सिंधु जल समझौते में पाकिस्तान की अटकी ‘जान’, अगर भारत ने समझौता तोड़ा फिर क्या होगा?

भारत और पाक के बीच कड़वाहट की वजह से दोनों देशों के बीच सिंधु जल समझौता खतरे में पड़ सकता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इसके संकेत दिए हैं.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि ऐसी किसी भी संधि के लिए परस्पर विश्वास और सहयोग बेहद जरूरी है. उन्होंने बताया कि संधि की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह सद्भावना पर आधारित है.

क्या है सिंधु समझौता?

1960 में दोनों देशों के बीच यह समझौता हुआ था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के सैन्य शासक मार्शल अयूब खान ने संधि पर हस्ताक्षर किए थे.इस संधि के तहत भारत अपनी 6 नदियों का लगभग 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को देगा. इन नदियों में ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों के पानी का दोनों देशों के बीच बंटवारा होगा.

क्यों हुआ समझौता?

1960 में पाकिस्तान के लोगों के लिए पानी समस्या सुलझाने में सहयोग करने के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसकी प्रस्तावना में लिखा है कि यह संधि सद्भावना के आधार पर हो रही है.

संधि के मुताबिक भारत इन 6 नदियों का पानी नहीं रोकेगा, वहीं जम्मू-कश्मीर के लोग इन नदियों का सिर्फ 20 प्रतिशत पानी ही इस्तेमाल कर सकेंगे.

यहां तक कि इन नदियों पर बांध बनाने से पहले भारत को पाकिस्तान से राय लेनी होगी.

सिंधु संधि टूटी तो?

पाकिस्तान की फसल का बड़ा हिस्सा इन नदियों पर ही निर्भर करता है. ऐसे में अगर भारत यह समझौता तोड़ते हुए पानी की सप्लाई रोक देता है तो पाकिस्तान के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. कुछ लोग यह समझौता तोड़ने को ‘जल परमाणु’ का नाम भी देते हैं. इसका मतलब यह है कि सिर्फ यह समझौता तोड़ देने से ही पाकिस्तान को बगैर हथियारों के हराया जा सकता है.हर कूटनीतिक कदम के बारे में खुलकर बात नहीं की जा सकती है. स्वरूप ने कहा कि हमारा काम अपने आप बोलता है, और हमारे एक्शन के नतीजे आने शुरू हो गए हैं.

विकास स्वरूप, प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय (समझौता तोड़ने के सवाल पर)

भारत पर क्या पड़ेगा असर?

क्योंकि यह समझौता पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन जैसा है. इस पर आंच आने पर पाकिस्तान सरकार पर जनता का प्रेशर काफी ज्यादा बढ़ जाएगा. ऐसे में यदि इसे लेकर बातचीत से समस्या हल नहीं हुई तो पाकिस्तान सरकार भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए दूसरे हथकंडे भी अपना सकती है.

हालांकि पाकिस्तान पिछले 56 साल में कई बार यह शिकायत कर चुका है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है, और वह कुछ मामलों में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी आगे गया है.

क्या है सिंधु जल संधि: 
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई. इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया. पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है. संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है. भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है. वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है.

पाकिस्तान के लिए क्या है इस समझौते का महत्व:
यहां यह समझना ज़रूरी है कि आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है. सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है. सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है. पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है. अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे. सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं. सिंधु और सतलज नदी का उद्गम चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं. सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है.

पाकिस्तान को ऐतराज:
भारत की सिंधु नदी बेसिन से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स पर नजर है. जिनमें पाकल दुल (1,000 मेगावॉट) , रातले (850 MW), किशनगंगा (330 मेगावॉट), मियार (120 मेगावॉट) और लोअर कालनई (48 मेगावॉट) परियोजनाएं आदि हैं. पाकिस्तान को भारत के इन प्रोजेक्ट्स पर भी एतराज है. पाकिस्तान का स्टैंड है कि भारत के ये सारे प्रोजेक्ट्स संधि का उल्लंघन है. मगर भारत अब सिंधु के ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करना चाहता है.

पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर सिंधु का प्रभाव:
भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं. यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है. पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है. पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.

क्या है सिंधु समझौते तोड़ने में परेशानी:
मौजूदा हालात में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु के पानी को रोकने की बात की जा रही है वह कहने को तो मुमकिन है, लेकिन व्यवहारिक कठिनाईयां और उसके नतीजे भारत के पक्ष में भी नहीं जाते. अगर संधि तोड़ने से पाकिस्तान को घाटा हो रहा है, तो एक तरह से भारत को भी इसका त्वरित तौर पर बहुत ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि इन नदियों के बीच पानी का समंदर है जिसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं. इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगे, जिसके लिए बहुत पैसे और वक्त की ज़रूरत होगी. इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे. साथ ही वैश्विक मंच पर भी भारत की जगहंसाई होगी.

 

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