अब तेरे संग जी लेंगे हम…

देखिए, किसी को सहने की भी एक सीमा होती है। एक हद के बाद तो किसी को भी नहीं झेला जा सकता। तो सुन लो भाई कोरोना… अब घर में घुट-घुट कर जीना… हमसे न हो पाएगा। माना तुम विदेश से आए थे… हमारे यहां विदेशी चीजों को माथे चढ़ाने की आदत है। इसका ये मतलब थोड़े ही न है… तुम सिर पर चढ़ कर नाचने लगो। सो, हमने सोच लिया है… अब तेरे संग जी लेंगे हम। अगर तू जहर भी है, तो पी लेंगे हम। पहले तीन लॉक डाउन में तुम्हें खूब मान-सम्मान दे दिया… अब चौथे से हम तुम्हारे उठावने की तैयारी में जुट गए हैं। यकीन नहीं आ रहा हो, तो दिन में बीच बाजार थोड़ा टहल कर देख लो। सड़कों पर वही पहले जैसी भीड़ है। वाहनों की रेलमपेल है… जाम भी लगने शुरू हो गए हैं। शराब पीकर लड़ाई-झगड़े…उत्पात.. और मर्डर तक सब शुरू हो गए हैं। सरकार ने कहा है कि मुँह पर मास्क लगाकर निकलो… दो गज की दूरी रखो… तो, ये कर रहे हैं। ये भी हम अपनी शर्त और सहूलियत के हिसाब से ही करते हैं।

जहां सब्र का पैमाना छलक जाता है, वहीं मास्क उतर जाता है… बीच का अंतर दो गज से सिकुड़ता हुआ जीरो तक भी पहुंच जाता है। ये सही है कि तुम्हारी वजह से सड़कों पर खड़े रहने वाले पुलिस के जवानों के लिए एक नया अवसर बना है… बिना मास्क वालों को पकड़ने का। लेकिन ये जान लेना… हम उस देश के वासी हैं, जहां हेलमेट तक पुलिस वाले को देख… लगाए या हटाए जाते हैं। पकड़े गए तो जेब में नोट टिकाए जाते हैं। जान लेना… मास्क की पाबंदी से भी घबराएंगे नहीं… इसी तरीके से मनमर्ज़ी करेंगे।
एक बात और सुन लो कोरोना बाबू… तुम सोचते हो कि मौत का भय दिखाकर हमें घर में रोक लोगे। इस मोर्चे पर भी तुम्हारी औकात देख ली। तुम्हारे चक्कर में तो हमारे अस्पतालों में होने वाली मौतों के आंकड़े ही सिकुड़ गए… न ऑपरेशन के दौरान मौत हो पाई… और ना ही अस्पताल से मिले इंफेक्शन से।

यहां तक कि जिंदगी की दौड़-धूप का तनाव घटने से हार्ट-अटैक भी आने कम हो गए। देखो कोरोना जी… दो-ढाई महीने में तुम जितनी जान ले पाए हो, उससे कहीं ज्यादा जानें तो हमारी सड़कें एक हफ्ते में ले लेती हैं। रेल पटरियां भी थोड़ा-थोड़ा योगदान करती रहती हैं। हमारी बात का भरोसा न हो, तो खुद देख लो। जैसे ही मजदूरों का पलायन शुरू हुआ… सड़कों पर बस, ट्रक, कार और दोपहिया वाहन दौड़ने लगे… सड़कों ने मौत परोसने का काम शुरू कर दिया। ये भी जान लो… सड़कों पर मौत के आंकड़े हमारी सरकारों को भी नहीं डराते। उनकी नजर में ये चलती अर्थव्यवस्था का ही हिस्सा हैं। श्मशान में लकड़ी से लेकर अंतिम क्रिया में इस्तेमाल होने वाला सामान… ये क्रिया और बाद में कर्मकांड कराने वाले तक… सभी हमारी अर्थव्यवस्था का ही अभिन्न अंग है। सरकार का दायित्व है… वह अपनी अर्थव्यवस्था को किसी भी मोर्चे पर कमजोर नहीं पड़ने दे। तो, मिस्टर कोरोना फिर समझ लो… हमारी सरकार भी तुमसे न घबराएगी… अर्थव्यवस्था की खातिर हर जरूरी कदम उठाएगी।


ये बात जरूर माननी पड़ेगी… कोरोना बाबू, तुम्हारी एंट्री तो बड़ी धांसू थी। सब डर गए थे। लोगों ने तमाम तरह की शपथ ले लीं थीं… ये करेंगे… वो नहीं करेंगे। आगे ऐसा होगा… वैसा नहीं होगा। मर्यादाओं की कई दीवारें चुन लीं गईं थीं। इससे ये मत सोच लेना… हम लोग जो पहले सोच रहे थे… बिल्कुल वैसा ही करेंगे। हमारे यहां श्मशान वैराग्य की एक उच्च परम्परा भी है। देखना लोग वैराग्य भाव छोड़कर… फिर जिंदगी को पुरानी पटरी पर लाने में जुट जाएंगे।

चलिए, कोरोना को तो हमने खूब खरी-खोटी सुना दी। इस देश और उसके लोगों का हौंसला… उनका जज्बा भी दिखा दिया। लेकिन अंत में एक गुजारिश आपसे भी है। कोई सड़क खुद दुर्घटना करके हमारी जिंदगी नहीं छीनती है। दुर्घटना तभी होती है, जब सड़क पर चलने के कानून- कायदे तोड़े जाते हैं… या सावधानी हटती है। अब जब सरकार कोरोना संग जीने का फरमान जारी कर दिया है… तो हम भी इस नए दौर के जीवन के लिए बने नियमों की पालना भी ईमानदारी से करने का भी निर्णय कर लें। इसी में समझदारी है।

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