों को सीखने के लिए एक सुरक्षित और प्रेरणादायक वातावरण देना होगा।
- शिक्षकों को आधुनिक तकनीकों और शिक्षण पद्धतियों में प्रशिक्षित करना आवश्यक है। उन्हें केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि छात्रों के समग्र विकास में प्रेरक भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- माता-पिता और समुदाय को स्कूल की गतिविधियों में शामिल करना होगा। समाज जब सरकारी स्कूलों को “गरीबों के स्कूल” के बजाय “हर वर्ग के स्कूल” के रूप में देखेगा, तब बदलाव संभव होगा।
- आईआईटी और आईआईएम की तर्ज पर सरकारी स्कूलों में “राष्ट्रीय मॉडल स्कूल” की स्थापना की जाए। यह स्कूल बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सह-पाठ्यक्रम अवसर, और भविष्य के लिए तैयार करने वाली शिक्षा देंगे।
- सरकारी स्कूलों की सफलताओं और उनके छात्रों की प्रेरणादायक कहानियों को समाज में प्रचारित किया जाना चाहिए। इससे इन स्कूलों की छवि बदलेगी और अन्य छात्रों को प्रेरणा मिलेगी।
क्योंकि हर बच्चा सपने देखता है, और हर सपने को पूरा करने का अधिकार रखता है। सरकारी स्कूलों को देश के भविष्य का गौरव बनाने की जिम्मेदारी किसकी है?