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महाकुम्भ मेला में एक विशेष चर्चा का विषय बने हैं 3 साल के संत श्रवण पुरी, जिनकी भक्ति और साधना ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया है। उनकी छोटी सी उम्र और उनकी गहरी धार्मिक अनुभूति ने उन्हें एक अद्भुत स्थिति में ला खड़ा किया है, और इस बात ने न केवल साधु-संतों को बल्कि आम श्रद्धालुओं को भी अचंभित कर दिया है।
श्रवण पुरी का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन की दिशा और उद्देश्य को देखकर यह लगने लगता है कि उनका जीवन किसी विशेष उद्देश्य के लिए निर्धारित था। छोटे से ही उनकी भक्ति में अद्वितीयता और उनकी साधना में गहराई दिखाई देने लगी थी। उनके बारे में यह जानकारी भी है कि जब वे 3 साल के थे, तब उन्होंने अपने गुरु के आदेश पर तीव्र साधना शुरू कर दी थी। धीरे-धीरे वे एक ध्यानमग्न संत के रूप में प्रसिद्ध हो गए और उनके व्यक्तित्व ने सभी को आकर्षित किया।
हाल ही में एक घटना ने श्रवण पुरी को और अधिक प्रसिद्धि दिलाई। एक दंपती ने अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रवण पुरी के आश्रम में दान किया। इस दंपती ने एक कठिन मानसिक और भौतिक स्थिति का सामना किया था, और उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि उनकी मन्नत पूरी हो। जब उनकी इच्छा पूरी हुई, तो उन्होंने सबसे पहले श्रवण पुरी के आश्रम में आकर दान करने का संकल्प लिया। इस दान के साथ उन्होंने श्रद्धा और भक्ति का एक उदाहरण प्रस्तुत किया।
श्रवण पुरी के साथ इस दंपती की मुलाकात एक साक्षात्कार जैसा था। यह मुलाकात न केवल उनके लिए बल्कि वहां उपस्थित अन्य भक्तों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई। दंपती ने बताया कि श्रवण पुरी के साथ बिताए गए कुछ समय में उन्हें मानसिक शांति और आत्मिक संतुष्टि मिली, और उनका विश्वास और भी मजबूत हो गया।
इस घटना के बाद से श्रवण पुरी के आश्रम में आने वाले भक्तों की संख्या में वृद्धि हो गई है, और उनका आश्रम एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन चुका है। यहां लोग न केवल भक्ति के लिए आते हैं, बल्कि मानसिक शांति, ध्यान और साधना के लिए भी आते हैं।
महाकुंभ में इस प्रकार के संतों और घटनाओं का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह पूरी दुनिया के लिए एक संदेश होता है कि भक्ति, साधना और विश्वास से जीवन में सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है। श्रवण पुरी जैसे छोटे संतों का योगदान महाकुंभ जैसे महासंस्कार में अनमोल होता है, जो लोगों को जीवन की सच्चाई और आत्मा की गहराई को समझने में मदद करता है।
महाकुंभ में इस तरह की घटनाएं यह साबित करती हैं कि धार्मिकता और भक्ति का कोई आयु या सीमा नहीं होती। श्रवण पुरी जैसे युवा संत इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं कि सच्ची भक्ति और साधना की राह में कोई भी उम्र रुकावट नहीं डाल सकती।