भोपाल । एट्रोसिटी एक्ट या अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निरोधक अधिनियम, जिसे आमचोल की भाषा में हरिजन एक्ट भी कह दिया जाता है, 1989 में बनाया गया है। उस समय भी इस पर काफी विवाद हुआ था। सामान्य वर्ग इसे अपने खिलाफ मानते हैं, जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति केे लोगों का कहना है कि यह उन्हें समानता का अधिकार दिलाता है। विरोध के बावजूद इसे जम्मू कश्मीर छोड़कर को छोड़ कर पूरे देश में 1990 में लागू कर दिया गया।
हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह फिर चर्चा में आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट के दुरुपयोग को मानते हुए कुछ संशोधन करने के निर्देश दिए। दलित वर्ग ने इसे एक्ट को कमजोर करने वाला बताते हुए विरोध किया। जबकि सामान्य वर्ग सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए दलील देता है कि अपने पुराने रूप में ये अधिनियम उनके समानता के अधिकार का हनन करता है।
एक्ट के संशोधन के खिलाफ दलितों ने 6 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया और इस दौरान मप्र में हुई हिंसा में 8 लोगों की मौत हुई। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का दलित सांसदों ने भी विरोध किया और केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया कि वह फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए कदम उठाए। दवाब में सरकार ने अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और एक्ट को पूर्ववत स्थिति में ला दिया। यानि एक्ट के प्रावधान पहले वाले रुप में लागू होंगे। अब सामान्य वर्ग सरकार के अध्यादेश का विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही मान्य किया जाए। सरकार द्वारा किए गए संशोधन के विरोध में ही गुरुवार को सामान्य वर्ग ने भारत बंद का आयोजन किया है।
यह हैं एट्रोसिटी एक्ट के मुख्य प्रावधान-
-दलित को जातिसूचक शब्द बोलने पर तुरंत केस दर्ज
-केस दर्ज होते ही बिना जांच तुरंत गिरफ्तारी
-दर्ज मामले की विशेष अदालतों में सुनवाई
-मामले की इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी जांच कर सकता है
-अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती है
यह किया था सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन
-शिकायत मिलते ही केस दर्ज नहीं किया जाए
-बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी
-आरोप लगाने के एक हफ्ते के अंदर जांच पूरी हो
-आरोप सही होने पर गिरफ्तारी हो
-सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी बिना प्रशासनिक अनुमति के नहीं होगी
-अग्रिम जमानत भी हो सकती है