(वाजिद अली)
बड़ौत। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद राष्ट्रीय लोक दल में मुस्लिमों का रुझान न के बराबर रहा जिसका राष्ट्रीय लोक दल को वर्ष 2017 में संपन्न विधानसभा चुनावों में भारी नुकसान देखने को मिला जनपद बागपत की बड़ौत सीट से सपा के प्रत्याशी शो केंद्र पहलवान की ओर मुस्लिमों को मतदान करने से रोकने व रालोद के पक्ष में मतदान करने के लिए बड़ौत विधान सभा क्षेत्र के दो मुस्लिम नेताओं जिनमें रालोद के नगर अध्यक्ष बड़ोत व नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ चुके एक मुस्लिम नेता को यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसमें वह पूरी तरह विफल रहे थे विदित हो कि रालोद के नगर अध्यक्ष एक मुस्लिम सोसायटी का संचालन भी करते हैं। उसी के चलते उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई थी और अब लोकसभा चुनाव के चलते एक बार फिर रालोद ने वही 2017 वाला इतिहास दोहराते हुए हज वेलफेयर सोसायटी के दो ऐसे युवाओं को जो कभी अपने वार्ड के सभासद का भी चुनाव न जीत पाएं हों उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में युवा रालोद का महासचिव व सचिव बनाकर मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने का काम किया अब अगर आने वाले लोकसभा चुनाव में जैसा कि सपा बसपा का गठबंधन हो चुका है ।
लेकिन अभी तक कांग्रेस उसमें शामिल नहीं है। तो यह तय है कि बागपत लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस अपना अलग प्रत्याशी उतारेगी हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस को मिली बढ़त वह प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में भाग लेने व तीन तलाक़ बिल पर कांग्रेस के रूख को देखकर मुस्लिमों का रुझान कांग्रेस की और अचानक बढ़ा है। तो यह साफ है कि बागपत से कांग्रेस का भी प्रत्याशी होगा ऐसे में रालोद के इन मुस्लिम नेताओं को मुस्लिमों को रालोद की ओर मोड़ना काफी टेढ़ा काम होगा ऐसा भी नहीं कि बड़ौत विधानसभा का पूरा का पूरा मुस्लिम समुदाय इन चन्द सोसायटीयो व इनके स्वयंभू पदाधिकारियों के पीछे चलता है।यहां का मुसलमान हमेशा अपनी मर्जी व अपनी निष्ठा के मुताबिक वोट करता है। जिसकी जहां निष्ठा होगी वह वही वोट करेगा और भविष्य में यह देखा गया कि एक नेता को साथ जोड़ने से सैकड़ों वोटों का नुकसान भी हुआ है। यह तो आने वाला लोकसभा चुनाव तय करेगा कि इन नेताओं को जोड़ने से रालोद को कितना फायदा रहता है। और कितना नुकसान होता है।