समझदारी से करें निवेश

शेयर बाजार में मौजूदा उछाल ने निवेशकों के बीच सकारात्मक माहौल पैदा कर दिया है, क्योंकि शेयर की कीमतों में वृद्धि के साथ उनकी नेटवर्थ भी बढ़ी है। हालांकि, यह उत्साहपूर्ण भावना किसी को भी लालची बना सकती है। ऐसे बाजार में निवेश करते समय अत्यधिक आत्मविश्वास से बचना महत्वपूर्ण है।

“इस तरह के उत्साही माहौल में बहकना आसान हो सकता है, क्योंकि हम दिल और दिमाग दोनों का उपयोग करते हैं। दिमाग विवेकपूर्ण होता है जबकि दिल भावनात्मक होता है। हम हमेशा निर्णय लेने में अपने दिमाग का ही उपयोग नहीं करते। तर्कसंगत प्राणी होते हुए, हमें अपने दिमाग का उपयोग करना चाहिए। लेकिन दिल हमें भावुक बना सकता है। कई बार हम दिल से निर्णय लेते हैं और अपनी भावनाओं को फैसले में शामिल कर लेते हैं, जिससे हम अक्सर वित्तीय दृष्टि से खराब निर्णय ले सकते हैं।”

हमने अक्सर यह कहावत सुनी है कि इंसान की याद्दाश्त बहुत छोटी और कमजोर होती है।

सदियों से घटती आ रही असंख्य घटनाएं हमें बाजार में सजग रहने की सलाह देती आई हैं। 1657 के ट्यूलिप उन्माद से लेकर 2008 के वित्तीय संकट तक इस तरह तमाम घटनाएं देखने को मिली हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बाज़ार हमें बार-बार एक ही सबक सिखाता रहा है लेकिन हम उससे कोई सीख नहीं लेते। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम लगातार अपने अंदर भरे लालच और डर से संघर्ष करते रहते हैं जिससे मानवीय व्यवहार और भावनाओं में कोई बदलाव नहीं आता है।

तो, ऐसी कौन सी बातें हैं जिन्हें हमें ध्यान में रखना चाहिए, ताकि हम अपनी भावनाओं में न बहने पाएं।
सबसे पहले तो कि आपातकालीन या मुश्किल समय के लिए एक आपातकालीन कोष बनाना बहुत जरूरी है। हमने हाल ही में महामारी और लॉकडाउन के कारण मेडिकल इमरजेंसी, नौकरी छूटने, आय में कमी, कारोबार बंद होने जैसी घटनाएं देखी हैं। इसके लिए लिक्विड और कम वोलैटिलिटी वाली सिक्योरिटीज में निवेश के जरिए एक आपातकालीन कोष बनाया जा सकता है। यहा कोष इतना बड़ा होना चाहिए जिससे 6 से 12 महीने का खर्च चल सके। निश्चित रूप से यह कोष अनिश्चित और कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद करेगा।

एक और जरूरत जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है, वह है एक वित्तीय योजना बनाना और उस योजना के भीतर निर्धारित परिसंपत्ति आवंटन पर टिके रहना। केवल यह अनुशासित नजरिया ही हमें लालच या छूट जाने के डर से दूर रखेगा और हमारी अपनी भावनाओं को हमारा सबसे बड़ा दुश्मन साबित होने से रोकेगा। एक अच्छी वित्तीय योजना हमें तब ज़्यादा खर्च करने से रोकने में मदद करती है जब एक परिसंपत्ति वर्ग अच्छा प्रदर्शन कर रहा हो। वहीं, दूसरी तरफ ये योजना जब चीजें निराशाजनक दिख रही हों तो हमें निवेश करने और अपनी एसआइपी को जारी रखने के लिए अनुशासित रखती है।
साथ ही, यह भी जरूरी है कि हम न केवल स्वीकार करें बल्कि इस तथ्य से सहज भी हों कि निधि निर्माण का मार्ग उतार-चढ़ाव के गड्ढों से भरा हुआ है। यह हमें उचित समय पर सही रुख अपनाकर बाजार में उतार-चढ़ाव से लाभ उठाने की आदत डालने में मदद कर सकता है।

“जब दूसरे लोग डरे हुए हों तो लालची बनो और जब दूसरे लोग लालची हों तो डरो” कथन का श्रेय अक्सर वॉरेन बफेट को दिया जाता है। यह सोच कि सुरक्षा संख्याओं में निहित होती है, कई मामलों में सच है, लेकिन निवेश मामले में आमतौर पर समझदार निवेशकों को फायदा होता है।

जब बाजार में तेजी होती है, तो आमतौर पर आईपीओ, न्यू फंड ऑफरिंग (एनएफओ) और तमाम तरह के दूसरे वित्तीय उत्पादों के लॉन्च की बहार आ जाती है। हालांकि हमें नए विचारों के लिए खुले रहना चाहिए लेकिन उनके बहकावे में न आना भी जरूरी है। यह समझने के लिए कि क्या इनमें निवेश करना समझदारी होगी या नहीं, अपनी स्वयं की जांच और शोध पर निर्भर रहें। किसी वस्तु या व्यक्ति का आंखे बंद करके अनुसरण करना बेहद खतरनाक हो सकता। आखिरकार, जो चीज किसी दूसरे के लिये अनुकूल है, जरूरी नहीं कि वह आपके लिये भी सही हो।

अगर आपको अगले दो से तीन सालो में किसी विशेष गोल या खर्च के लिए पैसे की जरूरत है, तो अपने निवेश का कुछ हिस्सा भुनाना भी समझदारी भरा हो सकता है। अगर आपको शॉर्ट टर्म से मीडियम टर्म में कोई खर्च नहीं करना है तो अपनी निवेश योजना जारी रखें और निवेशित रहें। कम्पाउंडिंग के जादू को अपने पक्ष में काम करने दें!

अंत में, याद रखें कि निवेश एक मैराथन है, न कि स्प्रिंट। कम से कम 5 साल का लंबा निवेश नजरिया रखें। अनिश्चितता बाजार की एक विशेषता है, न कि कोई बुराई। इसलिए, अनिश्चितता के उतार-चढ़ाव से गुजरना पैसा बनाने के लिए महत्वपूर्ण है।

यहां याद रखने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि निवेश करना उबाऊ माना जाता है। जिस दिन यह रोमांचक हो जाता है, आप निवेश नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि जुआ खेल रहे होते हैं। यह आपको तय करना है कि आप कम समय में रोमांच चाहते हैं या लंबे समय में पैसा बनाना।

अस्वीकरण: ये लेखक के निजी विचार हैं।

लेखक:

नील पराग पारिख
अध्यक्ष और सीईओ
पीपीएफएएस म्यूचुअल फंड

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