
संजीत पाधि, सीईओ, इंटरनेशनल स्पिरिट एंड वाइंस एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया (आईएसडब्लूएआई) ने अपने विचार प्रकट करे
एल्कॉहल लम्बे समय से दुनिया भर में सामाजिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है और भारत भी इसके लिए अपवाद नहीं है। भारत में भी खास मौकों, पार्टियों के अवसर पर या रिलेक्स करने के लिए लोग एल्कॉहल का सेवन करते हैं।
भारत में एल्कॉहल का मार्केट तेज़ी से विकसित हो रहा है, 2022 से 2027 के बीच यह 3.3 फीसदी सीएजीआर की दर से बढ़ रहा है। इस दृष्टि से यह आईडब्ल्यूएसआर के अनुसार दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मार्केट है।

हालांकि, हाल ही में लोकल सर्कल्स (भारत के अग्रणी पोल्सटर एवं कन्ज़्यूमर पल्स एग्रीगेटर) द्वारा समृद्ध संस्कृति, त्योहारों एवं पर्यटन के लिए विख्यात राजस्थान में किए गए अध्ययन के मुताबिक राज्य में एल्कॉहल के सेवन के बारे में जागरुकता की दृष्टि से बड़ा अंतराल है। सर्वेक्षण के मुताबिक राजस्थान में 41 फीसदी उपभोक्ता एबीवी (एल्कॉहल बाय वॉल्युम) का अर्थ नहीं समझते, एल्कॉहलिक पेय के 40 फीसदी उपभोक्ताओं का कहना है कि एल्कॉहल के कुछ ड्रिंक माइल्ड और कुछ हार्ड होते हैं।
लोकल सर्कल्स का सर्वे राजस्थान राज्य के 20 ज़िलों से 6674 प्रतिभागियों के साथ किया गया, और 19000 से अधिक प्रतिक्रियाएं ली गईं। इन प्रतिभागियों में 71 फीसदी पुरूष और 29 फीसदी महिलाएं थीं।
मिथक बनाम वास्तविकता
उपभोक्ता प्रोडक्ट पर दिए गए एल्कॉहल बाय वॉल्युम (एबीवी) परसेंटेज के आधार पर अपना चुनाव करते हैं, जिसका अर्थ है पैक के पूरे कंटेंट में एल्कॉहल की मात्रा। हालांकि एल्कॉहल का सेवन सोच-समझ कर करने और मॉडरेशन को सुनिश्चित करने के लिए इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि आप जो ड्रिंक लेते हैं उसमें शुद्ध एल्कॉहल की मात्रा कितनी है।
वास्तविकता यह है कि उपभेक्ता इस तथ्य से अनजान हैं कि हर ड्रिंक का स्टैण्डर्ड माप, शुद्ध एल्कॉहल की मात्रा के लगभग बराबर होता है। और यही बात मायनी रखती है।
विस्तार से कहें तो वाईन के 98 एमएल ग्लास में 13 फीसदी एबीवी, स्पिरिट के 30 एमएल सर्विंग में 42.8 फीसदी एबीवी, स्ट्रॉन्ग बियर के 159 एमएल में 8 फीसदी एबीवी के बराबर शुद्ध एल्कॉहल होता है।
वास्तविकता यह है कि एल्कॉहल तो एल्कॉहल ही है और मनुष्य के शरीर पर इसका प्रभाव समान रहता है। आप चाहे किसी भी प्रकार के एल्कॉहल का सेवन करते हैं, एक ही बात मायने रखती है कि हर ड्रिंक में शुद्ध एल्कॉहल की मात्रा कितनी है।
बहुत से उपभोक्ता इस बात को नहीं समझते कि कम एबीवी ड्रिंक के कई ग्लास पीने से आप ज़्यादा मात्रा में एल्कॉहल का सेवन कर लेते हैं, बजाए इसके लिए आप अधिक एबीवी ड्रिंक की छोटी मात्रा का सेवन करें। इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए राज्य की कई नीतियां अक्सर ड्रिंक को ‘माइल्ड’ या ‘हार्ड’ की श्रेणी में रखती हैं।
लोकल सर्कल्स की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में एल्कॉहल का सेवन करने वाले मात्र 37 फीसदी उपभोक्ताओं का मानना है कि आमतौर पर जिस ड्रिंक का सेवन करते हैं, उसके एल्कॉहलिक कंटेंट के बारे में जागरुक हैं।
डॉ ग्रेगोर ज़्विर्न, रीसर्च एसोसिएट, युनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज (यूके) और मैनेजिंग डायरेक्टर और जी.ज़ैड रीसर्च एण्ड कन्सल्टिंग केजी (एटी), जिन्होंने स्पिरिट्स यूरोप के साथ काम किया है, उनका कहना है-
‘एल्कॉहलिक ड्रिंक (एबीवी कंटेंट) एल्कॉहलिक पेय को शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कम या अधिक फायदेमंद/ हानिकारक नहीं बनाता। यह ड्रिंक के पैटर्न एवं सेवन की जाने वाली मात्रा पर निर्भर करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘मॉडरेशन एल्काहलिक ड्रिंक में नहीं’ (बियर, वाईन या स्पिरिट), बल्कि सेवन के तरीके में होना चाहिए।
बढ़ते रूझान
वैश्वीकरण और इनोवेशन भारत को निरंतर प्रभावित कर रहे हैं, देश भर के उन परिवारों में भी एल्कॉहल की स्वीकार्यता बढ़ रही है, जो पहले इसे लेकर संकुचित सोच रखते थे। राजस्थान भी अलग नहीं है। जनरेशन ज़ी के उपभोक्ताओं का रूझान एल्कॉहल के सेवन की ओर बदल रहा है। शहरों में पुरूषों एवं महिलाओं सभी में इसकी स्वीकार्यता बढ़ी है। भारत में हर साल 20 मिलियन नए उपभोक्ता ड्रिंक की कानूनी उम्र में प्रवेश कर जाते हैं।
उपभोक्ताओं की इस बढ़ती संख्या को देखते हुए उद्योग जगत के लिए ज़रूरी हो गया है कि ड्रिंक से जुड़े सही पहलुओं और जानकारी के बारे में जागरुकता बढ़ाई जाए। इससे जुडत्री गलत अवधारणाओं का दूर किया जाए। ताकि उपभोक्ता सोच-समझ कर ज़िम्मेदारी के साथ एल्कॉहल का सेवन करें।
शिक्षित और जागरुक बनाने की आवश्यकता, यह बात मायने नहीं रखती कि आप क्या पीते हैं, मायने यह रखता है कि आप कितनी मात्रा में ड्रिंक करते हैं!
जानकारी या जागरुकता से अवधारणा बनती है, जिससे चुनाव के विकल्प प्रभावित होते हैं। जागरुकता की कमी के चलते अक्सर लोग सही चुनाव नहीं कर पाते। भारत में एल्कॉहल के सेवन से जुड़े बदलते रूझान दर्शाते हैं कि एल्कॉहल के बारे में कम जागरुकता गलत अवधारणाओं को जन्म देती है, जिसकी वजह से उपभोक्ता गैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से एल्कॉहल का सेवन करते हैं।
राजस्थान में लोकल सर्कल्स के सर्वेक्षण में पाया गया किः
एल्कॉहल का सेवन करने वाले 86 फीसदी उपभोक्ताओं को अपनी ड्रिंक के बारे में जानकारी अपने दोस्तों या परिवारजनों या ‘सुनी-सुनाई’ बातों से मिलती है।
58 फीसदी उपभोक्ता अपने साथियों या इंटरनेट से जानकारी प्राप्त करते हैं।
60 फीसदी अपने दोस्तों, परिवार और साथियों से समझते हैं कि कौन सी ड्रिंक माइल्ड है और कौनसी हार्ड।
100 फीसदी मामलों में उपभोक्ता खुद सेवन करने के बाद इसका विकल्प चुनते हैं।
जानकारी के ये स्रोत गलत, गैर-भरोसेमंद, पक्षपातपूर्ण और निराधार भी हो सकते हैं।
इसका गलत प्रभाव भी हो सकता है क्योंकि जीवनशैली के कई अन्य विकल्पों की तरह एॅल्कोहल का सेवन भी मॉडरेशन (संतुलन या सही मात्रा) में करना ज़रूरी होता है।
सही और पूर्ण जानकारी हर उपभोक्ता को मिलनी ही चाहिए। आम जनता को अधिक से अधिक जागरुक बनाने के लिए उद्योग जगत, नीति निर्माताओं और समाज को एक साथ मिलकर काम करना होगा। ताकि लोग ज़िम्मेदारी से एल्कॉहल का सेवन करें, मॉडरेशन में ड्रिंक की आदत बनाएं, फिर चाहे से बियर, वाईन या स्पिरिट किसी भी पेय का सेवन कर रहे हों।
मार्केट के एक समान एक्सेस, कैटेगरी उपलब्धता, सशक्त नीतियांं के द्वारा लोगों को सोच-समझ कर फैसला लेने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
उभरते रूझान और चुनौतियां इस बात का संकेत हैं कि लोगों में ज़िम्मेदाराना और संतुलित तरीके से एल्कॉहल के सेवन के बारे में जागरुकता बढ़ाना ज़रूरी है। सभी हितधारकों की ज़िम्मेदारी है कि वे उपभोक्ताओं तक सही जानकारी पहुंचाएं और एल्कॉहल के ज़िम्मेदाराना सेवन को बढ़ावा देने में मुख्य भूमिका निभाएं।
लोकल सर्कल्स राजस्थान सर्वेक्षण के अनुसार कई उपभोक्ताओं के पास आज भी एल्कॉहलिक पेय के चुनाव के लिए सही जानकारी नहीं है, जिसके चलते वे सही फैसला नहीं ले पाते। उद्योग जगत, नीति निर्माताओं और समाज को एक साथ मिलकर इस अंतराल को दूर करना होगा, ताकि उपभोक्ता ज़िम्मेदारी के साथ सही मात्रा में ही एल्कॉहल का सेवन करें।