महराजगंज : परगापुर ताल को नहीं मिल सकी राष्ट्रीय पहचान

भास्कर ब्यूरो

फरेंदा/महराजगंज : फरेंदा क्षेत्र का प्रसिद्ध वेटलैंड परगापुर ताल को पहचान नहीं मिल पाई। हालांकि वन विभाग ने कंपा योजना के तहत ताल को मगरमच्छ कछुआ संरक्षण केंद्र के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा था। योजना परवान नहीं चढ़ी नहीं, तो ताल को राष्ट्रीय पहचान मिल जाती। क्षेत्र का पर्यटन बढ़ने के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलता।

प्रदेश में अभी आठ वेटलैंड आगरा का सूर सरोवर, समान पक्षी विहार मैनपुरी, नवाबगंज पक्षी विहार उन्नाव, समसपुर पक्षी विहार रायबरेली आदि रामसर साइट के रूप में अधिसूचित हैं। बखिरा पक्षी विहार संतकबीरनगर को भी रामसर साइट में शामिल करने के लिए सरकार ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा है। हालांकि परगापुर ताल सभी मानकों को पूरा करता है, यदि योजना परवान चढ़ता तो ताल को राष्ट्रीय पहचान मिल जाती। यहां बता दें कि सर्दी के मौसम में परगापुर ताल में विदेशी परिंदों का आगमन शुरू हो जाता है। विदेशी पक्षियों के कलरव से ताल गुलजार हो जाता है। ठंड शुरु होने पर विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है। करीब तीन माह के प्रवास के बाद यह पक्षी फरवरी व मार्च में वापस अपने देश लौट जाते हैं। यहां पर जाड़े के मौसम में साइबेरियन पक्षियों का आगमन बड़ी संख्या में होता है। परगापुर ताल 69 हेक्टेयर में फैला है। ताल में ढाई हेक्टेयर में मगरमच्छ व ढाई हेक्टेयर में कछुआ पालने की बात कही गई थी। साथ ही ताल से दो मीटर गहराई तक मिट्टी निकाल कर टीले बनवाने का भी प्रावधान था। जिस पर मगरमच्छ आकर बैठते और वॉच टावर के जरिए लोगों को भी देखने की व्यवस्था की गई थी। ताल के किनारे बबूल के पौधों के भी लगाने की जिक्र थी। ताल में संरक्षण केंद्र बनने के बाद कछुआ और मगरमच्छ देखने के लिए लोगों का आवागमन शुरू हो जाता। इस दौरान स्थानीय लोगों को भी छोटा मोटा रोजगार करने का अवसर प्राप्त हो जाता।

परगापुर ताल में खिले राष्ट्रीय पुष्प कमल की शोभा देखते ही बनती है। कमल ताल में खिलता है, तो इसकी सुंदरता में कई गुना वृद्धि कर देता है। ताल के पास घना जंगल होने से इसकी खूबसूरती और बढ़ जा रही है। जो भी दूर से आता है उसे इनकी निराली छटा मंत्र मुग्ध कर लेती है।

यही नहीं इन तालों के इर्द-गिर्द गांवों में रहने वालों के लिए यह पुष्प आय का साधन भी उपलब्ध कराता है। वह इन फूलों को तोड़कर विभिन्न मंदिरों में बिक्री करके अच्छी आय प्राप्त करते है। इसका फल कमलगट्टा के नाम से जाना जाता है, वह हरा रहने पर खाने में बहुत ही स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है तथा सूखने पर अनेक यूनानी एवं आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम में आता है।

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