मां-बाप को संतान बता रही… राखी से गौरी बनी 13 साल की साध्वी

प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुम्भ मेला शुरू हो रहा है। महाकुम्भ मेले में शामिल होने के लिए देशभर से साधु-संत और अखाड़े पहुंच रहे हैं। महाकुम्भ में साधु और संतों के बीच कई रोचक और अनोखी घटनाएं भी देखने को मिल रही हैं। यहां भगवा रंग में कई दामन आंसुओं से भी भरे भी देखने को मिल रहे हैं। महाकुम्भ में आगरा के एक परिवार ने अपनी 13 साल की बेटी राखी सिंह को जूना अखाड़ा को दान कर दिया है। राखी ने अपना सांसारिक जीवन त्यागकर साध्वी बन गई हैं।

जूना अखाड़ा के संत कौशल गिरि ने विधिवत पूजा-पाठ के साथ राखी को शिविर में प्रवेश कराया और उनका नया नाम ‘गौरी’ रख दिया। अब 19 जनवरी को महाकुंभ में राखा यानी गौरी का पिंडदान किया जाएगा। जिसके बाद राखी गुरु के परिवार का हिस्सा बन जाएगी। इसी के साथ वह अपने जन्मदाता और परिवार से सदा के लिए अलग हो जाएगी।

राखी के माता-पिता ने बताया कि उनकी बेटी बचपन से साध्वी बनना चाहती थी। महाकुंभ में आने के बाद राखी ने अपने मन की बात परिवार से साझा की और माता-पिता ने उसकी इच्छा को सम्मान देते हुए उसे संन्यासी जीवन अपनाने की अनुमति दे दी। राखी की मां ने बताया, “वो शुरू से ही साध्वी बनना चाहती थी। हमने उसे हमेशा उसकी खुशी चुनने की आजादी दी। महाकुंभ में आने के बाद उसने अपने सपने को साकार करने का फैसला किया, और हम उसके फैसले से खुश हैं।” जूना अखाड़ा के गुरु कौशल गिरि ने कहा कि गौरी को साध्वी बनने के लिए धीरे-धीरे तैयार किया जाएगा। उनके पिंडदान के बाद वह संन्यासी जीवन की विधिवत शुरुआत करेंगी।

महाकुंभ में यह घटना न केवल अनोखी है, बल्कि यह दर्शाती है कि आस्था और संकल्प उम्र नहीं, बल्कि मन की स्थिति पर निर्भर है। आस्था कितनी गहराई तक जा सकती है, यह राखी से गौरी बनी छोटी संत ने सिद्ध कर दिया है।

सन्यासी राखी उर्फ गौरी के पिता संदीप सिंह आगरा में पेठा व्यापारी हैं। वह अपनी पत्नी रीमा और बेटी राखी के साथ महाकुम्भ आए थे। यहां पर मां रीमा ने अपनी बेटी की यह इच्छा पूरी करने के लिए उसे जूना अखाड़ा को दान कर दिया। दरअसल, राखी ने खुद ही साध्वी बनने की इच्छा जताई थी। वह नौ साल की उम्र में ही साध्वी बनना चाहती थी लेकिन तब उसके माता-पिता ने उसे ऐसा नहीं करने दिया। अब जब वह 13 साल की हो गई है तब वह अपनी जिद से सन्यासी बन गई और संतों के साथ उठ-बैठ रही है। राखी के माता-पिता अपनी बेटी के जिद के आगे मजबूर हो गए हैं। उनकी आंखों में बेटी को खोने के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे। मगर बेटी को उनके आंसुओं से कोई फर्क नहीं पड़ रहा। जरा सुनिए सन्यासी बनने के बाद बेटी क्या कह रही है…

मां रीमा ने बताया कि वे चार साल से गुरु कौशल गिरि की सेवा में जुड़े हुए हैं। उनके मोहल्ले में भागवत कथा और भंडारा होने के बाद से ही भक्ति का माहौल बना, जिससे उसके जीवन में यह बदलाव लाया। तभी से बेटी साध्वी बनने की जिद करने लगी। वह सन्यासी बनने के लिए माता-पिता से झगड़ा भी करने लग गई। साध्वी बनने की जिद में वह अमानवीय व्यवहार करने पर उतर आई। जिसके बाद बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए 26 दिसंबर को पूरा परिवार महाकुंभ मेला पहुंच गया और राखी को शिविर में प्रवेश दिला दिया।

वहीं, राखी को गोद लेने वाले जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि का कहना है कि यह फैसला पूरी तरह परिवार की इच्छा से लिया गया है। अब राखी यानी गौरी की शिक्षा और अध्यात्मिक मार्गदर्शन की जिम्मेदारी आश्रम लेगा। गौरी आईएएस बनना चाहती हैं। गौरी आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखेगी।

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