बिजुआ खीरी : वृक्षों के अंधाधुंध कटान से मानव जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पारा 44 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। आग उगलती जमीन और सर पर सूर्यदेव की तपिश से बचने के लिए पेड़ों की छाया ढूंढी जा रही है, लेकिन यही आलम रहा तो छाया दूर दूर तक नसीब नहीं होगी। हरे-भरे वृक्ष वन माफियाओं की जकड़न में हैं। पेड़ मरते जा रहे हैं और प्रशासन इस विनाश को होते देख रहा है। वह दिन दूर नहीं जब ब्लाक बिजुआ क्षेत्र समेत पूरे लखीमपुर में दूर तक पेड़ नहीं दिखेंगे। होंगी तो बस कंक्रीट कंस्ट्रक्शन और तपती सड़कें और खुला आसमान। विभाग की मिलीभगत से तमाम बाग उजड़ते जा रहे है। हजारों बीघा बाग पर वन माफियाओं ने कब्जा जमा लिया है।
क्षेत्र में हर साल सैकड़ों बीघा हरे-भरे आम के बाग, सड़क किनारे लगे पेड़-पौधे और वन विभाग के जंगल को उजाड़ा जा रहा है। जबकि, हर साल लगाए जाने वाले पौधे देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं। शहर कस्बों के इर्द-गिर्द हरे-भरे पेड़ों को काटकर प्लाटिंग कर दी गई है। जिस कारण पर्यावरण में जहर घुलता जा रहा है। ऐसे में जहां प्राणवायु यानी ऑक्सीजन की कमी होने लगी है, वहीं मौसम का चक्र भी पूरी तरह बिगड़ गया है। वायुमंडल में कार्बनडाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है।
सांस लेना भी दुभर होता जा रहा है। बिगड़ते वायुमंडल के चलते सांस, संक्रमण जैसी गंभीर बीमारियां पैदा हो रही हैं। ऐसे में हम सभी को वृक्षों को सहेजने की तरफ बढ़ना होगा। इससे प्राणवायु का स्तर सुधारेगा और पर्यावरण भी बचाया जा सके। पेड़ों की लगातार कटाई होने की वजह से दिन प्रतिदिन वन क्षेत्र घटता जा रहा है। यह पर्यावरण की दृष्टि से बेहद चिंतनीय है। जीवन के लिए घातक है। विभिगीय अधिकरियों की मिलीभगत से पेड़ों को काटाकर वृक्षों के संरक्षण के लिए बने नियम और कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इससे प्राकृतिक संरचना बिगड़ रही है। जो स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक साबित हो रहा है।
फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिलने से फैल रहीं बीमारी
पीएचसी पडरिया तुला के डॉक्टर कुलदीप सिंह बताते हैं कि जीवन के लिए ऑक्सीजन बहुत जरूरी है। यदि ऑक्सीजन नहीं होगी, तो जीवन ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए ऑक्सीजन को बचाने के लिए वृक्षों को बचाना जरूरी है। इंसान जो सांस छोड़ता है, वह कार्बनडाई ऑक्साइड होती है। वृक्ष वायुमंडल में फैली इसी कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करते हैं और इसके बदले ऑक्सीजन छोड़ते हैं लेकिन, वर्तमान में जिस तेजी से वृक्षों का दोहन किया जा रहा है,
यह मानव जीवन के लिए संकट के द्वार उत्पन्न कर रहा है। कभी बाढ़, बेमौसम बरसात, मृदा कटान आदि ऐसी तमाम आपदाएं हैं, जो लगातार लोगों की मुश्किलें बढ़ा रही है। पेड़ों के कटान के चलते वायुमंडल में ऑक्सीजन की 40 फीसद तक की गिरावट आ चुकी है। जिसकी वजह से स्किन और सांस की बीमारियों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। फेफड़ों में पर्याप्त ऑक्सीजन न जाने की वजह से इंफेक्शन, दमा, घुटन जैसी बीमारियां होने लगी हैं। दिल के मरीजों की तादात भी तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में जिंदगी को बचाने के लिए पेड़ों को बचाना होगा। इसलिए हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह हरे भरे वृक्ष न काटे और पेड़ पौधे लगाकर पर्यावरण को बचाने में अहम योगदान दें।
हर साल लगते हैं करोड़ों के पौधे, देखरेख पर ध्यान नहीं!
बरसाती मौसम में हर वर्ष करोड़ों रुपये की लागत से पौधरोपण किया जाता है। वन जंगल, सड़क, हाईवे और नदी किनारे कई क्षेत्रों में पौधरोपण किया जाता है। नेतागण, प्रशासनिक अफसर और वन विभाग के अधिकारी वृक्षारोपण के दौरान फोटो खिंचवाने तक सीमित रहते हैं, लेकिन इन पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी के नाम पर वन विभाग व ब्लाक के अधिकारी आंखें बंद कर बैठ जाते हैं। सभी पेड़ देखरेख के अभाव में सूख जाते हैं। जबकि पौधों की देखरेख के लिए भी लाखों का वजट वन विभाग व ब्लाक को मिलता है। जिसकी वजह से हर साल लगने वाले पौधे चंद दिनों में घुट घुट कर मर जाते हैं।
कागजों तक सिमट रही पर्यावरण जागरूकता
प्रशासन और वन विभाग की ओर से पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए जागरूकता अभियान व अन्य कार्यक्रम चलाए जाते हैं। लेकिन, अधिकांश कार्यक्रम केवल कागजों तक ही सिमट कर रह जाते हैं। जागरूकता जमीन पर नहीं उतर पाती। यही कारण है कि पेड़ों का कटान रोकना तो दूर पौधरोपण भी खास मौकों पर किया जाता है।
अवैध खनन भी बना रहा पर्यावरण का दुश्मन
क्षेत्र में पेड़ों का कटान ही नहीं बल्कि अवैध खनन भी पर्यावरण का दुश्मन बन रहा है। माफिया धरती मां की कोख को खोखला कर रहे हैं। जिसका सीधा असर वातावरण पर पड़ रहा है। शासन-प्रशासन अपने कर्तव्यों को अनदेखी कर इतिश्री करने में लगा है।