Mahavir Jayanti 2020: जानें कौन थे भगवान महावीर, क्यों मनाया जाता है ये पर्व

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन जैन समाज के चौबीस तीर्थकरों में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था, जिस कारण जैन मतावलंबी इस दिन को उनके जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। भगवान महावीर ने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया। जैन धर्म का समुदाय इस पर्व को उत्सव के तौर पर मनाते हैं।

इसलिए कहा गया महावीर
भगवान महावीर का जन्म बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज और मां त्रिशला के यहां हुआ था। भगवान महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। वर्धमान ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए महज तीस साल की उम्र में राजमहल का सुख और वैभव जीवन का त्याग करते तपोमय साधना का रास्ता अपना लिया था। उनका वह साढ़े बारह वर्षों की साधना व उनके जीवन कष्टों का जीवंत इतिहास है। उन्होंने तप और ज्ञान से सभी इच्छाओं और विकारों पर काबू पा लिया था। इसलिए उन्हें महावीर के नाम से पुकारा गया। आमजन के कल्याण और अभ्युदय के लिए महावीर ने धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया।

अहिंसा का दिया है संदेश
जैन धर्म के लोग महावीर जयंती को बहुत धुमधाम और व्यापक स्तर पर मनाते हैं। मगवान महावीर ने हमेशा से ही दुनिया को अहिंसा और अपरिग्रह का संदिश दिया है। उन्होंने जीवों से प्रेम और प्रकृति के नजदीक रहने को कहा है। महावीर ने कहा है कि अगर किसी को हमारी मदद की आवश्यकता है और हम उसकी मदद करने में सक्षम हैं फिर हम उसकी सहायता ना करें तो यह भी एक हिंसा माना जाता है।

इसलिए कहलाए तीर्थंकर
भगवान महावीर ने अपने हर भक्त को अहिंसा के साथ, सत्य, अचौर्य, बह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है। साथ ही उन्होंने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका- इन चार तीर्थों की स्थापना की। इसलिए वह तीर्थंकर भी कहलाए। भगवान महावीर ने सालों से चल रही सामाजीक विसंगतियों को दूर करने के लिए भारत की मिट्टी को चंदन बनाया। उन्होंने जात-पात के भेदभाव से ऊपर उठकर समाज के कल्याण की बात कही।

इस तरह मनाते हैं यह पर्व
जैन धर्म के लोग इस पर्व को महापर्व की तरह मनाते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है। जिसके बाद मूर्ति को रथ में बैठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है, इस यात्रा में जैन समुदाय के लोग हिस्सा लेते हैं। कई जगह पंडाल लगाए जाते हैं और गरीब व जरूरतमंद की मदद करते हैं।

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