धर्म की स्थापना के लिए होता है प्रभु का अवतरण: महंत राघव दास महाराज

भास्कर समाचार सेवा

मथुरा(वृन्दावन)। वंशीवट क्षेत्र स्थित श्रीनाभापीठ सुदामाकुटी में अक्षय तृतीया के उपलक्ष्य में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन व्यास पीठ से बोलते हुए वाराणसी स्थित सुदामा कुटी के श्रीमहंत राघव दास महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण की कथा सुनाते हुए कहा कि पृथ्वी पर जब-जब धर्म की हानि होती है और पाप व अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब पापियों व अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना के लिए भगवान स्वयं पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। कृष्णावतार में भी भगवान ने पापी कंस जैसे बड़े-बड़े राक्षसों का उद्धार करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर धर्म की पुनः स्थापना की थी।
महंत राघव दास महाराज ने कहा कि परब्रह्म परमेश्वर भगवान नारायण सदस्वरूप व चित्तस्वरूप हैं।जब हम उनके समाश्रित होने लगते हैं तो हमारा कल्याण भी शीघ्र होने लगता है। प्रभु से ज्यादा दयालु कोई अन्य हो ही नहीं सकता है। वे अपने उन भक्तों की अभिलाषा हेतु पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, जो युगों-युगों से अपने आराध्य के दर्शन के लिए पृथ्वी पर घोर साधना कर रहे होते हैं।
महोत्सव में श्रीनाभापीठाधीश्वर श्रीमज्जजगदगुरू सुतीक्ष्ण दास देवाचार्य महाराज, श्रीमहंत अमरदास महारज, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, पंडित बिहारी लाल वशिष्ठ, महंत जगन्नाथ दास शास्त्री, संत राम संजीवन दास,संगीताचार्य देवकीनन्दन शर्मा, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, मुख्य यजमान श्रीमती रमा देवी व राजेंद्र शर्मा (दिल्ली), मोहन शर्मा, भरत शर्मा, निखिल शास्त्री, नंदकिशोर अग्रवाल आदि की उपस्थिति विशेष रही।

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