जिलाधिकारी व पुलिस से वार्ता कर निष्पक्ष विवेचना की मांग


अमेठी । जिले के थाना क्षेत्र मुंशीगंज के बन्दोइया गांव में प्रधान पति दलित अर्जुन की हत्या के मामले में देश, प्रदेश, जिले व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों एवं नेताओं की दखलन्दाजी व अवैधानिक दबाव के चलते पुलिस ने मजबूर होकर निर्दोष लोगों को हत्यारोपी बनाकर जेल भेज दिया । प्रश्नगत प्रकरण में अनावश्यक अवैधानिक दबाव बनाकर पुलिस को अब तक निष्पक्ष जांच नहीं  करने दिया जा रहा है ।

इससे आहत  प्रेस क्लब के जिलाध्यक्ष शीतला प्रसाद मिश्र के साथ एक    प्रतिनिधिमण्डल ने  राज्यपाल को सम्बोधित ज्ञापन जिलाधिकारी अमेठी के माध्यम से भेजकर मामले की उच्चस्तरीय जांच एवं निष्पक्ष विवेचना कराये जाने की मांग की । ज्ञापन की प्रति मुख्य मंत्री, स्मृति  ईरानी, कैबिनेट मंत्री  व सांसद अमेठी, मोहसिन रजा प्रभारी मंत्री, अपर मुख्य सचिव गृह, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था, मण्डलायुक्त, पुलिस महानिरीक्षक अयोध्या, जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक अमेठी, राज्य मानवाधिकार आयोग व केन्द्रीय मानवाधिकार आयोग को भी भेजा गया है । 

ज्ञापन में एक पक्षीय कार्यवाही का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि कृष्ण कुमार त्रिपाठी के अहाते में जहां  घटना हुई है वहां की सीसीटीवी फुटेज का परीक्षण  पुलिस ने नहीं किया। जिस चौराहे से अपहरण की बात कही गई है वहां एक भी व्यक्ति अपहरण की पुष्टि करने के बजाय अर्जुन को अपने साथी के साथ एक स्कार्पियो में जाने की बात बतायी जाती है । पुलिस मृतक के मोबाईल की लोकेशन, सीडीआर व बीटीएस निकाल कर सच्चाई तक पहुंच सकती है। मोबाइल की इसी डिटेल से यह भी पता चल सकता है कि क्या ये पांचो नामजद आरोपी मृतक के इर्दगिर्द थे? घटना के दिन मृतक ने किस किस से बात किया उनसे भी यह पूछताछ किया जाना चाहिए कि क्या बात हुई, लेकिन पुलिस इस दिशा में कोई विवेचना नहीं कर रही । क्या कोई व्यक्ति किसी को अपहरण करने के बाद अपने अहाते में लाकर जला सकता है? घटना की सूचना भी पुलिस को कृष्ण कुमार तिवारी के परिवार के लोगों ने दिया, क्या मारने वाले लोगों के द्वारा ही पुलिस को सूचना दी जाएगी?

क्या कोई पिता किसी के अपहरण और हत्या के लिए अपने 14 साल के  मेधावी पुत्र को लेकर जा सकता है जबकि उसके पास पहले से तीन अन्य साथी मौजूद हैं? जिस प्रधान के खिलाफ गांव के 30 से अधिक लोग शिकायत कर जेल भिजवाने में लगे हों उसे जलायेंगे क्यों वह भी अपने घर पर लाकर? एफआईआर के दो अन्य नामजद आरोपियों जो प्रधान के परिवार के साथ साये की तरह घूम रहे है, उनसे पूछतांछ व चालान क्यो नहीं किया जा रहा ? ऐसा तो नहीं कि जिन लोगों ने गाँव सभा की प्रधानी की पूरे पैसे में गोलमाल किये,  अब अपने फंसने की डर में उसे उकसा कर आत्महत्या करा एक तीर से दो निशाने साध लिए?

फिलहाल इन सभी सवालों के जबाब पुलिस की निष्पक्ष विवेचना से ही निकल सकते हैं जो बढ़ते राजनीतिक दबाव में संभव नहीं दिख रहा और एक बार फिर राजनीति की बलि वेदी पर पांच निर्दोषों की बलि चढ़ रही है। जिले का पूरा मीडिया समुदाय सच्चाई जानते हुए और यह जानते हुए कि अपने साथी स्वतंत्र प्रभात समाचार पत्र के जिला प्रभारी आशीष त्रिपाठी के निर्दोष भाई को जेल भेज दिया गया, उन्हे न्याय नहीं दिला पा रहा है । न्याय का सिद्धान्त भी यही कहता है कि दोषी बचे नहीं निर्दोष फंसे नहीं । इसलिए  इस घटना की उच्च स्तरीय जांच व पुलिस द्वारा निष्पक्ष विवेचना आवश्यक है ।