रूस-यूक्रेन के बीच अब आया ये देश, क्या ख़त्म होगा ये महायुद्ध, पढ़े अब तक क्या-क्या हुआ…

रूस-यूक्रेन के बीच काफी समय से महायुद्ध का संग्राम छिड़ा हुआ है जो थमने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन एब शादय इस युद्ध ने एक नया मोड़ ले लिया है। बता दे इसे रोकने के लिये अब तुर्की सामने आता दिख रहा है। जो काफी दिलचस्पी के साथ आगे बढ़ता नजर आ रहा है। आपको बता दे कि बीते दो हफ्ते में तुर्की ने रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे लड़ाई स्तर पर इस भीषण मूसीबतों का हल निकालने के लिये हर प्रयास कर चुका है, जिसका नतीजा धीरे –धीरे सफल होता दिख रहा है, जिसका सीधा उदाहरण है कि रूस और यूक्रेन ये दोनों ही आपसी समझौते के करीब पहुंचते दिख रहे है।

तुर्की यूक्रेन-रूस का माना जाता है करीबी

फिलहाल इस युद्ध पर अभी तक कोई भी अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो सका, लेकिन अचानक से ये दो ईसाई देशों के बीच ये मुस्लिम मुल्क अचानक से इतना ज्यादा महत्वपूर्ण होता नजर आने लगा है। हालांकि इसके पीछे का कारण ये बताया जा रहा है कि तुर्की और देशों की तुलना में यूक्रेन और रूस का कुछ ज्यादा ही करीबी माना जाता है। जिसका खामियाजा आज देखने को मिल रहा है। और यहीं कारण है कि रूस इस मामले को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति या फिर तमाम पश्चिमी देशों को लीड नहीं लेने देना चाहता है और तो और तुर्की के जरिए पूर्वी यूरोप में एक बड़े भाई की भूमिका में बखूबी नजर आना भी चाहता है।

खास बात तो यह है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तुर्की को इसलिए अपना सगा मानते है क्यों कि वो पहले ही अजरबैजान, लीबिया और सीरिया में हुए खून खराबे रोकने में तुर्की की अहम भूमिका को बखूबी तरीके से परख चुके है, बस यहीं कारणं है कि वो तुर्की को अपना समझदार साथी मानते है। तुर्की ने अपने दावे में कहा है कि वो रूस और यूक्रेन को समझौते के काफी करीब लाने की कोशिशों में जुटा हुआ है।

रूस यूक्रेन संकट में तुर्की की जानए अहम भूमिका

तुर्की और रूस के बीच कई जगह सुरक्षा सहयोग है, तुर्की जैसे देश की वजह से इन दोनों के बीच एक कड़ी विश्वास की डोर बंधती नजर आने लगी है जिससे अब एक लोगों के मन में उम्मीद जगने लगी है कि अब जल्द ही ये लड़ाई थम सी जाएगी। तुर्की ने कहा है कि हम रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोडिमीर जेलेंस्की इन दोनों के बीच चल रहे आपसी मतभेद को जल्द ही दूर करने में कामयाब हो सकेंगे।

जानिए यूक्रेन के साथ तुर्की का कैसा है संबंध?

तुर्कीं का यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थता करने का प्रस्ताव इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वो समझौते को प्रैक्टिकली डिलीवर करने की स्थिति में है। इसी तरह से यूक्रेन के साथ तुर्की के बहुत पुराने और मजबूत संबंध हैं। सांस्कृतिक, शिक्षा, कारोबारी और सुरक्षा के स्तर पर यूक्रेन और तुर्की के बीच अच्छे रिश्ते हैं।

दोनों देशों पर lतुर्की का असर

तुर्की इस स्थिति में है कि अगर वो यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष-विराम कराता है तो उसकी गारंटी ले सके। दोनों ही देशों पर उसका असर है। बाकी कई ऐसे देश हैं जो संघर्ष विराम करा तो सकते हैं लेकिन वो उसे लागू करा पाएंगे, इसकी संभावना बहुत ज्यादा नहीं है। यूक्रेन नाटो सुरक्षा गठबंधन का हिस्सा ना बने, तुर्की रूस की इस मांग को बेहतर तरीके से पूरा करा सकता है।

तुर्की हमेशा से इस खेल में रहा बड़ा खिलाड़ी

इस क्षेत्र में तुर्की हमेशा एक बड़ा खिलाड़ी रहा है। उस्मानिया सल्तनत के दौर से ही तुर्की का यहां प्रभाव रहा है। क्राइमिया समेत यहां का बड़ा इलाका उस्मानिया सल्तनत का हिस्सा था। बाद में रूस के साथ युद्ध में तुर्की इन इलाकों को हार गया लेकिन उसका प्रभाव यहां बना रहा। हालांकि पिछले 6-7 दशकों में तुर्की ने यहां कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाई है। हालांकि, बीते दो दशकों में तुर्की का रक्षा क्षेत्र बहुत मजबूत हुआ है और आर्थिक उदय भी हुआ है।

दूसरे देशों का तुर्की पर अटूट भरोसा

तुर्की का डिफेंस एक्सपोर्ट भी बढ़ा है। तुर्की के ड्रोन बेयरक्तार ने अपने आप में अलग पहचान और बेंचमार्क कायम किया है। तुर्की यूक्रेन को ड्रोन दे रहा है, लेकिन ड्रोन का ये सौदा जंग से पहले ही हो चुका है। तुर्की ने यूक्रेन के अलावा और भी कई देशों को ये ड्रोन बेचे हैं। जब रूस ने इसका विरोध किया तो तुर्की ने यही तर्क दिया था कि जैसे आपने कई देशों को हथियार बेचे हैं, वैसे ही हमने भी बेचे हैं। तुर्की ने जिस तरह से ड्रोन देकर कई देशों की सेनाओं को मजबूत किया है, इससे जंग का तरीका भी बदला है।

तुर्की के ड्रोन से यूक्रेन की सेना मजबूत

तुर्की के ड्रोन से यूक्रेन की सेना मजबूत तो हुई ही है, ये जंग जो शायद दो सप्ताह में खत्म हो जाती, अब लंबी खिंचती जा रही है। कहीं ना कहीं रूस के भीतर बेयरक्तार को लेकर नाराजगी होगी लेकिन रूस के पास तुर्की से संबंध जारी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है।ऐतिहासिक रूप से तुर्की और रूस एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी तो रहे हैं लेकिन दुश्मन नहीं हैं। अपना असर बढ़ाने के लिए दोनों देश होड़ तो करते हैं लेकिन ये दुश्मनी के स्तर तक नहीं है। ऐसे में दुनिया में जहां-जहां रूस और तुर्की आमने-सामने आए हैं वहां-वहां उनका टकराव सहयोग में भी बदला है।

रूस की मांगें बहुत अधिक

सीरिया में पश्चिमी देश रूस के साथ सहयोग का कोई मॉडल बना नहीं पा रहे थे। लेकिन तुर्की ने आस्ताना पीस प्रोसेस के जरिए ऐसा मॉडल बनाया। लीबिया और अजरबैजान में भी तुर्की और रूस सहयोग करने में कामयाब रहे हैं। पर्दे के पीछे तो दोनों देशों के बीच कई स्तर पर वार्ता और सौदेबाजी चल रही होगी। क्या लिया जाए और क्या छोड़ दिया जाए इस पर चर्चा हो रही होगी। रूस की मांगें बहुत अधिक हैं। उसी विश्वास के साथ यूक्रेन भी अपनी मांगें रख रहा है।

तुर्की इन दोनों को एक कॉमनग्राउंड पर लाने की कोशिश कर रहा है। अब तक की बातचीत से ये अंदाजा तो हो रहा है कि दोनों ही पक्षों की कई मुद्दों पर शायद समझ बन गई है। लेकिन अभी कई मुद्दों पर बातचीत बाकी है। उदाहरण के तौर पर क्राइमिया का स्टेट्स क्या हो। रूस ये चाहता है कि इतनी बड़ी जंग के बाद कम से कम क्राइमिया पर यूक्रेन अपना दावा छोड़े और उसके हक को स्वीकार करे।

यूक्रेन का नाटो में शामिल न होना रूस की मांग

तुर्की स्वयं भी अभी ये नहीं मानता है कि क्राइमिया रूस का हिस्सा हो गया है। क्राइमिया को लेकर शायद विवाद रहे। इसके अलावा रूस की जो दूसरी मांगें हैं, जैसे यूक्रेन का नाटो में शामिल न होना, वो शायद आसानी से मान ली जाएंगी। इस पर सहमति भी बन चुकी है और दोनों पक्षों का कोई विरोध नहीं है। दोनों ही पक्ष इसे लेकर गारंटी देने को भी तैयार हैं।

इसके अलावा रूस के नियंत्रण वाले इलाकों को कैसे संभाला जाएगा, इस पर बातचीत होनी है, जहां तक शांति समझौते और संघर्ष विराम का सवाल है, इसकी जरूरत दोनों ही पक्षों को है। रूस को लग रहा था कि वो हफ्ते दस दिन में अपना ऑपरेशन पूरा कर लेगा, जैसा कि उसने क्राइमिया पर नियंत्रण के समय किया था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है।

पुतिन के जीतने पर होगा खून -खराबा

रूस को लग रहा था कि यूक्रेन की सेना आत्म-समर्पण कर देगी और बहुत ज्यादा लड़ाई नहीं करनी होगी। शहरों पर बमबारी और शहरों के भीतर लड़ाई का रूस ने नहीं सोचा था। पुतिन को अब ये अहसास हो रहा है कि उन्होंने यूक्रेन के प्रतिरोध का आकलन करने में गलती की है। अगर पुतिन सैन्य तौर पर जीत भी जाते हैं तो ये बहुत ही भयानक और खून-खराबे वाली जीत होगी जो रूस के अंतरराष्ट्रीय स्तर को बहुत गिरा देगी।

यहां समझने वाली बात ये है कि रूस सिर्फ रूस नहीं है बल्कि ये बहुत से छोटे देशों का साथी है। थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज का साथी है। ऐसे में रूस के लिए ये बहुत जरूरी है कि वो अपनी इस स्थिति को बनाए रखे। इस स्थिति को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि यूक्रेन में बहुत ज्यादा खूनखराबा ना होने पाए और जो बर्बादी हो रही है उसे रोका जाए।

यदि रूस भारी बर्बादी और खून खराबे के बाद जंग जीत भी लेता है तो इससे रूस के लिए बाकी छोटे देशों के साथ रिश्ते बनाना और उनका नेतृत्व करना आसान नहीं होगा। रूस ने ब्रिक्स  जैसे मंचों के जरिए रूस ने गैर पश्चिमी कारोबारी और सुरक्षा सहयोग स्थापित करने की कोशिश की है।

रूस-यूक्रेन के युद्ध का भारत पर पड़ा असर

तुर्की ने कहा है कि यदि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच सीधी वार्ता होती है तो वो उसकी मेजबानी करने के लिए तैयार है। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू ने रूस और यूक्रेन की यात्रा की है। वहीं दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने भी तुर्की की यात्रा की और तुर्की की मध्यस्थता में बातचीत की है।

तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू

रविवार को तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू ने एक बयान में कहा कि तुर्की की मध्यस्थता में रूस और यूक्रेन समझौते के करीब पहुंच गए हैं। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि दोनों देशों के बीच बातचीत आसान नहीं है और कई मुद्दों पर गंभीर गतिरोध बरकरार है।

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन कई बार ये कह चुके हैं कि तुर्की रूस या यूक्रेन में से किसी के साथ भी अपने संबंध नहीं तोड़ेगा और दोनों देशों के साथ उसके मजबूत संबंध एक एसेट हैं। तुर्की नाटो का सदस्य है लेकिन उसने अब तक रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया है ना ही किसी तरह के प्रतिबंध लगाए हैं।

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