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बड़े पैमाने पर चीनी सामान का भारतीय बाजार में बहिष्कार से खुलेंगे तिब्बती स्वतंत्रता के द्वार : विजय क्रांति

सनातनियों को त्रिविष्टप मुक्ति के लिए भी लगना होगा : श्रीकांत तिवारी

चाइनीज हान नस्ल भारत-तिब्बत संबंधों को कर रही दूर : प्रो रजनीश शुक्ला

तिब्बत में शिव की तप भूमि कैलाश जोड़ता है हमको : विश्व भूषण मिश्रा

सारनाथ (वाराणसी)। केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान तथा तिब्बत पब्लिक अवेयरनेस कैंपेन कमेटी (टीपीएसीसी) के संयुक्त तत्वावधान में कल्चरल हारमनी एंड एडवोकेसी : भारत-तिब्बत पर्सपेक्टिव्स विषयक एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन संस्थान के अतिशा सभागार में हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि दिल्ली से आए पत्रकार एवं तिब्बत विज्ञानी विजय क्रांति ने तिब्बत को भारत का अभिन्न मानते हुए अपने विचार व्यक्त किया तथा कहा कि तिब्बत और भारत एक दूसरे से अलग नहीं है बल्कि तिब्बत भारत का एक अभिन्न अंग है अतः चीनी आक्रांताओं द्वारा तिब्बत की स्वतंत्रता हेतु एक बड़े और सार्थक प्रयास की आवश्यकता है। अतः आवश्यक है कि भारतीयों द्वारा चीनी वस्तुओं का प्रबल बहिष्कार किया जाए। उन्होंने भारत तिब्बत के तमाम पक्षों को उजागर करते हुए तिब्बत के प्रति सकारात्मक चिंतन से लोगों का ध्यान आकर्षण किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में शिवालय संरक्षण समिति के अध्यक्ष श्रीकांत तिवारी (बरेली) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए वैदिक काल एवं वेदों के संदर्भ देते हुए भारत तिब्बत संबंध की पौराणिकता तथा निरंतरता को स्थापित किया। भारत तिब्बत समन्वय संघ की राष्ट्रीय महामंत्री राजो मालवीय (भोपाल) ने तिब्बत और भारत के संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए दोनो देशों के नागरिकों के बीच व्यवहार को समावेशी बनाने पर बल दिया। तकनीकी सत्र में डॉ उर्जस्विता सिंह, डॉ सुमित्रा सिंह, अनुप्रिया सिंह, सुरभि सिन्हा, डॉ हृदय शर्मा ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से पुरातन वृहद संबंधों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के सीईओ विश्वभूषण मिश्र ने शिव और शिव की भूमि कैलाश के तिब्बत में होने से सनातनियों के तिब्बती तार को अपने उद्बोधन से झंकृत किया।


द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वर्धा केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रजनीश शुक्ला ने की, जिसमें ऑनलाइन माध्यम से कनाडा, अमेरिका तथा कई देशों से प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र के माध्यम से तिब्बत में सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक को हान चाइनीज नस्ल को जबरदस्ती स्थानीय समुदाय पर आरोपित करने के प्रभावों का विश्लेषण किया।


कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ सचिन श्रीवास्तव (हिमाचल प्रदेश) ने कहा कि दरअसल टीपीएसीसी इस प्रकार से कार्यक्रम कर दुनिया भर से प्रसिद्ध शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, सामाजिक वैज्ञानिकों, पत्रकारों और अधिवक्ताओं, कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करेगा, जो तिब्बत के मुद्दे के बारे में इच्छुक और भावुक हैं। प्रयागराज के डॉ हिमांशु शेखर सिंह ने कहा कि सेमिनार का उद्देश्य भारत और तिब्बत के बीच पारस्परिक सांस्कृतिक और सामाजिक हित के प्रमुख विषयों पर सहयोग, ज्ञान के आदान-प्रदान और वकालत को बढ़ावा देना है। संस्थान के पूर्व डीन प्रो धर्म दत्त चतुर्वेदी ने कहा कि भारतीय और तिब्बती शैक्षणिक संस्थानों के बीच अंतःविषय संबंधों को मजबूत करना तथा वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण के रूप में स्वदेशी तिब्बती औषधीय प्रथाओं को बढ़ावा आदि देना है।


यह सेमिनार तिब्बत की सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक अमूल्य मंच प्रदान करेगा। यह भारत और तिब्बत के बीच साझा सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक परंपराओं में निहित स्थायी संबंधों पर जोर देता है।

सेमिनार की संयोजक प्रो. शोनाली चतुर्वेदी ने इस बात पर जोर दिया कि यह कार्यक्रम नवीन विचारों को उजागर करेगा और स्वतंत्र और शांतिपूर्ण तिब्बत की वकालत करते हुए तिब्बती संस्कृति और पहचान को संरक्षित करने के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देगा। अंतराष्ट्रीय सेमिनार में विभिन्न संस्थानों से शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और तिब्बत के हित के महत्वपूर्ण आयोजन में शामिल रहे। भारत और तिब्बत के भविष्य के लिए एक सामंजस्यपूर्ण और एकजुट प्रयास हेतु भारत तिब्बत समन्वय संघ के प्रांत अध्यक्ष श्री शिव चरण अग्रवाल, जिला अध्यक्ष श्री आशीष अग्रवाल, राष्ट्रीय सह संयोजक (प्रचार प्रभाग) हिमांशु राज पांडेय, राष्ट्रीय सह मंत्री राज नारायण, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (युवा) तेजस चतुर्वेदी, प्रांत महामंत्री (युवा) अवध नवीन पांडेय, सेमिनार समन्वयक श्री राजीव झा, अकादमिक क्षेत्र से डॉ पारिजात सौरभ, डॉ शुचिता शर्मा, डॉ रवि द्विवेदी, अभिनेष मिश्रा, डॉ मुकेश कुमार, संस्थान के पीआर अधिकारी डॉ सुशील सिंह आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन प्रो शोनाली चतुर्वेदी ने संचालन तथा समिति परिचय डॉ सचिन श्रीवास्तव ने दिया। समापन सत्र में धन्यवाद डॉ हिमांशु शेखर सिंह ने ज्ञापित किया।

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