
भाटपार रानी, देवरिया। भाटपार रानी तहसील क्षेत्र के भिंगारी बाजार स्थित लिटिल फ्लावर एकेडमी विगत 34 वर्षों से गौरैयों की संरक्षण कर रहा है। इनकी चहचहाहट से विद्यालय का आंगन हमेशा गुलजार रहता है। वहीं विश्व गौरैया दिवस के मौके पर विद्यालय के प्रबंधक ने गौरयों के प्रति लगाव के बारे में अपना विचार साझा किया। बता दें कि केरल प्रांत के त्रिशूर जिला के पेरिंगोटुकरा गांव के मूल निवासी के०आर० रामनउन्नी ने वर्ष 1989 में क्षेत्र के भिंगारी बाजार में आकर लिटिल फ्लावर एकेडमी के नाम से एक कॉन्वेंट विद्यालय का संचालन शुरू किया। उस समय क्षेत्र में कॉन्वेंट स्कूलों की संख्या नाम मात्र की थी।
रामनउन्नी के पुत्र व विद्यालय के प्रबन्धक अरुण के०आर० ने गुरुवार को विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए बताया कि वर्ष 1991 में विद्यालय का स्थान बदला गया। उस समय ही सैकड़ो की संख्या में गौरैया पक्षियां विद्यालय के आंगन में आकर चहचहाती थी। मेरे पिताजी को यह मंजर बहुत ही अच्छा लगा। उन्होंने गौरैया पक्षियों को दाना- पानी देना शुरू कर दिया।वहीं विद्यालय के प्रांगण में ही उन्हें रहने की व्यवस्था भी कर डाली। उनके रहने के लिए कई जगह गमले व डब्बे लगा दिए गए। प्रतिदिन उनके लिए दाना -पानी देने का काम चलता रहा। इधर वर्ष 2022 में मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई।उसके बाद मैंने भी उनके इस मिशन को जारी रखा है।

उन्होंने बताया कि क्षेत्र में गौरैया पक्षियां तेजी से विलुप्त होने के कगार पर हैं। बावजूद इसके मेरे विद्यालय के आंगन में गौरैया पक्षियां लगातार डेरा डाले हुए हैं। उनके लिए समय से दाना- पानी की व्यवस्था की जाती है।उन्होंने कहा कि गौरैया मानव समाज में रहना ज्यादा पसंद करती हैं।वे हमारे पर्यावरण के महत्वपूर्ण अंग भी हैं।परंतु बढ़ते हुए रेडिएशन व अन्य कई कारणों से वे विलुप्त होने के कगार पर हैं।
आज से 33 वर्ष पहले जितनी अधिक संख्या में गौरैया दिखती थी, आज उनकी संख्या में निरंतर कमी हो रही है। फिर भी हम लोगों ने उनके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए विद्यालय के प्रांगण में मुकम्मल व्यवस्था कर रखा है। उनकी चहचहाहट की आवाज सुनकर मन खुश हो जाता है।वही विद्यालय में पढ़ने वाले छोटे बच्चे भी उन गौरैया पक्षियों को देखकर पढ़ाई के साथ-साथ मनोरंजन भी करते हैं।अतः विलुप्त हो रही गौरैया पक्षियों को बचाने की जरूरत है।