नगर निगमः पहले भेज दिए गडबडझाला वाले टैक्स, अब समाधान का श्रेय लेने की होड

वार्डों में कैंप लगा कर किया जा रहा लोगों की टैक्स संबंधी समस्याओं का समाधान

भास्कर समाचार सेवा

मथुरा। पहले समस्या खडी करो, जब लोग हाय तौबा मचाने लेंगे तो समाधान के प्रयास शुरू कर दो और समाधान का श्रेय लेने के लिए आग जाइये। नगर निगम में इन दिनों यह चल रहा है। राजनीति के इस खेल में जनता के पैसे, समय और तनाव की कोई कीमत नहीं आंकी जा रही है। नगर निगम ने आय बढ़ाने के उद्देश्य से कई तरह के टैक्स की दरों में बढ़ोतरी की है। यह बढोतरी कुछ टैक्सों में कई गुना तक है। लोग टैक्स बढोतरी से परेशान थे और इन्हें कम करने की मांग करते इससे पहले एक नई तरह की उलझन ने उन्हें पकड़ लिया। नई दरों में भी उन्हें गडबडझाला वाले टैक्स भेज दिए गए। यानी नई दरों के हिसाब से भी ये धनराशि अधिक बैठ रही थी। अब टैक्स बढोतरी का विरोध करने या इसे कम करने के लिए हो हल्ला मचाने की बजाय अदा करने के लिए निर्धारित की गई धनराशि को संशोधित करने और उसे नियमानुसार एवं तर्कसंगत बनवाने के लिए लोगों ने नगर निगम कार्यालय के चक्कर काटने शुरू कर दिए। ये लोग चाहते थे कि नई दरें तय हुई हैं उसके हिसाब भी कम से कम सही टैक्स चुकाने का मौका मिले जाए। शिकायतों की संख्या भी इतनी ज्यादा कि कार्यालयों के कई चक्कर लगाने के बाद भी समाधान संभव नहीं हो पा रहा था। उसने क्षेत्र में राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों को नेतागिरी चमकाने का मौका दे दिया। हर कोई अपनी समस्या का समाधान चाहता है, सुनवाई नहीं होने पर क्षेत्रीय पार्षद और राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों के घरों के चक्कर लगाना पीड़ितों ने शुरू कर दिया। यहां से शुरू हुई समस्या के समाधान का श्रेय लेने की होड। इस होड में पक्ष या विपक्ष का कोई नेता पीछे नहीं रहना चाहता। लेकिन सुनवाई तो उन्हीं की होगी जिनकी चवन्नी चल रही है। समाजसेवा का श्रेय लेने के  लिए लोगों ने अपने क्षेत्र में समस्या के समाधान के लिए कैंपों का आयोजन शुरू करा दिया है। नगर निगम की टीमें क्षेत्र के हिसाब से कैंप लगा कर टैक्स संबंधी समस्याओं का समाधान कर रही हैं। वहीं नेताजी की बैठे बिठाए ही चवन्नी चल निकली है, ऊपर से समस्या का समाधान करने का तुर्रा अलग से। इस बीच लोगों की इस बात को सुनने के लिए कोई तैयार नहीं कि समस्या में डाला ही क्यों गया। इस होमवर्क को पहले पूरा कर लिया जाता तो इतने दिन पपड नहीं बेलने पड़ते, लेकिन जनता की समस्याओं के समाधान के लिए कटिबद्ध समाजसेवियों कर मजबूरी है, उन्हें पहले समस्या खडी करनी होगी तभी उसका समाधान संभव है। समाधान का श्रेय भी तो समस्या होने पर ही मिलेगा। 

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