
लेखक – सोरभ गुप्ता, वरिष्ठ फंड प्रबंधक – इक्विटीज़, बजाज फिन्सर्व एएमसी
वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच, खुदरा निवेशक घबराए हुए हैं। बड़े सूचकांकों में अस्थिरता से बाज़ार में घबराहट उत्पन्न हो गई है, खासतौर पर इसलिए क्योंकि बाज़ार में रातोंरात सुधार हो जाता है। इस तेज गिरावट ने निवेशकों के पूर्वाग्रहों को मज़बूत किया है – विशेष रूप से बाजार में गिरावट के समय सबसे खराब स्थिति की आशंका करने की प्रवृत्ति – जिसके परिणामस्वरूप निवेशक अक्सर जल्दबाजी में नुकसान करने वाले निर्णय ले लेते हैं।
वैश्विक व्यापार तनावों ने, जिनमें बढ़ती टेरीफ़ दरें और व्यापारिक युद्ध होने का डर शामिल है, भारतीय बाज़ारों को भी प्रभावित किया है। 7 अप्रैल 2025 को, निफ्टी फिफ्टी 22,236.60 अंकों के साथ 2.92% गिरा और सेंसेक्स 73,937.90 अंकों पर बंद होने के पहले 4,000 अंक गिर गया। इन कुछ ही क्षणों में निवेशकों ने ₹20 लाख करोड़ की संपत्ति का नुकसान देखा। ये स्थिति चिंताजनक तो है – परंतु पूरी तरह असामान्य नहीं।
ऐतिहासिक रूप से, ऐसे आँकड़े भय का वातावरण निर्मित करते हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग बाज़ार से अपना पैसा निकालने लगते हैं। दुर्भाग्यवश यह सामूहिक निकासी तब होती है जब दीर्घकालिक निवेशकों को इसके ठीक विपरीत काम करना चाहिए अर्थात्: या तो अपना निवेश बनाए रखना चाहिए या और अधिक निवेश करना चाहिए (यहां तक कि एसआईपी की राशि भी बढ़ानी चाहिए)। बाज़ार में सुधार आदर्श प्रवेश बिन्दु दे सकते हैं – खासतौर पर एसआईपी(SIP) जैसी अनुशासित रणनीतियों के लिए।
अस्थिर अवधियों के दौरान, एसआईपी एक स्मार्ट उपकरण बन सकती है। नियमित तौर पर एक निश्चित राशि निवेश करने के कारण निवेशक समय के अनुसार अपना खरीद भाव औसत कर सकते हैं- जिसे रूपी कॉस्ट एवरेजिंग रणनीति के नाम से जाना जाता है। इससे बाज़ार समय का अनुमान लगाने की आवश्यकता नहीं रहती और दीर्घ-कालिक निवेश करने की आदत बनती है, जिससे कि जोखिम कम करने और समय के साथ लाभ बढ़ाने में मदद मिलती है।
अमेरिकी टैरीफ वृद्धि के कारण बनी अशान्ति के बावज़ूद भारतीय बाज़ारों में अभी भी सकारात्मक माहौल है। उच्च मुद्रास्फीति, अमेरिका में निवेश से हिचकिचाहट, वैश्विक आपूर्ति में परिवर्तन और मंदी की संभावनाओं जैसे कारक कम्पनियों को भारत जैसी अधिक स्थिर और उपभोग-संचालित अर्थव्यवस्थाओं की ओर मुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चाओं और मज़बूत घरेलू माँग के कारण भारत की 26% टैरिफ को सहन करने की क्षमता जैसे कारक आशावाद को बढ़ा रहे हैं।
एक निवेशक के दृष्टिकोण से, यह अवधि एक सुनहरा अवसर प्रदान कर सकती है। मज़बूत बुनियादी बातों जैसे मज़बूत बैलेन्स शीट, मज़बूत नकदी प्रवाह और आकर्षक प्रतिफल अनुपात वाली कई कम्पनियाँ वर्तमान में औसत से कम मूल्यांकन पर कारोबार कर रही हैं। यह स्थितियाँ कभी-कभार ही लंबे समय तक रहती हैं और बाज़ार में तेज़ी से पहले आती हैं।
एफएमसीजी और उपभोग जैसे क्षेत्र पहले से ही सुधार के संकेतों की आगेवानी कर रहे हैं। एनबीएफसी पर भी निवेशकों की नज़र है। पहले भी वैश्विक संकट के दौरान भारतीय इक्विटीयों में निवेश ने कई निवेशकों को उबारा है, और इस बार भी ऐसा ही है। इसलिए, एक अच्छे विविधिकृत पोर्ट्फोलीओ वाले और दीर्घकालिक (5-10 वर्ष) अवधि वाले निवेशकों के लिए अगली विकास की लहर में फायदा उठाने के लिए अपने निवेश फैसलों पर कायम रहना या अधिक निवेश करना सही साबित हो सकता है।