करवा चौथ : जानिए किस वक्त होगा सुहागिनो को चाँद का दीदार, जाने पूजा विधि, शुभ मुहर्त..

इस समय होगा करवा चौथ के चांद का दीदार, जानिए अर्घ्य देने का सही समय

करवा चौथ की तैयारियों इस समय जोरों पर है। महिलाएं इस दिन पति की लंबी और अच्छी सेहत के लिए व्रत रखती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाएं पूरे दिन श्रृंगार और पूजा-पाठ की तैयारी में व्यस्त रहती है। शाम को चांद के दर्शन कर अर्घ्य देकर पति के हाथों जल ग्रहण करेंगी।

पूजा का शुभ मुहूर्त- 5 बजकर 40 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक
चंद्रोदय का समय- शाम 7 बजकर 38 मिनट
चांद को अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त-  7 बजकर 55 मिनट से 8 बजकर 19 मिनट तक
चतुर्थी तिथि का आरंभ- 27 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 38 मिनट से

पूरे देश में लगभग इसी समय पर चांद के दर्शन होंगे। व्रत में महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी के साथ करवा माता की पूजा करेंगी। सुहागिन महिलाएं करवा माता की कथा सुनकर अपने पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत खोलेंगी। इस बार करवा चौथ पर वर्षो बाद एक साथ कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इस बार के करवा चौथ पर राजयोग का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इसके अलावा इस बार सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि योग भी बनेंगे। इसके साथ ही इस दिन चंद्रमा शुक्र की राशि वृष में रहेगा और गुरु की दृष्टि चंद्रमा पर होगी। ज्योतिष गणना के आधार पर कई शुभ संयोग के मेल से इस साल का करवा चौथ सौभाग्यशाली और फलदायी रहने वाला होगा। इस व्रत से पति-पत्नी के बीच में मधुर संबंध बनेगे।

इस व्रत में पूजन सामग्री होती है सबसे खास

करवा चौथ की पूजा सामग्री 

करवा चौथ 2018: जानिए, इस व्रत में कौन सी पूजन सामग्री होती है सबसे खास

सौभाग्य प्रदान करने वाले सुहागिन महिलाआें के विशेष व्रत करवा चौथ में कुछ पूजन सामग्रियों का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इनके बिना पूजन पूर्ण होना दूर प्रारंभ भी नहीं हो सकता है। जाने कौन सी हैं वे सर्वाधिक जरूरी चीजें। रोली, अक्षत, मौलि, आरती के लिए शुद्घ घी, दिया बाती, फूल, जल के लिए एक लोटा, बायने के लिए थाली, कम से कम दो करवे, बायने के लिए परंपरा के अनुसार फीकी आैर मीठी मठ्ठी, मिठार्इ, मेंहदी, श्रंगार आैर सुहाग की सामग्री आैर पाटा दया पटरा।

क्या है करवा चौथ का पर्व 

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ भारत में सौभाग्यवती महिलाआें का प्रमुख त्योहार है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पूर्व प्रात: 4 बजे प्रारंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की स्त्री को इस व्रत को करने का अधिकार है। अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं । इस वर्ष ये पर्व शनिवार 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। इस दिन श्री गणेश की पूजा विशेष रूप से की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टी या गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के बाद भोजन करने का विधान है।

ये भी है करवा चौथ की एक कथा 

कहते हैं कि स्वयं शंकर जी ने माता पार्वती को करवा चौथ के व्रत की ये कथा सुनाते हुए इस उसका महत्व समझाया था। इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी। प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था। उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी। एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा। उसने व्रत को विधिपूर्वक किया। पूरे दिन निर्जला रही। कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी। भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर दीपक जलाया आैर नकली चंद्रोदय कर के बहन को आवाज दी कि देखो चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो। बहन ने पूजा की आैर भोजन ग्रहण कर लिया। भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। वह दुःखी हो विलाप करने लगी। उसी समय वहां से इंद्र की पत्नी इंद्राणी निकल रही थीं।

उनसे उसका दुःख न देखा गया। ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया कि उसने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला है। अगर वो वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करे तो उसका पति जीवित हो जाएगा। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। तभी से हिन्दू महिलायें अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।

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